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कमजोर वर्ग को राहत देना जरूरी

पहली लहर के कारण जो करोड़ों लोग गरीबी के बीच आर्थिक-सामाजिक चुनौतियों का सामना कर रहे थे, उनके सामने अब दूसरी लहर से पैदा हो रही मुश्किलों से निपटने की चिंता खड़ी हो गयी है.

इन दिनों देश में कहीं लॉकडाउन, तो कहीं लॉकडाउन जैसी कठोर पाबंदियों के कारण गरीबों और श्रमिकों सहित संपूर्ण कमजोर वर्ग की मुश्किलें बढ़ गयी हैं. ऐसे में बड़ी संख्या में लोगों के द्वारा भारत में गरीबी और निम्न आयवाले लोगों की चुनौतियां बढ़ने से संबंधित दो शोध रिपोर्टों को गंभीरता से पढ़ा जा रहा है. पहली रिपोर्ट सात मई को अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी द्वारा प्रकाशित की गयी है, जिसमें कहा गया है कि पिछले वर्ष कोविड-19 संकट के पहले दौर में करीब 23 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे जा चुके हैं.

ये वे लोग हैं, जो प्रतिदिन राष्ट्रीय न्यूनतम पारिश्रमिक 375 रुपये से भी कम कमा रहे हैं. दूसरी रिपोर्ट अमेरिकी शोध संगठन प्यू रिसर्च सेंटर ने प्रकाशित की है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना महामारी ने भारत में बीते साल 7.5 करोड़ लोगों को गरीबी के दलदल में धकेल दिया है. रिपोर्ट में प्रतिदिन दो डॉलर यानी करीब 150 रुपये कमानेवाले को गरीब की श्रेणी में रखा गया है.

अभी जहां देश का गरीब और श्रमिक वर्ग पहली लहर के थपेड़ों की मुश्किलों से राहत भी महसूस नहीं कर पाया है, वहीं अब फिर कोरोना की दूसरी घातक लहर के कारण इन वर्गों की चिंताएं बढ़ गयी हैं. खासतौर से छोटे उद्योग व कारोबार और असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों की रोजगार व पलायन संबंधी परेशानियां उभरती दिखायी दे रही हैं. औद्योगिक शहरों से एक बार फिर रेलों, बसों और सड़क मार्ग से प्रवासी मजदूरों का पलायन होने लगा है.

इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि कोविड-19 से जंग में पिछले वर्ष सरकार द्वारा घोषित आत्मनिर्भर भारत अभियान और 40 करोड़ से अधिक गरीबों श्रमिकों और किसानों के खातों तक सीधे राहत पहुंचाने से आर्थिक दुष्प्रभावों से कमजोर वर्ग का कुछ बचाव हो सका है.

अब स्थिति यह है कि पहली लहर के कारण जो करोड़ों लोग गरीबी के बीच आर्थिक-सामाजिक चुनौतियों का सामना कर रहे थे, उनके सामने अब दूसरी लहर से पैदा हो रहीं मुश्किलों से निपटने की चिंता खड़ी हो गयी है. यह चिंता कितनी गंभीर है, इसका अनुमान संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की रिपोर्ट से भी लगाया जा सकता है. इसमें कहा गया है कि महामारी के दीर्घकालिक परिणामों के तहत दुनिया में 2030 तक भारत सहित गरीब और मध्यम आय वर्ग वाले देशों के 20.70 करोड़ लोग घोर गरीबी की ओर जा सकते हैं.

ऐसे में तीन सूत्रीय रणनीति अपनाना उपयुक्त होगा. एक, सरकार द्वारा गरीबों और श्रमिकों के हित में कल्याणकारी कदम आगे बढ़ाये जायें. दो, गांव लौटते श्रमिकों के रोजगार के लिए मनरेगा पर आवंटन बढ़ाया जाये. तीन, उद्योग व कारोबार को उपयुक्त राहत दी जाये, ताकि बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर बच सकें.

केंद्र सरकार ने 23 अप्रैल को गरीब परिवारों के लिए एक बार फिर प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना का ऐलान किया है, जिसके तहत सरकार राशनकार्ड धारकों को मई और जून में प्रति व्यक्ति पांच किलो अतिरिक्त अन्न मुफ्त देगी. इससे 80 करोड़ लोग लाभान्वित होंगे तथा इस पर 26 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च होंगे. कोरोना प्रभावित राज्यों की सरकारों को भी राहत योजनाओं की शीघ्र घोषणा करनी होगी.

चूंकि इस समय कई औद्योगिक राज्यों से फिर बड़ी संख्या में प्रवासी श्रमिक अपने गांवों की ओर लौट रहे हैं, ऐसे में मनरेगा को एक बार फिर जीवनरक्षक और प्रभावी बनाना होगा. हाल ही में प्रकाशित एसबीआइ की रिपोर्ट के मुताबिक, अप्रैल, 2021 में मनरेगा के तहत काम की मांग अप्रैल, 2020 के मुकाबले लगभग दोगुनी हो गयी है. अप्रैल, 2020 में करीब 1.34 करोड़ परिवारों की तरफ से काम मांगा गया था, जबकि अप्रैल, 2021 में करीब ढाई करोड़ परिवारों को रोजगार दिया गया है.

मनरेगा ग्रामीण अंचल में सबसे अधिक रोजगार देनेवाली योजना है. इसके तहत 2020-21 में 11 करोड़ लोगों को काम मिला, जो 2006 में योजना लागू होने के बाद सबसे अधिक है. इस दौरान करीब 390 करोड़ कार्य दिवस सृजित हुए. यह भी मनरेगा लागू होने के बाद सर्वाधिक है. करीब 83 लाख निर्माण कार्यों को भी मनरेगा के तहत 2020-21 में मूर्त रूप दिया गया. ऐसे में एक बार फिर लौटते प्रवासी श्रमिकों की बढ़ती संख्या के मद्देनजर उन्हें गांव में ही रोजगार उपलब्ध कराने हेतु चालू वित्त वर्ष के बजट में मनरेगा के मद पर रखे गये 73 हजार करोड़ रुपये के आवंटन को बढ़ाना जरूरी होगा.

गरीब एवं असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के रोजगार से जुड़े हुए सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग (एमएसएमई) को संभालने के लिए भी राहत की जरूरत होगी. इसमें कोई दो राय नहीं है कि पांच मई को रिजर्व बैंक ने व्यक्तिगत कर्जदारों एवं छोटे कारोबारों के लिए कर्ज पुनर्गठन की जो सुविधा बढ़ायी है और कर्ज का विस्तार किया है, उससे छोटे उद्योग व कारोबार को लाभ होगा. अब 25 करोड़ रुपये तक के बकाये वाले वे कर्जदार अपना ऋण दो साल के लिए पुनर्गठित करा सकते हैं, जिन्होंने पहले मॉरेटोरियम या पुनर्गठन का लाभ नहीं लिया है.

यह सुविधा 30 सितंबर, 2021 तक उपलब्ध होगी. बैंक उद्योग व कारोबार से इस संबंध में अनुरोध प्राप्त होने के 90 दिन में ऋण का पुनर्गठन करेंगे. इस योजना के तहत 31 मार्च तक के मानक ऋण का पुनर्गठन होगा. यह भी महत्वपूर्ण है कि पिछले साल दो साल से कम अवधि के ऋण पुनर्गठन की सुविधा लेने वाले व्यक्तिगत कर्जदार और छोटे कारोबारी अपने पुनर्भुगतान की अवधि दो वर्षों तक बढ़ाने का अनुरोध भी कर सकते हैं. ऐसे में करीब 90 फीसदी कर्जदार ऋण पुनर्गठन के पात्र होंगे.

लेकिन अभी एमएसएमई को कुछ अधिक राहत देकर रोजगार बचाने के साथ-साथ श्रमिक वर्ग को पलायन से रोकना होगा. इन राहतों के तहत वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) से हो रही मुश्किलें भी कम करनी होंगी. एमएसएमई के लिए एक बार फिर से लोन मॉरेटोरियम योजना को लागू करना लाभप्रद होगा. आपात ऋण सुविधा गारंटी योजना (ईसीएलजीएस) को आगे बढ़ाने या उसे नये रूप में लाने जैसे कदम भी राहतकारी होंगे.

उद्योग व कारोबार संगठनों के द्वारा श्रमिकों का पलायन रोकने के लिए श्रमिकों के काम और कोरोना वैक्सीन दोनों की व्यवस्था सुनिश्चित करने की रणनीति पर आगे बढ़ना होगा. हम उम्मीद करें कि कोरोना संक्रमण की दूसरी घातक लहर से जंग में सुनियोजित लॉकडाउन, स्वास्थ्य तथा सुरक्षा मानकों को अधिक कड़ा किये जाने की रणनीति से एक ओर अर्थव्यवस्था को, तो दूसरी ओर गरीबों और श्रमिकों सहित संपूर्ण कमजोर वर्ग को बढ़ती मुश्किलों से बचाया जा सकेगा.

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