Virat Kohli : भारतीय क्रिकेट को नयी ऊंचाइयां दिलाने वाले विराट कोहली अब कभी टेस्ट क्रिकेट में नजर नहीं आयेंगे. वह सिर्फ बल्ले से ही टीम को आश्वस्त नहीं करते थे, बल्कि टीम में नयी ऊर्जा भरने का काम भी करते थे. बल्लेबाज और कप्तान के तौर पर वह बदलते हुए भारत के प्रतिनिधि थे. उन्होंने अपनी बल्लेबाजी से आक्रामकता के युग की शुरुआत की, जो खेल के अलावा कभी-कभी उनके बर्ताव में भी दिखती थी. बेशक कई बार मैदान पर उनके आक्रामक व्यवहार की आलोचना भी होती थी, पर वह टीम के बहुत काम आती थी. इसलिए भी टेस्ट क्रिकेट से उनके संन्यास लेने का फैसला क्रिकेट प्रशंसकों को अच्छा नहीं लग रहा. दरअसल उनकी फिटनेस को देखते हुए सभी को लग रहा था कि वह अभी तीन-चार साल और खेलेंगे. अगले महीने से शुरू हो रहे इंग्लैंड दौरे पर विराट कोहली की कमी निश्चित तौर पर महसूस की जायेगी.
हालांकि पिछले कुछ समय से जारी उनके लचर प्रदर्शन की अनदेखी भी नहीं की जा सकती थी. सही मायने में कोविड के बाद से वह कभी पूरी रंगत में खेलते हुए नजर नहीं आये. पिछले साल घर में न्यूजीलैंड के खिलाफ सीरीज हारने के दौरान खराब प्रदर्शन के बाद जब ऑस्ट्रेलिया दौरे के पहले टेस्ट में उन्होंने शतक जमाया, तो लगा कि वह रंगत में लौट आये हैं. पर यह खुशी क्षणिक साबित हुई. विराट के साथ सबसे बड़ी दिक्कत यह रही कि वह लगातार एक ही तरह से आउट हो रहे थे. इसकी वजह रिफलेक्सेस में कमी आना हो सकता है. इसके बावजूद रोहित शर्मा के संन्यास लेने के पांच दिन बाद विराट कोहली द्वारा टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेने की घोषणा आश्चर्यजनक तो है ही. हालांकि इसके संकेत इस साल की शुरुआत में ऑस्ट्रेलिया दौरे के बाद ही मिलने लगे थे. महान क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर ने विराट के संन्यास लेने पर कहा, ‘तुमने भारतीय क्रिकेट को रन से भी ज्यादा बहुत कुछ दिया. तुमने जुनूनी प्रशंसकों और खिलाड़ियों को एक पीढ़ी दी.’
हम सभी जानते हैं कि सुनील गावस्कर और सचिन तेंदुलकर ऐसे खिलाड़ी हैं, जो एक पीढ़ी की अगुआई करने वाले रहे हैं और विराट कोहली ने भी इस काम को अच्छे से अंजाम दिया है. इसलिए कहा जा रहा है कि एक युग की समाप्ति हो गयी. सचिन तेंदुलकर के संन्यास लेने पर खाली हुई जगह विराट ने बेहद खूबसूरती से भरी थी. अब विराट के टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेने पर जो जगह खाली हुई है, उसे भरने की जिम्मेदारी यंग ब्रिगेड पर है. वैसे भारतीय यंग ब्रिगेड बहुत ही प्रतिभाशाली है.
विराट कोहली ने बल्लेबाजी में तमाम रिकार्ड बनाये हैं. लगातार दो कैलेंडर वर्ष में 75 से ज्यादा के औसत से 1,000 से ज्यादा रन बनाने वाले भी इकलौते बल्लेबाज रहे. वह देश के सफलतम टेस्ट कप्तान भी हैं. उन्होंने सफलतम टेस्ट कप्तान का तमगा महेंद्र सिंह धोनी को पीछे छोड़कर हासिल किया था. विराट कोहली ने 68 टेस्टों में भारत की कप्तानी करके 40 में जीत हासिल की और महेंद्र सिंह धोनी के सर्वाधिक 27 टेस्ट जीतने का रिकॉर्ड तोड़ा था. आमतौर पर यह कहा जाता है कि कप्तान की जिम्मेदारी कई बार प्रदर्शन को प्रभावित कर देती है. पर कप्तान बनने के बाद विराट कोहली के प्रदर्शन में और चमक आ गयी थी. सात दोहरा शतक जमाने वाले वह दुनिया के इकलौते कप्तान थे. अलबत्ता बढ़ती उम्र के साथ खेल के साथ तालमेल बिठाना कठिन हो जाता है. टेस्ट मैच खेलने के लिए बहुत शारीरिक और मानसिक ताकत की जरूरत होती है.
भले ही विराट को दुनिया के सर्वश्रेष्ठ फिटनेस वाले खिलाड़ियों में शुमार किया जाता है, पर बहुत संभव है कि वह पांच टेस्ट की सीरीज खेलने के लिए अपने को मानसिक रूप से मजबूत नहीं पाते हों. वैसे भी विराट के 2019 के बाद के प्रदर्शन में बहुत गिरावट आ गयी थी. पिछले साल 10 टेस्ट में 24.52 के औसत से उन्होंने मात्र 417 रन ही बनाये. इससे उनके प्रदर्शन में आयी गिरावट को आसानी से समझा जा सकता है. इस खराब प्रदर्शन के साथ ही वह ऑफ स्टंप से बाहर की गेंदों पर ड्राइव करने के प्रयास में लगातार स्लिप और गली में कैच हो रहे थे. दरअसल ऑस्ट्रेलिया दौरे के बाद ही चयनकर्ताओं और कोच ने उनसे आगे देखने का मन बना लिया था.
यह बताया जा रहा है कि उन्होंने विराट को बता दिया था कि इंग्लैंड दौरे पर तो हम आपको ले जायेंगे, लेकिन इसके बाद उनके किये प्रदर्शन के आधार पर चयन करते समय ध्यान दिया जायेगा. किसी भी समझदार खिलाड़ी के लिए इस तरह का इशारा काफी है. रोहित शर्मा और विराट कोहली के जाने के बाद कोच गौतम गंभीर को अपने हिसाब से टीम तैयार करने की छूट रहेगी. इंग्लैंड दौरे से पता चल जाना है कि विराट की जगह किसने भरी. पर इतना जरूर है कि विराट को अपनी कप्तानी में कोई आइसीसी ट्रॉफी न जीत पाने और टेस्ट क्रिकेट में गावस्कर और सचिन तेंदुलकर की तरह दस हजार रन न बना पाने का मलाल जरूर रहेगा.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)