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बांग्लादेश के विकास के संदेश

बांग्लादेश ने अपने गरीबों पर निवेश किया है, जिसके बहुत अच्छे परिणाम सामने आ रहे हैं. हाशिये के बच्चों में निवेश करने का मतलब देश को आगे लेकर जाना है.

इस वर्ष 26 मार्च को बांग्लादेश की स्वतंत्रता के पचास साल पूरे हुए हैं. पांच दशक पहले इसी दिन सुबह बांग्लादेश ने पाकिस्तान से अलग होने के साथ अपनी स्वतंत्रता की घोषणा की थी. इससे पहले उसे पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना जाता था. पूर्वी पाकिस्तान के नागरिकों पर पाकिस्तान की सेना के भयावह अत्याचार और उसकी क्रूर हिंसा की स्थिति में भारतीय सेना को हस्तक्षेप करना पड़ा.

इसका परिणाम भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने 16 दिसंबर, 1971 को लेफ्टिनेंट जनरल और पूर्वी पाकिस्तान के अंतिम गवर्नर एएके नियाजी के बिना शर्त ऐतिहासिक समर्पण के रूप में सामने आया. वह क्षण न केवल बांग्लादेश के लिए, बल्कि भारत के लिए भी गौरवपूर्ण था. जैसा कि इतिहासकार रेखांकित करते हैं, नये राष्ट्र के रूप में बांग्लादेश का जन्म ‘जनसंहार, मलिनता और भूख’ के बीच हुआ था.

बांग्लादेश को 1974 में भयंकर अकाल का सामना करना पड़ा था और बहुत बाद में, 1991 में भयावह समुद्री तूफान आया था, जिसमें एक लाख से अधिक लोग मारे गये थे. पिछले कुछ सालों में इस देश को एक और बड़े गंभीर संकट से जूझना पड़ा है. यह संकट लगभग दस लाख रोहिंग्या शरणार्थियों से संबंधित है, जिन्हें म्यांमार से पलायन करना पड़ा है. जाने-माने अमेरिकी पत्रकार निकोलस क्रिस्टॉफ ने द न्यूयॉर्क टाइम्स के लिए लिखे अपने एक लेख में बांग्लादेश के बारे में कहा था कि यह देश ‘मुख्य रूप से दुर्भाग्य के मामले में संपन्न’ है, लेकिन बीते तीस सालों में बांग्लादेश ने महत्वपूर्ण प्रगति की है.

यदि हम प्रति व्यक्ति आय के पैमाने पर देखें, तो बांग्लादेश हमारे सभी उन पूर्वोत्तर और पूर्वी राज्यों से उल्लेखनीय रूप से बेहतर है, जो उसकी सीमा से सटे हुए हैं या उसके निकट हैं. साल 2020 में डॉलर के हिसाब से बांग्लादेश प्रति व्यक्ति आय के मामले में भारत से भी कुछ आगे निकाल गया था. बीते साल कोरोना महामारी के संकट काल में बांग्लादेश समेत दुनिया के लगभग सभी देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर गंभीर रूप से नकारात्मक प्रभाव पड़ा है, लेकिन उल्लेखनीय है कि यह असर बांग्लादेश पर तुलनात्मक तौर पर कम रहा है.

वित्त वर्ष 2020-21 में जहां भारत के सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) की वृद्धि में आठ प्रतिशत के संकुचन का अनुमान लगाया जा रहा है, वहीं बांग्लादेश की आर्थिक वृद्धि दर के 1.6 प्रतिशत रहने की आशा की जा रही है. इतना ही नहीं, कोरोना संक्रमण की वजह से होनेवाली मौतों की दर के मामले में भी बांग्लादेश की स्थिति भारत से बेहतर है.

बांग्लादेश की विकास यात्रा की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि यह भी है कि वहां जीवन प्रत्याशा 72 वर्ष है, जो कई देशों से अधिक है. यह तथ्य इंगित करता है कि बांग्लादेशी स्वस्थ और लंबा जीवन जी रहे हैं. तीन दशकों में बांग्लादेश ने कुपोषण के शिकार बच्चों की संख्या को लगभग आधा कर दिया है. इस मामले में भी वह हमारे देश से आगे है. गरीबी उन्मूलन की कोशिश किसी भी देश के विकास के लिए बेहद जरूरी है.

बीते डेढ़ दशक में गरीबी कम करने में बांग्लादेश को उल्लेखनीय सफलता हासिल हुई है. स्वास्थ्य और आर्थिक स्थिति में सुधार के साथ बच्चों की शिक्षा के मामले में भी बांग्लादेश ने बड़ी उपलब्धियां पायी है. सामाजिक उत्थान के प्रयासों के परिणामस्वरूप आज बांग्लादेश में एक महिला के औसतन दो बच्चे हैं. यह आंकड़ा कभी सात हुआ करता था.

बांग्लादेश ने अपने गरीबों पर निवेश किया है, जिसके बहुत अच्छे परिणाम सामने आ रहे हैं. हाशिये के बच्चों में निवेश करने का मतलब देश को आगे लेकर जाना है. बांग्लादेश की विकास की इस कहानी की एक सीख बिहार जैसेे उन राज्यों के लिए है, जहां की जनसंख्या बांग्लादेश की तरह अत्यधिक है.

यह सही है कि बांग्लादेश की तरह इनमें से कई राज्यों के पास तटीय क्षेत्र नहीं हैं, लेकिन शेष परिस्थितियां कमोबेश एक जैसी हैं, लेकिन आज बांग्लादेश की प्रति व्यक्ति आय इन राज्यों दो से तीन गुनी अधिक है. बांग्लादेश की उपलब्धियां इंगित करती हैं कि मानव संसाधन, विशेष रूप से गरीब और हाशिये के परिवारों के बच्चों तथा महिलाओं, पर सरकार के खर्च से निवेश करना भविष्य के लिए एक आवश्यकता है.

इनमें से जिन राज्यों ने प्रदेशभर में सड़कों का व्यापक विस्तार करने तथा लगभग सभी बस्तियों में बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करने में उल्लेखनीय सफलता हासिल कर ली है, उनके लिए अब समय आ गया है कि अहम कमियों को दूर कारते हुए राज्य में शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में मानव संसाधन को विकसित करने की दिशा में पहल की जाए.

ऐसा करना संभव है. इसका एक ताजा उदाहरण दिल्ली का है, जिसने शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में अनुकरणीय कामयाबी पायी है. दिल्ली में यह शानदार कामयाबी शिक्षा और स्वास्थ्य के मद में बजट का क्रमशः 25 और 14 प्रतिशत खर्च कर तथा अनेक नवोन्मेषी योजनाओं को लागू करने से मिली है. भारत के अन्य राज्यों के लिए कुछ करने का वक्त है. बिहार से उम्मीदें ज्यादा हैं, क्योंकि वहां आधाभूत संरचना के क्षेत्र में कई बड़े काम हुए हैं. इसका लाभ लेने का अवसर उसके पास है. देखना यह है, आगे क्या कुछ हो पाता है.्र

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