PM Narendra Modi : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फ्यूजन कौशल के जादुई कलाकार हैं. उनके द्वारा भारतीय संस्कृति के नियमित मंगलाचरण का अर्थ भारत को वैश्विक स्तर पर प्रासंगिक बनाये रखना है. पिछले सप्ताह भूकंप से ध्वस्त थाइलैंड के अपने दौरे में उन्होंने रामायण को उद्धृत किया. एक दशक से अधिक के प्रधानमंत्री काल में मोदी ने वैश्विक कूटनीति और राजनीति में भारत की प्रासंगिकता बनाये रखने के लिए प्राचीन और आधुनिक भारत की भावना को जोड़कर पेश किया है. वह देश के सबसे लोकप्रिय नेता बने हुए हैं, लेकिन अपनी वैश्विक छवि से उन्होंने तनिक भी समझौता नहीं किया है. इस दौरान उन्होंने तमाम दांव आजमाये हैं, जैसे विदेश का सर्वाधिक दौरा करना, अपने वैश्विक समकक्ष को आमंत्रित करना तथा विदेशी निवेशकों, उद्यमियों व जनमत निर्माताओं को भारत और इसके प्रधानमंत्री के गुणों की प्रशंसा करने के लिए प्रोत्साहित करना.
सरकार ने तकनीक की दुनिया से लेकर समाज के नामचीनों, धनी और प्रसिद्ध लोगों के लिए लाल कालीन बिछायी है. वे प्रधानमंत्री मोदी का प्रशस्तिगान करते हैं. अत्यधिक विदेशी दौरों और उसमें मिलते महत्व से प्रधानमंत्री विश्व स्तर पर देखे-सराहे जाते हैं. पिछले महीने बिल गेट्स की मोदी से मुलाकात हुई. यह उनकी पहली बातचीत नहीं थी. बैठक के बाद बाहर निकलकर गेट्स ने एक्स पर लिखा, ‘मेरी @ नरेंद्र मोदी से भारत के विकास, @2047 में विकसित भारत के लक्ष्य और स्वास्थ्य, कृषि, एआइ और दूसरे क्षेत्रों में भारत की प्रगति पर विस्तार से बातचीत हुई. यह देखना प्रभावी है कि भारत में नवाचार किस तरह प्रगति को दिशा दे रहा है.’
लेक्स फ्रिडमैन के साथ तीन घंटे के पॉडकास्ट प्रोग्राम में मोदी से विभिन्न मुद्दे पर बात हुई, जैसे कि प्रशासन, तकनीकी और वैश्विक संबंधों के बारे में उनके विचार क्या हैं. ये सब विभिन्न मुद्दों को उनके व्यक्तिगत राय से जोड़कर भारत को एक ऐसे उभरते राष्ट्र के रूप में पेश करने की कोशिश है, जिसकी जड़ परंपरा में जुड़ी है, पर जो तकनीक और कूटनीति में आधुनिक है. फ्रिडमैन ने इस पॉडकास्ट को ‘जीवन की सबसे प्रभावशाली बातचीत’ बताया, और जिसका लक्ष्य वैश्विक श्रोताओं तक पहुंचना था. मोदी ने एक्स पर प्रतिक्रिया दी, ‘@लेक्सफ्रिडमैन के साथ बहुत आकर्षक बातचीत रही, जिसमें मेरे बचपन, हिमालय में बिताये गये समय और सार्वजनिक जीवन की मेरी यात्रा समेत विविध मुद्दे थे. इस संवाद का हिस्सा बनें.’
अपने वैश्विक श्रोताओं को ध्यान में रखते हुए मोदी ने अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम में दूसरी बार जर्मन गायिका-गीतकार कैसमै का जिक्र किया, जो भारतीय संगीत और संस्कृति से अपने जुड़ाव के कारण प्रसिद्ध हैं. उन्होंने पोस्ट किया, ‘भारतीय संस्कृति के प्रति वैश्विक उत्सुकता बढ़ती जा रही है, और कैसमै जैसी कलाकारों ने संस्कृतियों की खाई को पाटने में बड़ी भूमिका निभायी है. उन्होंने भारत की समृद्ध, गहरी और विविधता से भरी विरासत को दर्शाने में बड़ा योगदान दिया है.’ भारत-चीन कूटनीतिक संबंधों के 75 साल पूरे होने पर केंद्र सरकार ने शी जिनपिंग को औपचारिक तौर पर न्योता भेजकर भी चौंकाया. इस अवसर पर मोदी ने जिनपिंग से फोन पर बात की, तो विदेश सचिव विक्रम मिस्री केक काटने के लिए चीनी दूतावास के आमंत्रण पर पहुंचे. चूंकि दोनों देशों के बीच सीमा संबंध अब भी अनसुलझे हैं, सो इस दोतरफा गर्मजोशी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नोटिस किया गया.
घरेलू नतीजे की परवाह किये बगैर प्रधानमंत्री ने बैंकाक में बांग्लादेश के अंतरिम सरकार के सलाहकार मोहम्मद यूनुस के साथ बैठक की. यूनुस बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के खिलाफ हुई हिंसा के समर्थक थे. और मोदी ने तब उन्हें चेतावनी दी थी कि बांग्लादेश यदि इस लूट और खूनखराबे पर अंकुश नहीं लगाता है, तो उसे आर्थिक और कूटनीतिक कीमत चुकानी पड़ सकती है.
आगामी मई में मोदी सरकार पहली बार वर्ल्ड ऑडियो विजुअल एंड इंटरटेनमेंट समिट (डब्ल्यूएवीइएस) की मुंबई में मेजबानी कर रही है. यह भारत को मनोरंजन, कला और तकनीक के क्षेत्र में वैश्विक हब बनाने के मोदी के रणनीतिक एजेंडे के बारे में बताता है. ऐसे आयोजन भारत को विश्वगुरु बनाने और इसे अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने की मोदी के प्रयासों का नतीजा हैं. इस आयोजन में सत्य नडेला और सुंदर पिचाई जैसे दिग्गजों की मौजूदगी रहेगी और इसके लिए 400 करोड़ रुपये का बजट है. अंतरराष्ट्रीय दिग्गजों को बुलाने और अपनी ओर आकर्षित करने के प्रधानमंत्री के इन प्रयासों पर सवाल भी उठते हैं कि अपने प्रधानमंत्री काल के मूल्यांकन के लिए क्या वह वैश्विक राय पर निर्भर हैं?
प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी, दोनों का कार्यकाल कम से कम एक दशक रहा. दोनों ने अनेक विदेशी दौरे किये. पर दोनों के नजरिये और नतीजे में भिन्नता रही. मनमोहन सिंह ने कुल 73 विदेशी दौरे किये थे, और 46 देशों की यात्रा की थी. उन्होंने अमेरिका का 10 बार और रूस का आठ बार दौरा किया था. जबकि नरेंद्र मोदी ने अब तक 87 विदेश दौरे किये और 73 देशों की यात्रा की है. अमेरिका के नौ, फ्रांस के आठ और चीन के पांच दौरे भारत के निवेश तथा सुरक्षा हितों और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की प्राथमिकता तय करने के बारे में बताते हैं. मनमोहन सिंह के विदेशी दौरे जहां भारत की विदेश नीति की निरंतरता के बारे में बताते थे, वहीं मोदी की आक्रामक कूटनीति ने भारत का कद बढ़ाया है. यह अलग बात है कि इन दो प्रधानमंत्रियों के विदेश दौरे के खर्च की आलोचना हुई.
मनमोहन सिंह के विदेश दौरे पर 700 करोड़ रुपये, जबकि मोदी के विदेश दौरे पर 3,500 करोड़ रुपये खर्च हुए. बेशक मोदी का व्यक्तिगत करिश्मा और संघ आधारित नजरिये से भारत की आवाज तेज होकर गूंज रही है, लेकिन आलोचना बरकरार है: वह यह कि इसके लिए जितनी आर्थिक और राजनीतिक कीमत चुकायी गयी, क्या राष्ट्र को लाभ उस अनुपात में मिला है? आधिकारिक आकलन के मुताबिक, मोदी के एक दशक से अधिक के प्रधानमंत्री काल में 60 से अधिक वैश्विक नेताओं को विभिन्न अवसरों पर आमंत्रित किया गया. खुद मोदी ने जी-20 की मेजबानी की, जिसमें वैश्विक नेताओं को आमंत्रित किया गया था. चूंकि 2047 में भारत की आजादी के 100 साल पूरे होंगे, ऐसे में, मोदी के दौरों और उन्हें मिले वैश्विक प्रचारों को केवल उनकी लंबी विदेश यात्राओं और उनके बारे में वैश्विक दिग्गजों की टिप्पणियों से नहीं, बल्कि खुद उनकी व्यक्तिगत शैली और उनके वक्तव्यों के सार से भी आंका जायेगा.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)