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यह धर्म और अधर्म का युद्ध है
तरुण विजय सांसद, राज्यसभा उस मां को क्या कह कर सांत्वना दी जा सकती है, जो अपने युवा पुत्र की पार्थिव देह का अंतिम दर्शन तक नहीं कर पायी और जिसका अब हर दिन इस आर्तनाद के साथ बीतेगा कि उसके बेटे के अंतिम क्षण कितनी क्रूरता और बर्बरता का सामना करते हुए बीते होंगे. […]
तरुण विजय
सांसद, राज्यसभा
उस मां को क्या कह कर सांत्वना दी जा सकती है, जो अपने युवा पुत्र की पार्थिव देह का अंतिम दर्शन तक नहीं कर पायी और जिसका अब हर दिन इस आर्तनाद के साथ बीतेगा कि उसके बेटे के अंतिम क्षण कितनी क्रूरता और बर्बरता का सामना करते हुए बीते होंगे. कश्मीर में शहीद भारतीय सैनिक हमारे सम्मान, श्रद्धा और प्रणाम के पात्र देवता हैं. उन्होंने देश की खातिर अपना सर्वोच्च बलिदान दे दिया. लेकिन, क्या उनके बलिदान का मूल्य हम चुका पायेंगे? यह मूल्य केवल पाकिस्तानी बर्बरों के साथ प्रतिशोध लेने तक ही सीमित नहीं रह सकता. यह धर्म और अधर्म का युद्ध है. इसमें अपने शहीदों के रक्त का मोल बहुत ऊंचा चुकाना होगा.
परसों ही विद्या वीरता अभियान का दिल्ली में प्रारंभ हुआ, जिसमें भाग लेने आये परमवीर चक्र विजेता नायब सूबेदार संजय कुमार ने कारगिल युद्ध के अपने शौर्य का विवरण देते हुए बताया कि उनकी टुकड़ी ने 90 पाकिस्तानियों को मार गिराया था और उन्होंने पाकिस्तानियों को सूचना दी कि वे अपने फौजियों की लाशें ले जायें. लेकिन, पाकिस्तानी अफसरों ने मना कर दिया, तो भारतीय कंपनी कमांडर ने पाकिस्तानी फौजियों की लाशें सैनिक सम्मान के साथ दफन की थी. उनका कहना था कि मृत्यु के बाद कोई दुश्मनी नहीं होती. यह है भारतीय सेना का आदर्श. पाकिस्तानी सेना तो रक्त पिपासु है. उसका न काेई दीन है और न कोई ईमान है.
ऐसे लोगों को सबक सिखाने के लिए जो भी उचित होगा, वह भारत सरकार और भारतीय सेना अवश्य ही करेगी. इसमें हमें रत्ती मात्र भी संशय नहीं करना चाहिए.
भारत के परमवीर चक्र विजेता अब्दुल हमीद और कारगिल के शूरवीर कैप्टन हनीफुद्दीन जैसे वीरों ने पाकिस्तानी सांप्रदायिकता का जवाब भारत की सामाजिक एकता और लोकतंत्र के प्रति निष्ठा से दिया है. पाकिस्तान की फौज ठग फौज है. इसे फौज कहना फौज का अपमान है. यह निश्चित रूप से दोनों देशों को नफरत की आग में सुलगाये रखना चाहती है, जिसके जवाब में भारत को निर्णायक कदम उठाने ही होंगे.
जम्मू-कश्मीर के लगभग सभी नगरों और सीमांत माेर्चों पर फौज के साथ रहने का मुझे अवसर मिला है.
कारगिल युद्ध की भी मैंने बटालिक के मोर्चे से रिपोर्टिंग की थी. केरल, कर्नाटक, बिहार, असम, अरुणाचल से लेकर गुजरात, पंजाब और जम्मू के निवासी ये सैनिक बहुत अभिमान तथा गौरव के साथ सेना में भरती होते हैं. चाहे सीआरपीएफ हो, बीएसएफ या आइटीबीपी माेर्चे पर तैनात सैनिक हों, इनकी वर्दी के आधार पर कोई भेद नहीं हो सकता. वह जो भी है, भारत के संविधान तथा नागरिकों की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने को तत्पर भारत मां का बेटा है. इसके अलावा उसकी कोई पहचान करना गलत होगा.
अभी कुछ दिन पहले मैं जम्मू-कश्मीर की यात्रा से लौटा, तो सैनिकों का दर्द मन के भीतर तक कचोट गया. हमें तय करना होगा कि कश्मीर के पत्थरबाज हमसे क्या रिश्ता रखते हैं और हम उनसे क्या रिश्ता रखें. विडंबना यह है कि इस देश में शायद ही कोई ऐसा नेता होगा, जिसका बेटा फौज में गया हो या आज भी तैनात हो. मीडिया में आतंकवादियाें से हमदर्दी रखनेवाले संवाददाता बनने का फैशन हो गया है, लेकिन जवान के दर्द को टीवी के परदे पर दिखाना दकियानूसी और पिछड़ापन मान लिया गया है.
सोशल मीडिया पर जिस प्रकार के वीडियो तूफानी गति से फैल रहे हैं, वह देख कर किसी का खून ना खौले, तो उसकी भारतीयता पर शक हो सकता है. कश्मीर के लड़के भारतीय देशभक्त जनता की मेहनत की कमाई से अदा किये गये राजस्व का लाभ उठा कर पढ़ते हैं, कैरियर बनाते हैं और फिर आवारगर्दी के लिए भरपूर वक्त निकाल कर अपने ही भारतीय खून के खिलाफ खड़े होते हैं. सुबह छह बजे से सांझ ढले तक जो सैनिक इन कश्मीरियों की रक्षा तथा उन्हें बाढ़, तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाओं से बचाने के लिए अपनी जान की बाजी लगाकर भी काम करता है, उनसे कृतज्ञता की अपेक्षा करना तो दूर, उन्हें सामान्य सम्मान भी अगर नहीं मिलता है, तो कहीं न कहीं तो नीति में बदलाव की जरूरत होगी ही.
वह सैनिक हमारे और आपके परिवार से है अौर इज्जत तथा ईमानदारी की वर्दी पहनता है. जो पत्थरबाज बेईमानी में ढले कटोरों में पैसे इकट्ठा कर अपनी ही मातृभूमि के खिलाफ नारे लगाते हैं और हमारे वीर सैनिक के धैर्य और संयम की परीक्षा लेते हुए कायरों की तरह अपनी भीड़ के आगे स्त्रियों को दौड़ा कर पत्थर फेंकते हैं तथा गालियां देते हैं, उनके लिए क्या हमारे किसी शब्दकोश में रहम का उल्लेख भी सहन होना चाहिए?
वीर सैनिक चेतन चीता तो अपने हौसले और सैन्य चिकित्सकों के चमत्कार से बच गये, लेकिन जब घायल मेजर सतीश दहिया अस्पताल ले जाये जा रहे थे, तो पत्थरबाजों ने रास्ता रोक दिया और उस कारण जो देरी हुई, उससे मेजर दहिया बचाये नहीं जा सके. फिर भी हम घाटी में बातचीत का उचित माहौल बनाने की बात करते हैं. फिर भी हम कहते हैं कि कश्मीरी लड़के हमारे अपने हैं.
अगर किसी को वास्तव में यह देखना है कि इन पत्थरबाजों के परिवारों से निकले बच्चों की जिंदगियां बेहद आत्मीयता और लगन से कौन संवार रहा है, तो उत्तर में केवल एक संगठन का नाम आयेगा और वह संगठन है भारतीय सेना. अपनों से ही तमाम आघातों के बावजूद कश्मीर में 45 से ज्यादा सद्भावना विद्यालय भारतीय सेना द्वारा चलाये जा रहे हैं, जिनमें प्राय: 14 हजार से अधिक कश्मीरी लड़के-लड़कियां लगभग नगण्य फीस देकर देश की सर्वश्रेष्ठ शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं.
इन सब विद्यालयों में भारत के महान राष्ट्रीय नायकों एवं महापुरुषों के चित्र होते हैं, वहां तिरंगा झंडा लहराया जाता है, गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस के उत्सव मनाये जाते हैं. यह भारतीय सेना का अमृत है, जो तिरंगे की शान तथा संविधान का मान बढ़ा रहा है.
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