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भारत-रूस संबंधों की बढ़ती संभावनाएं

अगर हम प्रधानमंत्री मोदी के संबोधन को देखें, तो भारत की अपनी दृष्टि पूरी तरह स्पष्ट है कि वह रूस के साथ व्यापक सहयोग स्थापित करना चाहता है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ईस्टर्न इकोनॉमिक फोरम के अपने संबोधन में भारत और रूस के प्रगाढ़ संबंधों को रेखांकित किया है और उसे आगे ले जाने की संभावनाओं पर विचार व्यक्त किया है. दो वर्ष पहले के इस फोरम की बैठक में भाग लेने के लिए प्रधानमंत्री मोदी व्लादिवोस्तोक गये भी थे. रूस का सुदूर पूर्व का हिस्सा कई मामलों में बहुत समृद्ध है. वहां तेल, प्राकृतिक गैस, खनिज, हीरा आदि की प्रचुर उपलब्धता है.

साथ ही, उसका रणनीतिक महत्व भी है. उस क्षेत्र का विकास अभी रूसी सरकार की प्राथमिकता है. चूंकि यह क्षेत्र भारत के करीब है, सो उसके विकास में हमारे देश की उल्लेखनीय भूमिका हो सकती है. पिछली बार जब प्रधानमंत्री मोदी वहां गये थे, तो यह पहली बार हुआ था कि हमने किसी बड़े और विकसित देश को एक अरब डॉलर का ऋण दिया. इसका उद्देश्य व्यापार और निवेश को बढ़ावा देना था. तब यह भी तय हुआ कि चेन्नई-व्लादिवोस्तोक समुद्री व्यापारिक गलियारे को विकसित किया जायेगा.

मेरा मानना है कि फोरम में प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में एक बार फिर भारत की प्रतिबद्धता को रेखांकित किया है. कुछ समय से हमारे अनेक प्रतिनिधिमंडल- राज्यों के, उद्योग जगत से- वहां जाते रहे हैं और वे कारोबारी संभावनाओं का आकलन करते रहे हैं. अभी सबसे अहम मसला है दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़ाने का. जैसा कि प्रधानमंत्री ने भी उल्लेख किया है, जब भी भारत को जरूरत पड़ी है, रूस हमारे साथ खड़ा रहा है. जब मैं 2000 से 2002 के बीच मास्को में कार्यरत था, तभी भारत और रूस के बीच रणनीतिक समझौता हुआ था.

उसी के तहत रूसी राष्ट्रपति और भारतीय प्रधानमंत्री की वार्षिक शिखर बैठक होती है. इस व्यवस्था के दो दशक पूरे हो चुके हैं. उस समय रूस की सोच यह थी कि दोनों देशों के संबंधों को उसी स्तर पर लाया जाना चाहिए, जैसा पहले कभी था और सोवियत संघ के विघटन के बाद के वर्षों में विभिन्न कारणों से बाधित हो गया था. इसीलिए हम कहते हैं कि रूस सभी मौसमों का हमारा दोस्त है.

अभी भी देखें, तो चीन के साथ हमारी तनातनी के दौर में रूस ने हमें सामरिक सहायता दी है, जबकि चीन के साथ रूस के बड़े अच्छे संबंध हैं. एस-400 मिसाइल सिस्टम और अन्य कुछ उपकरणों की आपूर्ति पर चीन को ऐतराज था, पर रूस ने उस पर ध्यान नहीं दिया. अंतरिक्ष, परमाणु आदि अहम सामरिक क्षेत्रों में भी भारत और रूस का परस्पर सहयोग निरंतर बढ़ता जा रहा है.

दूसरी अहम बात यूरेशिया आर्थिक पहल तथा मध्य एशिया में सहयोग बढ़ाने से संबंधित है. दोनों देशों के बीच यह नयी पहल हुई है. अब अफगानिस्तान का मामला भी सामने है. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के भारत आने की चर्चा है. इस दौरे में दोनों देशों के नेता आमने-सामने बैठकर चर्चा करेंगे. उल्लेखनीय है कि दुनिया में कोई और दूसरा देश नहीं है, जिसके साथ भारत के इतनी बहुआयामी सांस्थानिक व्यवस्थाएं है. कुछ समय पहले रूस के दौरे पर प्रधानमंत्री मोदी जब सोची गये थे, उन्होंने राष्ट्रपति पुतिन के साथ 10-11 घंटे बिताये थे, लेकिन किसी भी संबंध को स्थायी नहीं माना जा सकता है.

उसे बनाये रखने के लिए उसे लगातार सींचना पड़ता है. भरोसा बहाल रखना एक निरंतर प्रक्रिया है. यह चिंताजनक तथ्य है कि निकट संबंधों के बावजूद दोनों देशों के बीच व्यापारिक लेन-देन नाममात्र का है. साल 2025 तक व्यापार में ठोस बढ़ोतरी का लक्ष्य भी रखा गया है, लेकिन उसकी प्रगति बहुत धीमी है, मगर यह भी है कि अपरिष्कृत हीरा वहां से आता है, जिसकी सफाई और कटाई भारत में की जाती है. इस मामले में और जवाहरात में हम दुनिया में पहले पायदान पर हैं, तो वह रूसी कारोबार से ही संभव हुआ है. तेल और प्राकृतिक गैस निकालने और शोधन के काम में रूस में बड़ी संभावनाएं हैं, जिनके बारे में गंभीर प्रयास किये जा रहे हैं.

औद्योगिक विकास में सहभागी बनने के लिए रूस भारत के कुशल और अनुभवी लोगों को आमंत्रित कर रहा है. रूस अपनी ओर से भारत से आर्थिक संबंधों को मजबूत करने की पूरी कोशिश कर रहा है, लेकिन यह सब भू-राजनीतिक स्थितियों पर बहुत हद तक निर्भर करता है. भारत की अपनी प्राथमिकताओं के हिसाब से भी परस्पर सहयोग का भविष्य निर्धारित होगा.

अगर हम प्रधानमंत्री मोदी के संबोधन के आधार पर देखें, तो भारत की अपनी दृष्टि इस संबंध में पूरी तरह स्पष्ट है कि वह रूस के साथ व्यापक सहयोग स्थापित करना चाहता है. एस-400 और अन्य हथियारों के मामले में चीन ने ही नहीं, अमेरिका ने भी बहुत दबाव बनाने की कोशिश की थी. पाबंदियां लगाने की चेतावनी भी दी गयी थी, पर भारत टस से मस नहीं हुआ.

भारत ने अपनी संप्रभुता और स्वायत्तता का ख्याल रखते हुए अमेरिकी आपत्तियों को महत्व नहीं दिया. रूस ने चीन और भारत के बीच तनाव को समाप्त करने के लिए सकारात्मक प्रयास किया है. भारतीय विदेश और रक्षा मंत्रियों ने इस संबंध में रूस के दौरे भी किये थे. जैसा कि मैंने पहले कहा है, भारत ने रूस से जो भी साजो-सामान मांगा, उन्होंने चीन की नाराजगी के बावजूद भारत को मुहैया कराया.

जहां तक चेन्नई-व्लादिवोस्तोक समुद्री गलियारे के साउथ चाइना सी से गुजरने का मामला है, तो चीन को यह समझना होगा कि वर्चस्व और एकाधिकार का दौर समाप्त हो चुका है. हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता के लिए बने क्वाड समूह के बारे में चीन समझता है कि यह उसे घेरने की कोशिश है. रूस भी चीन की इस राय से सहमत है कि क्वाड एक चीन-विरोधी पहल है, लेकिन भारत का ऐसा मानना नहीं है.

भारत का कहना है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र खुला और आजाद इलाका होना चाहिए तथा अंतरराष्ट्रीय सामुद्रिक नियमों का सभी को पालन करना चाहिए. इन रास्तों से दुनियाभर में सामानों की सुगम आवाजाही होनी चाहिए, लेकिन तनाव की स्थिति तब पैदा होती है, जब चीन अन्य देशों पर दबाव बनाता है और अपनी प्रभुता स्थापित करने की कोशिश करता है.

अगर रूस को इस संदर्भ में भरोसे में लिया जाए और उससे सहयोग बढ़े, तो वह चीन को समझा सकता है. भारत इन पहलों को समावेशी दृष्टि से देखता है यानी चीन भी रहे, रूस भी रहे और अन्य देशों की भागीदारी भी हो. इस संदर्भ में एक कोशिश भारत, रूस और जापान का समूह बनाने की हो रही है. हालांकि रूस और जापान के बीच विभिन्न मसलों पर खींचतान है. भारत के साथ दोनों के रिश्ते अच्छे हैं. (बातचीत पर आधारित).

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