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बिहार के लोगों पर हमला दुर्भाग्यपूर्ण

हाल में जम्मू-कश्मीर में आतंकियों ने बिहार के मजदूरों की गोली मारकर हत्या कर दी. ऐसे लोगों की हत्या करने से आतंकवादियों को क्या हासिल हो सकता है? इन आतंकियों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई होनी चाहिए.

देश के किसी हिस्से में बिहार के लोगों को निशाना बनाने की खबरें जब-तब आती रहती हैं. हाल में जम्मू-कश्मीर में आतंकियों ने बिहार के मजदूरों की गोली मारकर हत्या कर दी. इसके पहले एक अन्य घटना में चाट-गोलगप्पे बेचनेवाले बिहार के एक शख्स की हत्या की गयी थी. पिछले कुछ दिनों में ऐसी वारदातें हो चुकी हैं. मजदूरों और गरीब तबके के लोगों की हत्या करने से आतंकवादियों को क्या हासिल हो सकता है?

अगर आप खुद को बहादुर मानते हैं, तो सुरक्षाबलों से दो-दो हाथ करें. गरीब और निरीह मजदूर को मार कर आप कौन-सा मुकाम हासिल करने जा रहे हैं? बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जम्मू-कश्मीर में बिहारी कामगारों पर हो रहे आतंकी हमलों की निंदा करते हुए कहा है कि कश्मीर में कुछ लोग बाहर से काम करने के लिए आये लोगों को ही निशाना बना रहे हैं. इस गरीब-गुरबा तबके को निशाना बनानेवालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए. मुख्यमंत्री ने जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा से बातचीत कर राज्य में बिहारियों की सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम करने का आग्रह किया है.

जम्मू-कश्मीर में तो आतंकवादी बिहारियों को निशाना बना रहे हैं, लेकिन कुछ अन्य राज्यों में भी यदा-कदा बिहार व झारखंड के मजदूरों के साथ मारपीट और उन्हें अपमानित करने की घटनाएं सामने आती रहती हैं. हाल में हिमाचल प्रदेश में एक पनबिजली परियोजना में कार्यरत झारखंड के मजदूरों के साथ मारपीट की गयी. इस घटना के बाद मजदूरों ने झारखंड सरकार से मदद की गुहार लगायी. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के हस्तक्षेप के बाद चार जत्थों में कुल 61 मजदूरों की वापसी सुनिश्चित हुई है.

उन्हें उनका बकाया वेतन भी दिलवाया जा रहा है. कुछ अरसा पहले महाराष्ट्र, कर्नाटक, असम, जम्मू, तमिलनाडु और केरल से भी हिंदी भाषी लोगों के साथ अभद्रता की खबरें आती रहती हैं. देखने में आया है कि अधिकतर मामलों में स्थानीय नेता राजनीतिक स्वार्थ साधने के लिए ऐसा करते हैं. हमें यह स्वीकार करना होगा कि देश में बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के लोगों की जैसी इज्जत होनी चाहिए, वैसी नहीं है.

कुछ राज्यों में हिंदी भाषी लोगों को बिहारी कह कर अपमानित करने की कोशिश की जाती है. महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली, पंजाब व हरियाणा में बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के कामगार बड़ी संख्या में हैं. अक्सर यह होता है कि यदि वहां कानून-व्यवस्था से जुड़ी कोई घटना होती है, तो बिना जांच-पड़ताल के सारा दोष इन कामगारों के मत्थे मढ़ दिया जाता है.

यह सही है कि विकास की दौड़ में आज बिहार अन्य राज्यों से पिछड़ गया है, लेकिन हमें जानना चाहिए कि बिहार का इतिहास चार हजार साल से अधिक पुराना है. यहां से गौतम बुद्ध का नाता रहा है, जिनके उपदेशों को माननेवाले पूरी दुनिया में फैले हैं. यहीं महावीर जैसे विचारक हुए, जिनके द्वारा स्थापित जैन संप्रदाय देश का एक प्रमुख धर्म है. यह 24 जैन तीर्थंकरों की कर्मभूमि है. सिखों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह का जन्म पटना में हुआ था.

देश-विदेश से बड़ी संख्या में सिख धर्मावलंबी उनके जन्मस्थान पर मत्था टेकने आते हैं. यहां चाणक्य, वात्स्यायन, आर्यभट्ट और चरक जैसे विद्वानों ने जन्म लिया है तथा देश-दुनिया को अपने विचारों से दिशा दी है. बिहार की माटी के सपूत डॉ राजेंद्र प्रसाद देश के पहले राष्ट्रपति बने. जयप्रकाश नारायण ने यहीं से इमरजेंसी के खिलाफ बिगुल फूंका था. देश को बड़े-बड़े लेखक, विचारक, प्रशासक और मेधावी युवक उपलब्ध कराने का सिलसिला आज भी जारी है. जमींदारी उन्मूलन से लेकर पंचायतों में महिलाओं को 50 फीसदी आरक्षण देने का कानून बिहार में लागू होता है. बाद में उसे पूरा देश अपनाता है.

कहने का आशय यह कि बिहार का इतिहास बेहद गौरवशाली रहा है और हर बिहारवासी उस परंपरा का वाहक है. यह भी सच है कि बिहार के समक्ष आज अनेक चुनौतियां हैं और हम अभी बुनियादी समस्याओं को हल नहीं कर पाये हैं. उल्लेखनीय उपलब्धियों के बावजूद बिहार प्रति व्यक्ति आय के मामले में पिछड़ा हुआ है. राज्य अब भी शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली और पानी की समस्या से जूझ रहा है. बिहार के अधिकतर लोग कृषि से जीवनयापन करते हैं, लेकिन राज्य का एक बड़ा इलाका साल दर साल बाढ़ में डूबता रहा है.

कोसी और सीमांचल के इलाके को बाढ़ से आज भी मुक्ति नहीं मिल सकी है. इसका समाधान हो जाए, तो समूचे इलाके की तस्वीर बदल सकती है. हमें बिहार में ही शिक्षा और रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने होंगे, ताकि लोगों को बाहर जाने की जरूरत ही न पड़े. आज हर साल दिल्ली और दक्षिण के राज्यों में पढ़ने के लिए बिहार के हजारों बच्चे जाते हैं. राजस्थान के कोटा में बिहार और झारखंड के हजारों बच्चे कोचिंग के लिए जाते हैं. बिहार को शिक्षा के केंद्र के रूप में विकसित किया जाना चाहिए. आज जरूरत है कि हम ऐसा ढांचा विकसित करें कि हमारे बच्चों को बाहर न जाना पड़े.

इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती है कि बिहार-झारखंड के लोग मेहनतकश हैं. मैं पहले भी कहता आया हूं कि अक्सर लोग इस बात को भूल जाते हैं कि गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली की जो आभा और चमक-दमक है, उसमें बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के लोगों का बड़ा योगदान है. यह आभा और चमक-दमक उनके बिना खो भी सकती है.

इन राज्यों की विकास की कहानी बिना बिहारियों के योगदान के नहीं लिखी जा सकती है, पर स्थानीय नेता राजनीतिक स्वार्थों के लिए बिहारियों को निशाना बनाते हैं, जिसके कारण कई बार उन्हें पलायन तक करना पड़ता है. इसमें सोशल मीडिया की बेहद खराब भूमिका रही है. सोशल मीडिया के जरिये बिहार और उत्तर प्रदेश के लोगों के खिलाफ नफरत भरे संदेश फैलाने के कई उदाहरण हैं. मुझे याद है कि कुछ समय पहले साबरकांठा जिले में एक बच्ची से दुष्कर्म हुआ था, जिसका दोष बिहार के लोगों पर मढ़ दिया गया था.

फिर सोशल मीडिया पर हिंदी भाषी समाज के खिलाफ अभियान चला. उन पर जानलेवा हमले हुए और पूरे समाज को कटघरे में खड़ा कर दिया गया. मेरा मानना है कि हिंसा को न रोक पाना वहां की राज्य सरकार की भी विफलता है. यदि कोई घटना हुई है, तो दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए, लेकिन इसकी आड़ में किसी क्षेत्र विशेष के लोगों के खिलाफ हिंसा स्वीकार्य नहीं है. यह प्रवृत्ति देश के हित में नहीं है. इसमें तत्काल हस्तक्षेप करने की जरूरत है.

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