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बातचीत से समाधान

अब जब सरकार ने सभी पहलुओं पर विचार-विमर्श करने की बात कही है, तो किसान नेताओं को भी सकारात्मक रुख दिखाते हुए बातचीत में शामिल होना चाहिए.

कृषि कानूनों के विरोध में विभिन्न राज्यों से आये किसान दिल्ली की सीमा पर जमा हैं. इनका कहना है कि ये कानून उनके हितों के खिलाफ हैं और इन्हें वापस लिया जाना चाहिए. केंद्र सरकार भी लगातार यह समझाने की कोशिश कर रही है कि इन कानूनों से किसानों को फायदा होगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को अपने रेडियो संबोधन ‘मन की बात’ में कहा कि संसद ने बहस-विचार के बाद कृषि कानूनों को पारित किया है और इन सुधारों से खेती-किसानी में बेहतरी होगी. आंदोलन का संज्ञान लेते हुए गृह मंत्री अमित शाह भी अनुरोध कर चुके हैं कि किसान पहले दिल्ली में एक निश्चित जगह पर आ जायें, फिर सरकार उनसे सभी मसलों पर विस्तार से बात करने के लिए तैयार है.

लेकिन आंदोलनरत किसानों ने इस प्रस्ताव को मानने से इनकार कर दिया है. उल्लेखनीय है कि पंजाब में एक माह से अधिक समय से विरोध प्रदर्शन हो रहे थे और रेलगाड़ियों का आना-जाना बंद हो गया था. देश के अन्य हिस्सों में भी कानूनों का विरोध हुआ है. जब आंदोलनकारी दिल्ली की ओर आ रहे थे, तब कुछ जगहों पर पुलिस ने उन्हें बलपूर्वक रोकने की भी कोशिश की. सरकार ने पहले भी किसान संगठनों से बातचीत की थी, लेकिन उससे कोई समाधान नहीं निकल सका था. लंबे समय से खेती-किसानी विभिन्न समस्याओं से ग्रस्त है. इनका हल निकालने के साथ उपज और आमदनी बढ़ाने को लेकर सरकार ने अनेक योजनाएं चलायी हैं.

उद्यमिता बढ़ाने और व्यापक स्तर पर व्यावसायिक इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करना भी सरकार की प्राथमिकता में है. वर्तमान आंदोलन का एक प्रमुख मुद्दा न्यूनतम समर्थन मूल्य और सरकारी खरीद से संबंधित है. सरकार ने स्पष्ट कहा है कि ये व्यवस्थाएं पहले की तरह बरकरार रहेंगी. नये कानूनों को लेकर जानकारी और जागरूकता पर भी सरकार को ध्यान देना चाहिए ताकि समुचित दाम पर खरीद-बिक्री से जुड़ी किसानों की आशंकाओं का निदान हो सके. अब जब सरकार ने सभी पहलुओं पर विचार-विमर्श करने की बात कही है, तो किसान नेताओं को भी सकारात्मक रुख दिखाते हुए बातचीत में शामिल होना चाहिए.

लोकतंत्र में नागरिकों के समूहों को अपना पक्ष रखने और सरकार की आलोचना व विरोध का पूरा अधिकार है. किसानों ने इस अधिकार का प्रयोग किया है. इतने दिनों में उन्होंने देश व सरकार को अपनी चिंताओं से अवगत करा दिया है. लेकिन आखिरकार बातचीत से ही कोई हल निकाला जा सकता है. हमारे देश में कुछ हिस्सों को छोड़कर औसत कृषि उत्पादन कई विकसित व विकासशील देशों की तुलना में कम है. इसके बावजूद खाद्यान्न और अन्य उत्पादों में देश को आत्मनिर्भर बनाकर तथा निर्यात बढ़ाकर किसानों ने अपने जीवट को दिखा दिया है. यदि तकनीक और बाजार सुलभ हों, तो विकास की गति बहुत बढ़ सकती है. उम्मीद है कि सरकारी पक्ष और किसान जल्दी ही इस टकराव को खत्म करने का रास्ता निकाल लेंगे.

Posted by : Pritish Sahay

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