13.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

चितरंजन सावंत : आवाज से दृश्यों को रचने वाला चितेरा

गणतंत्र दिवस परेड में जब सेना की टुकड़ियां कर्तव्य पथ पर आनी शुरू होतीं, तब कमेंट्री की कमान ब्रिगेडियर सावंत के पास हुआ करती थी.

गणतंत्र दिवस परेड में जब सेना की टुकड़ियां कर्तव्य पथ पर आनी शुरू होतीं, तब कमेंट्री की कमान ब्रिगेडियर सावंत के पास हुआ करती थी. उसके बाद वे अपनी धीर-गंभीर आवाज में सेना की टुकड़ियों की उपलब्धियों, इतिहास, नायकों वगैरह पर विस्तार से प्रकाश डालते. सेना और देश की समरनीति पर उनकी जानकारी का कोई सानी नहीं था. याद नहीं आता कि ब्रिगेडियर सावंत ने कमेंट्री सुनाते हुए शब्दों के उच्चारण में कभी कोई चूक की हो. उनकी आवाज का उतार-चढ़ाव अप्रतिम हुआ करता था. मशहूर कमेंटेटर जसदेव सिंह ने एक बार कहा था कि ब्रिगेडियर सावंत के साथ गणतंत्र दिवस और स्वाधीनता दिवस की कमेंट्री करते हुए गर्व की अनुभूति होती है. उनकी भारतीय सेना को लेकर जानकारी अभूतपूर्व है. सावंत जी जब आंखों देखा हाल सुनाते हैं, तो बाकी श्रोताओं की तरह वे भी उन्हें पूरी एकाग्रता से सुनते हैं.

ब्रिगेडियर सावंत ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि वे एक दिन रेडियो कमेंट्री करेंगे. वर्ष 1934 में अयोध्या में जन्मे ब्रिगेडियर सावंत इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से इंग्लिश लिटरेचर में एमए करने के बाद शिक्षक बन गये थे. दो वर्ष तक शिक्षक रहे. पर उनका लक्ष्य तो सेना में जाना था. सेना के अनुशासन और सैनिक की ड्रेस उन्हें बचपन से प्रभावित करती थी. उन्होंने शिक्षक रहते हुए इंडियन मिलिट्री एकेडमी (आइएमए) की परीक्षा पास की और भारतीय सेना ज्वाइन कर ली. यह 1959 की बात है. इस तरह उनके जीवन का बड़ा सपना साकार हो गया. तीन वर्ष बाद 1962 में चीन के विरुद्ध वे बहादुरी से लड़ रहे थे. उसके बाद 1965 और 1971 के युद्ध में भी रणभूमि में दुश्मन की कमर तोड़ रहे थे.

ब्रिगेडियर सावंत सेना में रहते हुए अपनी यूनिट के कार्यक्रमों का इंग्लिश और हिंदी में संचालन किया करते थे, जिसे काफी पसंद भी किया जाता था. उनका दोनों भाषाओं पर नियंत्रण दर्शकों को प्रभावित करता था. उनके पास शब्दों का पर्याप्त भंडार था. पर उन्होंने कमेंटेटर के रूप में ख्याति पाने के बारे में कभी सोचा भी नहीं था. वर्ष 1971 में आकाशवाणी ने भारतीय सेना पर एक कार्यक्रम शुरू किया था, जिसका नाम था ‘फौजी भाइयों का कार्यक्रम.’ उसे पेश करने के लिए सेना ने उनका नाम आकाशवाणी में भेजा. वहां रहते हुए वे मंजे हुए ब्रॉडकास्टर बन गये. उनकी जिंदगी बदल गयी. उन्होंने फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ का भी इंटरव्यू किया था.

बाद में दूरदर्शन में भी उन्हें सेना के कार्यक्रमों का संचालन करने के लिए बुलाया जाने लगा. ब्रिगेडियर सावंत ने 1982 से 1997 तक लगातार दूरदर्शन के लिए गणतंत्र दिवस परेड और स्वाधीनता दिवस समारोह का आंखों देखा हाल सुनाया. उसके बाद वे कई निजी खबरिया चैनलों के लिए भी कमेंट्री करते रहे. ब्रिगेडियर सावंत अपनी आवाज से दृश्यों को रचने में माहिर थे. वे जब आंखों देखा हाल सुनाते, तब सुनने वालों को लगता कि वे भी गणतंत्र दिवस को राजपथ या लाल किले से देख रहे हैं. उनकी कमेंट्री कभी नीरस या बोझिल नहीं होती थी. ब्रिगेडियर सावंत उन कमेंटेटरों में से नहीं थे जो बताते हैं कि राजपथ पर अब सेना के किस रेजिमेंट की टुकड़ी आ रही है या इसकी कमान किसके पास है.

वे इससे कहीं आगे जाकर कमेंट्री किया करते थे. उन्हें सुनने के बाद श्रोता उनसे हमेशा के लिए जुड़ जाते थे. वे भारत के स्वाधीनता आंदोलन के गहरे जानकार भी थे. स्वाधीनता समारोह की कमेंट्री में अनेक नयी जानकारियां पेश करते थे. वे चीनी भाषा के भी विद्वान थे. भारतीय सेना ने उन्हें 1962 में चीन से युद्ध के बाद चीनी भाषा सीखने अमेरिका भेजा था. उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन और सेना से जुड़ी दर्जनों फिल्मों के लिए भी कमेंट्री की. दूरदर्शन से लंबे समय तक जुड़े रहे मशहूर फिल्मकार राजशेखर व्यास का कहना है कि ब्रिगेडियर सावंत के साथ उन्होंने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन पर एक फिल्म भी बनायी थी.

ब्रिगेडियर सावंत केवल कमेंट्री ही नहीं किया करते थे, अपनी कमेंट्री में विषय से जुड़े बहुत सारे अनछुए पहलुओं से भी श्रोताओं को रू-ब-रू करवाया करते थे. हरेक गणतंत्र और स्वतंत्रता दिवस पर ब्रिगेडियर चितरंजन सावंत की समृद्ध करने वाली कमेंट्री याद आती रहेगी.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें