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Indus Water Treaty : जरूरी था पाकिस्तान का पानी बंद करना, पढ़ें विवेक शुक्ला का लेख

Indus Water Treaty : सिंधु जल संधि पर 19 सितंबर, 1960 को कराची में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किये थे. विश्व बैंक ने उस संधि में मध्यस्थ की भूमिका निभायी थी. उस संधि की जड़ें भारत के विभाजन में थीं, जिसने नदियों को भी विभाजित कर दिया था, जो दोनों नवगठित देशों के लिए जीवन रेखा थीं.

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Indus Water Treaty : सिंधु जल संधि को तत्काल प्रभाव से स्थगित करके भारत ने पाकिस्तान के सामने अस्तित्व का संकट खड़ा कर दिया है. भारत ने इतना कठोर कदम 1965, 1971 के युद्धों और कारगिल के समय भी नहीं उठाया था, पर 2016 में उरी आतंकी हमले के बाद देश में इस संधि की समीक्षा करने या इसे रद्द करने की मांग उठी थी. तब भारत ने कहा था कि ‘खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते’ और संधि के तहत अपने अधिकारों का पूरी तरह से उपयोग करने का इरादा जताया था, जिसमें पश्चिमी नदियों पर जलविद्युत क्षमता का विकास और पूर्वी नदियों के पानी का अधिकतम उपयोग शामिल है.

पाकिस्तान एक शुष्क देश है, जहां पानी की उपलब्धता सीमित है. संधि के तहत पाकिस्तान को तीन पश्चिमी नदियों, सिंधु, झेलम और चिनाब का उपयोग करने का अधिकार मिला था. ये नदियां पाकिस्तान में बहने वाले कुल पानी का करीब 80 फीसदी हिस्सा हैं. पाकिस्तान की अधिकांश आबादी और खेती इन्हीं नदियों के पानी पर निर्भर है. उसकी अर्थव्यवस्था काफी हद तक कृषि पर आधारित है और 90 फीसदी कृषि सिंचाई पर निर्भर है और सिंचाई का अधिकांश पानी सिंधु, झेलम और चिनाब से आता है. संधि में छह नदियों को दो समूहों में विभाजित किया किया था. पूर्वी नदियों में सतलुज, ब्यास और रावी, जबकि पश्चिमी नदियों में सिंधु, झेलम और चिनाब हैं.

पाकिस्तान में गेहूं, चावल, कपास और गन्ना जैसी फसलें सिंधु, झेलम और चिनाब के पानी से सिंचित होती हैं. अब संधि के स्थगित होने से पाकिस्तान की खाद्य सुरक्षा और कृषि निर्यात गंभीर रूप से खतरे में पड़ जायेंगे. पाकिस्तान के लिए पेयजल और अन्य घरेलू जरूरतों का मुख्य स्रोत यही नदियां हैं. वह अपनी ऊर्जा जरूरतें पूरी करने के लिए इन नदियों पर बने बांधों से जलविद्युत उत्पन्न करता है. मंगला और तरबेला जैसे बड़े बांध इन्हीं पश्चिमी नदियों पर स्थित हैं. उसके दो बड़े प्रातों-पंजाब और सिंध के बीच इन दिनों पानी के बंटवारे को लेकर खूब विवाद चल रहा है. सिंध का दावा है कि पंजाब उसके हिस्से का पानी उसे नहीं देता.

सिंधु जल संधि पर 19 सितंबर, 1960 को कराची में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किये थे. विश्व बैंक ने उस संधि में मध्यस्थ की भूमिका निभायी थी. उस संधि की जड़ें भारत के विभाजन में थीं, जिसने नदियों को भी विभाजित कर दिया था, जो दोनों नवगठित देशों के लिए जीवन रेखा थीं. विभाजन के बाद नदियों के उद्गम स्थल और प्रमुख नहरों के हेडवर्क्स भारत में आ गये, जबकि पाकिस्तान का एक बड़ा कृषि क्षेत्र इन नदियों के पानी पर निर्भर था. हैडवर्क्स दरअसल नदी के किनारे या उसके प्रवाह की शुरुआत में बनाया गया इंजीनियरिंग ढांचा होता है, जो जल नियंत्रण, प्रवाह प्रबंधन और खेती के लिए पानी की आपूर्ति आदि सुनिश्चित करता है. उदाहरण के लिए, भाखड़ा बांध (सतलुज नदी पर) का हेडवर्क पानी को सिंचाई नहरों में डायवर्ट करता है, तो गंगा नहर का हेडवर्क हरिद्वार में गंगा नदी से पानी को नहर में ले जाता है. कूटनीतिक मामलों के जानकार मानते हैं कि सिंधु जल संधि पाकिस्तान की जल सुरक्षा, कृषि, अर्थव्यवस्था, ऊर्जा उत्पादन और लाखों लोगों के जीवनयापन के लिए बेहद खास है. इसके बिना पाकिस्तान को गंभीर जल संकट का सामना करना पड़ेगा, जिसका उसके अस्तित्व पर विनाशकारी प्रभाव पड़ सकता है.

अब संधि स्थगित होने पर भारत इन नदियों के पानी का प्रवाह रोक सकता है, जिससे पाकिस्तान के पंजाब और सिंध प्रांतों में, जो उसके मुख्य कृषि क्षेत्र हैं, सिंचाई के लिए पानी की भारी किल्लत होगी. इससे पानी पर निर्भर गेहूं, चावल, कपास और गन्ने का उत्पादन प्रभावित होगा, अनाज और अन्य खाद्य पदार्थों की कमी होगी, कीमतें आसमान छूने लगेंगी तथा बड़ी आबादी के लिए भुखमरी का खतरा पैदा हो जायेगा. इससे कपड़ा और चीनी जैसे उद्योगों पर बुरा असर पड़ेगा तथा पशुधन के लिए पीने के पानी और चारे की उपलब्धता पर संकट पैदा होगा. कूटनीति और जल वितरण संबंधी मामलों के जानकार राजकमल गोस्वामी कहते हैं कि सिंधु जल संधि पर भारत का फैसला पाकिस्तान के विरुद्ध युद्ध छेड़ने के बराबर है, बशर्ते भारत इसे लागू कर सके. सिंधु जल संधि स्थगित करने का असली प्रभाव तभी पड़ेगा, जब हम नदियों की धारा मोड़ सकेंगे या बड़े बांध बना कर उनकी जलधारा को नियंत्रित कर सकेंगे. वैसे में, वहां के बड़े-बड़े शहरों की जलापूर्ति बाधित हो जायेगी.

चूंकि यह संधि विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुई थी, ऐसे में, इसके स्थगित होने से पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र और विश्व बैंक में भारत के खिलाफ शिकायत दर्ज करेगा. पाकिस्तान में भुखमरी फैलेगी तो कई मानवाधिकार संगठन आगे आयेंगे और भारत पर कूटनीतिक दबाव बढ़ेगा. पर अब जब निर्णय ले लिया, तो कदम पीछे नहीं हटाना है. पाकिस्तान का पानी बंद करना युद्ध छेड़ने से कम नहीं है और उसकी प्रतिक्रिया भी उसी तरह की होगी. पहलगाम के प्रतिकार में भारत सरकार का यह कदम सही दिशा में उठाया गया कदम है जिसकी चोट बहुत गहरी और नाकाबिले बर्दाश्त होगी.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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