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जेवलिन मिसाइल से बढ़ेगी भारत की युद्धक क्षमता

Javelin missile : पाकिस्तान के साथ युद्ध की स्थिति में जेवलिन एटीजीएम भारत की युद्धक क्षमता को कई गुना बढ़ा देगी, क्योंकि यह अत्यंत घातक है. राजस्थान के रेगिस्तानों या पंजाब के मैदानों में बख्तरबंद मुठभेड़ों के दौरान, जेवलिन मिसाइलों का इस्तेमाल दुश्मन के युद्धक टैंकों और अन्य बख्तरबंद हथियारों को नष्ट करने के लिए किया जा सकेगा.

-कर्नल संजय बनर्जी
(रिटायर्ड)-

Javelin missile : पहलगाम हमले के बाद हुआ ऑपरेशन सिंदूर, वस्तुतः भारत की बेहतर मिसाइल शक्ति का प्रदर्शन था, जिसमें लंबी दूरी से दुश्मन के ठिकानों को नष्ट करने की हमारी क्षमता से पूरी दुनिया परिचित हुई थी, भले ही यह संघर्ष अल्पकालिक था. हमारे पूर्वी या पश्चिमी विरोधियों (चीन और पाकिस्तान) के साथ पारंपरिक युद्ध केवल वायु शक्ति, मिसाइलों या लंबी दूरी की तोपों तक ही सीमित नहीं रहने वाला है, बल्कि इन दोनों देशों के साथ बड़े स्तर पर होने वाले युद्ध की स्थिति में हमारी युद्ध मशीनरी के सभी तत्वों को शामिल करना होगा. हमारी पश्चिम की भूभागीय और भौगोलिक परिस्थितियां ऐसी हैं कि पाकिस्तान के साथ युद्ध की स्थिति में दोनों पक्षों से युद्धक टैंकों और बख्तरबंद कार्मिक वाहनों की जरूरत पड़ेगी, जैसा कि 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्धों के दौरान देखने को मिला था. ऐसी स्थिति में जेवलिन एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल भारत के लिए काफी मददगार साबित होगी.


दुश्मन के युद्धक टैंकों और बख्तरबंद कार्मिक वाहनों को ध्वस्त करने में एंटी टैंक गाइडेड मिसाइलें (एटीजीएम) अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. संभवत: इसी कारण भारत-अमेरिका के बीच जेवलिन मिसाइलों की खरीद के सौदे ने लोगों का इतना ध्यान आकर्षित किया है. विदित हो कि हाल ही में अमेरिका ने भारत को सौ जेवलिन एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल और 25 कमांड लॉन्च यूनिट्स (मिसाइल के लिए लॉन्चर) देने को मंजूरी दी है. अमेरिका की रेथियॉन और लॉकहीड मार्टिन द्वारा विकसित जेवलिन मिसाइल का यह नवीनतम संस्करण दुनिया की अब तक की सबसे शक्तिशाली और घातक एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइलों में से एक है. इसकी मारक क्षमता की सटीकता 94 प्रतिशत है और रूस-यूक्रेन युद्ध में इसकी शक्ति सबने देखी है. यह एक पोर्टेबल मिसाइल है.

हल्के वजन के कारण इसे प्रशिक्षित सैनिकों द्वारा कंधे पर लाद एक स्थान से दूसरे स्थान पर आसानी से ले जाया जा सकता है. ऑप्टिकल साइट और थर्मल इमेजिंग से लैस होने के कारण यह कम रोशनी और रात में भी बख्तरबंद वाहन या किसी अन्य लक्ष्य को 2,500 मीटर की दूरी तक मारने में सक्षम है. एक अलग लांचर के साथ इस दूरी को 4,750 मीटर तक बढ़ाया जा सकता है. एक बार टारगेट लॉक कर लेने के बाद, मिसाइल अंतर्निहित इंफ्रारेड इमेजिंग सीकर की मदद से अपने आप ही लक्ष्य पर पहुंचकर उस पर प्रहार कर देती है.


बख्तरबंद टैंकों की बात करें, तो इसके लिए इस मिसाइल में ऊपर से नीचे की ओर हमले का विकल्प है. इस स्थिति में मिसाइल ऊपर की ओर जाकर दुश्मन के युद्धक टैंक के शीर्ष या बुर्ज पर निशाना साधते हुए नीचे आती है, जो उसका सबसे कमजोर हिस्सा होता है. यह मिसाइल दो चरणों में प्रहार करती है. जेवलिन एटीजीएम में बंकरों, भवनों और हेलीकॉप्टरों को सीधा निशाना बनाने (डायरेक्ट अटैक मोड) का भी विकल्प है. प्रतिघात, यानी बैकब्लास्ट से ऑपरेटर की सुरक्षा के लिए, जेवलिन में एक सॉफ्ट लॉन्च है, यानी मिसाइल को पहले एक छोटे गैस चार्ज द्वारा सुरक्षित दूरी पर फेंका जाता है और उसके बाद रॉकेट इंजन फायर होकर मिसाइल को उसके लक्ष्य तक पहुंचा देता है. यह एक ‘फायर एंड फॉरगेट’ मिसाइल है, जो मिसाइल दागने वाले को तुरंत अलग होकर किसी सुरक्षित स्थान पर जाने या किसी अन्य लक्ष्य पर निशाना साधने की अनुमति देती है. सॉफ्ट लॉन्च के कारण इस मिसाइल को बंकरों, भवनों या संकीर्ण स्थानों से भी सुरक्षित रूप से दागा जा सकता है.


पाकिस्तान के साथ युद्ध की स्थिति में जेवलिन एटीजीएम भारत की युद्धक क्षमता को कई गुना बढ़ा देगी, क्योंकि यह अत्यंत घातक है. राजस्थान के रेगिस्तानों या पंजाब के मैदानों में बख्तरबंद मुठभेड़ों के दौरान, जेवलिन मिसाइलों का इस्तेमाल दुश्मन के युद्धक टैंकों और अन्य बख्तरबंद हथियारों को नष्ट करने के लिए किया जा सकेगा. कम ऊंचाई पर उड़ान भरने वाले हमलावर हेलिकॉप्टरों के खिलाफ और कमांड बंकरों, गोला-बारूद और ईंधन भंडारों को उड़ाने के लिए भी इसका उपयोग किया जा सकेगा. पहाड़ों में इसका इस्तेमाल दुश्मनों के काफिले और भराई वाहनों (रेप्लेनिशमेंट व्हिकल्स) को निशाना बनाने के साथ ही महत्वपूर्ण मुख्यालयों पर सीधा हमला करने के लिए भी किया जा सकता है.

अब बात चीन की, तो गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद, भारत और चीन ने पूर्वी लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में सीमाओं के दोनों ओर बख्तरबंद टैंक तैनात कर दिये हैं, जहां समतल भूमि और ठंडे रेगिस्तानी पठार युद्ध के अखाड़े बन सकते हैं. ऐसी स्थिति में जेवलिन एटीजीएम बहुत प्रभावी साबित होंगे. जेवलिन मिसाइलें पैराशूट बटालियनों और विशेष बल (कमांडो दस्ते) इकाइयों के शस्त्रागार का हिस्सा हो सकती हैं. एक बार दुश्मन के नियंत्रण वाले क्षेत्र में पहुंचने के बाद ये सैनिक जेवलिन मिसाइलों का उपयोग कर दुश्मन के महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों और ठिकानों को तबाह कर सकते हैं. अंत में, जेवलिन एटीजीएम प्राप्त होने और सिमुलेटरों व अन्य माध्यमों को लेकर आवश्यक जानकारी और प्रशिक्षण दिये जाने के बाद, प्रभारी अधिकारी ही उसकी बेहतर तैनाती कर सकेंगे और जान सकेंगे कि इसका किस तरह उपयोग किया जाये. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)

Prabhat Khabar Digital Desk
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