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जी 7 में पीएम मोदी को निमंत्रण, यानी भारत को अब अनदेखा करना मुश्किल

जी 7 के सदस्य और आमंत्रित देशों के बीच भारत हमेशा से एक सम्मानित मेहमान की तरह उपस्थित होता रहा है. पीएम मोदी 2019 लगातार इन शिखर सम्मेलनों में शामिल होते रहे हैं. हालांकि भारत अग्रणी औद्योगिक देशों के जी7 समूह का सदस्य नहीं है,लेकिन जब फ्रांस ने 2019 मे पहली बार बियारिट्ज़ शिखर सम्मेलन के लिए न्योता दिया, तो फिर उसके बाद भाग लेने का सिलसिला शुरू हो गया.

बिक्रम उपाध्याय (वरिष्ठ पत्रकार एवं विदेशी मामलों के जानकार)

‘आप हमसे हेट या लव कर सकते हो, लेकिन हमें इग्नोर नहीं कर सकते.‘ यह बात भारत के साथ पूरी तरह से लागू होती है. विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, तीसरी बड़ी मिलिट्री शक्ति, सबसे अधिक लोग और एक मजबूत लोकतंत्र के रूप में भारत की पहचान से अब कोई इनकार नहीं कर सकता. यही बात कनाडा के नए प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने कही, जब उनसे पूछा गया कि विरोध के बावजूद जी 7 की बैठक में आने के लिए आपने प्रधानमंत्री मोदी को खुद फोन कर निमंत्रित क्यों किया, तो उन्होंने कहा, जी 7 की टेबल पर कई निर्णय होने वाले हैं, इसलिए उस टेबल पर भारत का होना बहुत जरूरी है.

पीएम मोदी के लिए इस शिखर सम्मेलन में भाग लेने का अवसर इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि यह जी 7 की 50वीं वर्षगांठ हैं. कनाडा के पास इसकी प्रेसीडेंसी है. 15 से 17 जून, 2025 के दौरान अल्बर्टा के कनानैस्किस में विश्व के सबसे मजबूत देशों के प्रमुख इसमें भाग ले रहे हैं. पीएम मोदी ने खुद ट्वीट कर यह जानकारी दी कि वह कनाडा जी 7 की बैठक में जाएंगे. उनकी वहाँ उपस्थिति और उसके असर पर पूरी दुनिया की नजर होगी. वह वहीं से पाकिस्तान के हुक्मरानों को जवाब देंगे, जो जी 7 के निमंत्रण में देरी से उछल रहे थे, और उसे प्रधानमंत्री मोदी के आइसोलेटेड होने का प्रमाण बता रहे थे. प्रधानमंत्री मोदी की कनाडा यात्रा का एक बड़ा असर भारत-अमेरीका संबंधों पर भी होगा, क्योंकि राष्ट्रपति ट्रम्प भी इस जी 7 की मीटिंग में होंगे. दोनों नेता जब एक दूसरे से मिलेंगे तो सारी क्यासगोई खत्म हो जाएगी. भारत, अमेरिका का रणनीतिक साझीदार बना रहेगा या ट्रैड टैरिफ के नाम पर कहीं कोई बाधा खड़ी होगी, इस पर भी खुलासा हो जाएगा.

जी 7 के सदस्य और आमंत्रित देशों के बीच भारत हमेशा से एक सम्मानित मेहमान की तरह उपस्थित होता रहा है. पीएम मोदी 2019 लगातार इन शिखर सम्मेलनों में शामिल होते रहे हैं. हालांकि भारत अग्रणी औद्योगिक देशों के जी7 समूह का सदस्य नहीं है,लेकिन जब फ्रांस ने 2019 मे पहली बार बियारिट्ज़ शिखर सम्मेलन के लिए न्योता दिया, तो फिर उसके बाद भाग लेने का सिलसिला शुरू हो गया. भारत और कनाडा दोनों देशों के लिए भी यह अवसर होगा कि आपसी संबंधों को फिर से सामान्य बनाया जाए. वैसे दोनों देश एक दूसरे की जरूरत हैं. साझा हितों के कई आयाम हैं. खास कर तब और जब अमेरिका और कनाडा के बीच भी तनातनी चल रही है.

ट्रम्प के विलय प्रस्ताव पर कनाडा में बड़ी कड़ी प्रतिक्रिया जताई जा रही है. डोनाल्ड ट्रम्प की कनाडा के प्रति बयानबाजी से आम कनाडाई काफी नाराज है. कनाडा के नए प्रधानमंत्री मार्क कार्नी के सामने कनाडाई अर्थव्यवस्था को ध्वस्त होने से बचाने की बड़ी चुनौती है. शायद उन्हें यह आभास है कि प्रधानमंत्री मोदी इसमें उनकी बड़ी मदद कर सकते हैं. ट्रम्प कनाडा के खिलाफ व्यापार युद्ध का ऐलान कर चुके हैं और भारत समावेशी व्यापार समझौते के लिए तैयार है.

जी 7 की यह बैठक प्रधानमंत्री मोदी और प्रधानमंत्री मार्क कार्नी के लिए एक उपयुक्त मंच प्रदान करेगी, जहां से आपसी मतभेदों को भूलकर नई शुरुआत की पहल की जा सकेगी. कनाडा और भारत के बीच कड़वाहट के मुख्य कारणों में एक कारण कट्टरपंथी सिखों के कनाडा की राजनीति में बढ़ता प्रभाव है. और इसकी शुरुआत 2015 में जस्टिन ट्रूडो के कनाडा के प्रधानमंत्री बनने के बाद हुईं. ट्रूडो ने खालिस्तान आंदोलन चलाने वाले कट्टरपंथियों को अपने मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया. फिर उसके बाद कनाडा के गुरुद्वारों को भारत विरोधी गतिविधियों का केंद्र बनने दिया गया. यह सब तब की कनाडा सरकार ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर होने दिया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन सब गतिविधियों पर कनाडा सरकार से रोक लगाने का आग्रह किया, लेकिन ट्रूडो नज़रअंदाज़ करते रहे. धीरे धीरे दोनों प्रधानमंत्रियों के बीच तल्खी बढ़ती गई.

भारत किसी भी स्थिति में कट्टरपंथ का समर्थन करने वाली सरकार के साथ चलने को तैयार नहीं हो सकता. ट्रूडो यह जानते थे कि भारत में रह रहे सिख बहुतखुश हैं. यहाँ कभी भी खालिस्तान नाम के अलगाववाद को समर्थन नहीं मिला, लेकिन कनाडा से पंजाब को अस्थिर करने की कोशिश जारी रही. कनाडा के कुछ सिखों ने काल्पनिक उद्देश्य को पूरा करने के लिए पूरे ट्रूडो सरकार का इस्तेमाल किया. यहाँ तक कि भारतीय अधिकारियों और सरकारी प्रतिनिधियों के कनाडा के गुरुद्वारों में जाने की अनुमति नहीं दी गई और कनाडा के राजनीतिक दल खुलेआम कनाडा में खालिस्तान आंदोलन का समर्थन करते रहे. जहां तक सिख अलगाववादी नेता की हत्या में भारत कि भूमिका संबंधी आरोप की बात है तो मार्क कार्नी ने खुद कहा है कि कानून अपना काम कर रहा है.

कनाडा यदि भारत विरोधी अलगवादियों और कट्टरपंथियों का समर्थन करना बंद कर दे तो भारत की कनाडा से कोई शिकायत ही नहीं रहेगी. और यह कोई बड़ी मांग भी नहीं है. प्रधानमंत्री मोदी और प्रधानमंत्री मार्क कार्नी अगर पुराने मतभेद भूल कर आगे बढ़ने का फैसला करते हैं तो दोनों देश अपने अपने लोगों के लिए राहत के नए दरवाजे खोल सकते हैं. दोनों देशों ने पिछले दिनों एक दूसरे के राजनयिकों को बाहर निकाल दिया था, अब फिर बहाल किये जा सकते हैं. कनाडा आकर पढ़ने वाले अंतरराष्ट्रीय छात्रों में भारतीय छात्रों की संख्या सबसे ज्यादा रहती है. लेकिन तनाव के कारण वहां रहने वाले बहुत सारे छात्रों के लिए कई तरह की समस्याएं हो गई थीं. अब नए संबंधों के साथ छात्रों की कठिनाइयां दूर हो सकती हैं.

भारत इस समय कनाडा को लगभग 4.1 बिलियन अमरीकी डॉलर का निर्यात करता है और लगभग इतने का ही कनाडा से आयात भी करता है. लेकिन इस समय व्यापार संबंध बढ़ने की बहुत संभावना है ,क्योंकि इसके आधार पहले से ही मौजूद है. 2010 हमने मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किये. 2015 में कनाडा ने भारत के साथ परमाणु समझौते पर भी हस्ताक्षर किए और भारत को यूरेनियम की आपूर्ति की. 2011 में कनाडा ने “भारत का वर्ष” पर्व भी मनाया. यदि कनाडा का नया नेतृत्व खालिस्तानी के प्रति अपनी पुरानी नीति को बदल देता है तो भारत का वह दि बेस्ट पार्टनर सिद्ध हो सकता है.

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