India Attack Pakistan : ऑपरेशन सिंदूर वर्ष 1971 के बाद से पाकिस्तान के चेहरे पर जमाया गया सबसे जोरदार तमाचा है, जो कई दृष्टियों से अभूतपूर्व है. पहला यह कि 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 की बालाकोट एयरस्ट्राइक में एलओसी पार करके हमला किया गया था. मगर इस बार बहावलपुर में जैश-ए-मोहम्मद के केंद्र पर और मुरीदके में लश्कर-ए-तैयबा के आतंकियों के गढ़ पर वज्रपात करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सीमा पार की गयी. इसके बावजूद नागरिक ठिकानों और पाकिस्तानी सेना के ठिकानों पर सीधा हमला नहीं किया गया. दूसरी विशेषता यह है कि चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ व्यवस्था के अंतर्गत हुई इस पहली कार्रवाई में सेना के तीनों अंगों ने संयुक्त कार्रवाई का शानदार प्रदर्शन किया.
भारत की खुफिया एजेंसियों और राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी ने हमले के निशाने बहुत सूझबूझ से तय करने में भी प्रशंसनीय मदद की. चाणक्य नीति को प्रतिबिंबित करता यह हमला अत्यंत अप्रत्याशित और चौंकाने वाला बनाये रखा गया. प्रधानमंत्री के अन्य सरोकारों के बीच नागरिकों में मॉक ड्रिल की घोषणा ने भी इसकी गोपनीयता बनाये रखने में मदद की. अब आगे क्या? इसका एक ही उत्तर है. अमेरिका और रूस बीच में नहीं पड़ने वाले, चीन अमेरिका से टैरिफ लड़ाई में व्यस्त है. पाकिस्तान की आर्थिक हालत खोखली है. वह तुर्किये, अजरबैजान और मलयेशिया के बूते पर इस आग को और फैलाने की नहीं सोचेगा. हम सब जानते हैं कि परमाणु बम की धमकी खोखली है. ऑपरेशन सिंदूर पाकिस्तान का स्थायी इलाज नहीं हो सकता.
पाकिस्तान का शासन तंत्र भारत पर हजार चाकू के घाव करते रहने की बात करके ही गद्दीनशीन रहा है. भविष्य में भी यह तस्वीर नहीं बदलने वाली. इस क्षय से हमें दीर्घकाल तक लड़ते रहना पड़ेगा, यह सच हम भुला नहीं सकते. हालांकि आज की वैश्विक परिस्थितियों में पाकिस्तान को ऐसा सबक सिखाना कठिन है, जो उसे हमेशा याद रहे. जब तक चीन का हाथ पकिस्तान की पीठ पर है, तब तक हमें व्यापक अर्थात फुलस्केल युद्ध छेड़ने से बचना होगा. यह भी याद रखना होगा कि युक्रेन में जिस युद्ध की शुरुआत दो-चार हफ्तों की समयसीमा की सोचकर की गयी थी, वह आज भी चल रहा है. हमास के आतंकी हमले से बंधक बनाये गये अपने नागरिकों को छुड़ाने के लिए इस्राइल को बेहद भीषण और लंबे समय वाला विनाश करना पड़ा और अब भी वहां शांति बहाल नहीं हुई है. ऐसे में, हम पाकिस्तान के विरुद्ध पूरा युद्ध छेड़ने की सोचें, तो वह देश के सर्वांगीण आर्थिक विकास के लिए घातक सिद्ध होगा, भले पाकिस्तान इसमें पूरी तरह बर्बाद हो जाये. यही वह कारण भी है, जिसके चलते हमें पाकिस्तान के कुछ सिरफिरे नेताओं की परमाणु बम फोड़ने की गीदड़धमकी को गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं है.
पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद से ही जिज्ञासा बनी हुई थी कि तीनों सेनाध्यक्ष ऐसा कौन-सा कदम उठा सकते हैं, जो जंगल की आग की तरह बेकाबू न होने पाये, फिर भी पाकिस्तान के गाल पर एक करारे थप्पड़ का काम करे. उड़ी हमले के बाद सर्जिकल स्ट्राइक द्वारा और बालाकोट में सर्जिकल हवाई हमले से आतंकियों के गढ़ का विनाश करके ऐसा सबक कुछ समय पहले ही पढ़ाया गया था. लेकिन जाहिर है कि पाकिस्तान का जो सैन्य नेतृत्व अट्ठानबे हजार सैनिकों के भारत के सामने आत्मसमर्पण को भूल सकता है, उसकी पीठ पर सर्जिकल स्ट्राइक की कारवाई बतख की पीठ पर पानी की बूंद जैसा असर ही छोड़ पाती. ऐसे में, इस बार भारतीय सेना को कुछ ऐसा करना ही था, जिसका असर पूरी तरह अस्थायी न हो.
ऐसे में ध्यान आता है कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर या तथाकथित आजाद कश्मीर का भारत में विलय करने के प्रश्न पर अधिकांश राजनीतिक दलों में मतैक्य है. कश्मीर के अधिकांश नागरिकों को भी इस विलय से आर्थिक और सामाजिक-धार्मिक संतोष मिलेगा. ऐसे अभियान में उनकी तरफ से सहमति मिलने की आशा की जा सकती है. लेकिन पूरा पाक अधिकृत कश्मीर कब्जे में करने के लिए किया गया संघर्ष लंबा छिड़ सकता है. इसे सीमित रखना जरूरी है. पीर पंजाल पर्वतमाला के दक्षिणी क्षेत्र पर त्वरित हमला कर कब्जा किया जा सकता है, लेकिन उत्तरी पीर पंजाल लंबे संघर्ष की मांग करेगा. ऐसे में, आगे के अभियान के लिए सबसे सटीक लक्ष्य हाजी पीर दर्रा हो सकता है. वही हाजी पीर दर्रा, जो रावलपिंडी से श्रीनगर को जोड़ने वाले मार्ग का नियंत्रण करता है.
वही हाजी पीर, जिसे भोले भारत ने 1965 के युद्ध में जीतकर भी अतिशय सदाशयता से पकिस्तान को वापस सौंप दिया. इस बार हमारी थलसेना को हाजी पीर पर कब्जा करने के लिए सशक्त राफेल जैसे लड़ाकू विमानों से पूरी सहायता मिल सकती है. यह ऑपरेशन अधिक लंबा नहीं खिंचने वाला. भारतीय सेना के हाथों से जीता गया हाजी पीर साठ साल पहले तो फिसल गया, लेकिन इस बार पाकिस्तान भी कोई लंबा युद्ध छेड़ने की स्थिति में नहीं है. उसकी आर्थिक और आंतरिक हालत इतनी नाजुक है कि उसका प्रतिरोध सीमित ही रहेगा. अतः हाजी पीर की जीत और भारत में विलय पीओके के भारत में विलय का पहला कदम हो सकता है. दूसरे विकल्प के रूप में बलूचिस्तान के आंतरिक संघर्ष को खुला सहयोग देने का समय भी अब आ गया है. पर मेरे विचार से हाजी पीर के विलय पर हाँ जी कहने का सही समय अब है.