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पसीना बहाने से भागते हैं अरबपति वारिस, हर्ष गोयनका का आलेख

Uday Kotak : इन वारिसों को अपने पिता-दादा की फैक्ट्री सबसे आकर्षक करियर गंतव्य क्यों लगती है? क्योंकि वहां बैठना जोखिम व तनाव रहित है. आरामदायक केबिन में बैठने से त्वचा पर भी कोई असर नहीं पड़ता. न श्रमिक हड़ताल का खतरा है, न जटिल व्यापारिक अभियान में शामिल होना है, न नवाचार का कोई सिरदर्द है.

Uday Kotak : उदय कोटक ने हाल में चेतावनी भरे शब्दों में कहा : देश के युवा अरबपति वारिस नयी कंपनियां बनाने के बदले शेयर बाजार में रुचि दिखा रहे हैं. फैक्ट्रियों और उद्योग परिसरों में पसीना बहाने के बजाय शेयर और वायदा बाजार में पैसा लगा रहे हैं तथा अपने पारिवारिक ऑफिसों से काम कर रहे हैं. एक समय उद्योगपति घरानों में पैदा होने पर विरासत में संपत्ति नहीं, जिम्मेदारियां ली जाती थीं. युवाओं को फैक्ट्री के धूल भरे कमरों में भेजा जाता था, सप्लाई चेन की बारीकियों के बारे में समझाया जाता था. उनसे उम्मीद की जाती थी कि वे मुनाफा कमाना सीखेंगे. जरूरी अनुभव हासिल करने के बाद उन्हें जिम्मेदारियां दी जाती थीं. वे सुबह छह बजे उठने, दिन में 12 घंटे काम करने और जल्दी लंच खत्म करने के संस्कार डाल लेते थे, ताकि व्यापार बढ़ाने की रूपरेखा तैयार करने में ज्यादा समय दे सकें.


उस दौर से आज की तुलना करें. विरासत में मिले उद्योग क्या सुरक्षित हाथों में हैं? इन घरानों के प्रतिनिधि गोल्फ खेलने, शैंपेन का आनंद लेने या न्यू ब्रांड लैंबोर्गिनी दौड़ाने में व्यस्त हैं. वे दिन हवा हुए, जब प्रॉफिट एंड लॉस स्टेटमेंट तैयार करने में या पूंजीगत खर्च की योजना बनाने में उद्यमी पसीना-पसीना हो जाया करते थे. आधुनिक वारिस कम श्रम कर पैसे कमाने में, छुट्टियों पर जाने में और याच पार्टियों के दौरान नेटवर्क बनाने में यकीन करते हैं. ये शेयरों की खरीद और स्नीकर्स के रख-रखाव में सहज हैं, फिर कर्मचारियों और प्रोडक्शन लाइन के प्रबंधन का तनाव क्यों लें?


इन वारिसों को अपने पिता-दादा की फैक्ट्री सबसे आकर्षक करियर गंतव्य क्यों लगती है? क्योंकि वहां बैठना जोखिम व तनाव रहित है. आरामदायक केबिन में बैठने से त्वचा पर भी कोई असर नहीं पड़ता. न श्रमिक हड़ताल का खतरा है, न जटिल व्यापारिक अभियान में शामिल होना है, न नवाचार का कोई सिरदर्द है. इसके बजाय म्यूचुअल फंड्स, प्राइवेट इक्विटी तथा लंदन के हेज फंड से लगातार पैसे आते रहने की गारंटी है. निवेश पर बात करने के लिए कुश्वेल ( फ्रांस) में लंबा सप्ताहांत बिता आने का अवसर है. अपने कारोबार की सप्लाई-चेन में कमी भांपने के बजाय ये शेयर चुनने की ज्यादा जानकारी रखते हैं. उनके लिए बर्न रेट (अपने व्यापार में नकदी डालने की जानकारी रखना) बांद्रा-वर्ली सी लिंक पर अपनी फरारी को तेज भगाना है.


इन सबके गुरु एलन मस्क हैं. सबसे ज्यादा इसलिए कि मस्क जोखिम उठाने और नवाचार का प्रदर्शन करने के सबसे प्रभावी उदाहरण हैं. अपने यहां के उद्यमियों के विपरीत मस्क को संपत्ति विरासत में नहीं मिली, उन्होंने अपना साम्राज्य खुद खड़ा किया है. वह ‘उद्यमियों के उद्यमी’ हैं-ऐसा आदमी, जो बड़े दांव खेलता है, अथक परिश्रम करता है और हमेशा ऐसा कुछ करने में यकीन करता है, जो उद्योगों को बदल दे. हमारे वारिस मस्क से प्रभावित हैं, पर कामकाज में मस्क का अनुकरण नहीं करना चाहते. अब इनकी नजर नारायणमूर्ति और एस एन सुब्रमणियम जैसों पर है, जो सप्ताह में 70-90 घंटे काम करने की सलाह देते हैं. इन बुजुर्गों के मुताबिक, उद्योग घरानों की दिनचर्या इस तरह होनी चाहिए :
सुबह 11 बजे : सुबह उठकर इंस्टाग्राम पर वारेन बफेट के ताजा विचार पढ़ना.
11.45 बजे : बॉलीवुड के प्रशिक्षक के साथ जिम में.
12.30 बजे : डैडी से कंपनी के बारे में मामूली बातचीत.
1.30 : स्टार्टअप के एक ऐसे संस्थापक के साथ लंच, जिसने शून्य बिक्री के बावजूद दो करोड़ डॉलर मूल्य के साथ चाय उद्योग में क्रांति ला दी.
00 बजे शाम : महत्वपूर्ण निवेशकों से मिलने के लिए दुबई की उड़ान ( इसे ज्यूमा में पार्टी करना पढ़ें).
8.00 बजे रात : ‘भागदौड़ के महत्व’ पर लिंक्डिन पर एक लेख पोस्ट करना.
भागदौड़ भरी संस्कृति में ये चीजें शामिल हैं :
दावोस के स्काइ स्लॉप्स तक उड़ान भरें और खर्च को बिजनेस ट्रिप में दिखायें.
बर्किन का बैग खरीदें और इसे ‘निवेश’ बतायें.
एक्स पर ‘न्यू डील लोडिंग’ पोस्ट करें और उसमें रिजॉर्ट की नयी बुकिंग के बारे में बतायें.


ये उत्तराधिकारी सिर्फ कंपनी नहीं चलाते, कंटेंट से जुड़ी रणनीति भी तैयार करते हैं. व्यापारिक सफलता को कभी मार्केट कैप और परंपरा से आंका जाता था. आज सफलता इससे आंकी जाती है कि कितनी जल्दी आप ‘फोर्ब्स 30 अंडर 30’ की सूची में आते हैं. इस पीढ़ी का सौंदर्यबोध खास है : गुची या प्रादा जैकेट्स के साथ जिम के जूते. इनके खेल? पैडल (टेनिस और स्क्वैश का मिश्रण) और गोल्फ. पसीना बहाने का काम फैक्ट्री के कर्मचारियों का है, इनका नहीं. और जब शिक्षा की बात आती है, तो हार्वर्ड के संक्षिप्त कोर्स का कोई मुकाबला नहीं है. न एमबीए से कुछ हासिल हो सकता है, न वर्षों की केस स्टडी काम आती है. ‘लीडरशिप फॉर वेल्दी फैमिली’ पर तीन दिनों की वर्कशॉप का खर्च एक छोटी कार के बराबर है. ऐसी वर्कशॉप में ब्रंच के समय कहा जा सकता है, ‘मेरी पढ़ाई हार्वर्ड में हुई.’ यह पीढ़ी उत्सुक, भोली और वीआइपी ट्रीटमेंट से अभिभूत होती है. इन्हें क्रिकेट फाइनल में स्पेशल बॉक्स में बिठाया जाता है और विंबलडन के सेंट्रल कोर्ट के टिकट दिये जाते हैं.


फिर भी उम्मीद बची है. कुछ उत्तराधिकारी सुबह उठकर कॉफी पीते हैं. सारे उद्यमी एनएफटी (डिजिटल संपत्ति) और चिया सीड्स के शौकीन नहीं हैं. शेयर बाजार में निवेश कर या एक्स पर मीम शेयर कर धन नहीं कमाया जा सकता. पैसा तो व्यापार या उद्योग से ही आता है. परंतु जो लोग व्यापार में विफल हो चुके हैं, उनके लिए हमेशा ही प्लान बी होता है :
*वेंचर कैपिटल फंड शुरू करें.
*अगर यह भी फेल होता है, तो एक किताब लिखें, ‘विफलता से सीखे गये सबक.’
अगर इसमें भी नाकामी हाथ लगती है, तो उद्योग घराने की किसी उत्तराधिकारी लड़की से शादी कर अपना नेटवर्थ दोगुना करें. जब आपको विरासत को ही आगे ले जाना है, तो कंपनी को आगे ले जाने की जरूरत क्या है?
पर यह सवाल बरकरार है : उद्यमियों की अगली पीढ़ी निर्माता बनेगी या ब्रंच की आदी? वह नेतृत्व करेगी या लिंक्डिन इन्फ्लूएंसर बनेगी? उद्यमी बनेगी या मनोरंजन करेगी? यह समय बतायेगा और खुद उनका व्यक्तित्व भी. पर अगर आप निजी संपत्ति के प्रबंधक हैं, तो आपको बधाई. आपने अपने सपनों को पा लिया है.
(साभार : द इकोनोमिक टाइम्स. यह लेख 27 फरवरी, 2025 को इटी में प्रकाशित हुआ है.)

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