बैंक कर्मचारियों ने जिस मेहनत और लगन से कतार में खड़े लोगों की दिन-रात मदद की है, वह काबिले-तारीफ है, लेकिन अनेक कर्मचारियों ने धड़ल्ले से नोटों की कालाबाजारी भी की है. इस मामले में कई गिरफ्तारियां भी हुई हैं. नकदी के संकट और निकासी की सीमा होने के बावजूद भारी मात्रा में नोटों की बरामदगी बेहद चिंताजनक है. जाहिर है, इतने बड़े पैमाने पर पुराने नोटों को बदलने और लाखों-करोड़ों की नकदी देने के आपराधिक कृत्य बिना बैंक कर्मचारियों की मिलीभगत के अंजाम नहीं दिये जा सकते हैं. रिपोर्टों के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देश पर जांच एजेंसियाें ने उन बैंकों और कर्मचारियों की पहचान करने का काम शुरू कर दिया है, जिनके जरिये नोटों की कालाबाजारी हुई है.
पकड़े गये नोटों पर छपी संख्या से इस बात का पता लगाया जा रहा है कि उन्हें किन बैंकों को दिया गया था. रिजर्व बैंक द्वारा नये नोट बैंकों तक भेजे जाने की प्रक्रिया में उनके सीरीज दर्ज किये जाते हैं. इस प्रकरण की सीसीटीवी में रिकॉर्डिंग होती है, जिन्हें कम-से-कम 90 दिनों तक संभाल कर रखा जाता है. ऐसे में यह जान पाना मुश्किल नहीं है कि पकड़ी गयी नकदी किस बैंक को दी गयी तथा उससे पहले किन अधिकारियों और सुरक्षाकर्मियों पर उनकी सुरक्षा की जिम्मेवारी थी.
रिपोर्टों के मुताबिक, कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री के निर्देश पर करीब 500 बैंक शाखाओं में धोखाधड़ी में शामिल अधिकारियों की पहचान के लिए स्टिंग ऑपरेशन किया गया था. कई पर्यवेक्षकों का मानना है कि यदि बैंकों ने पारदर्शिता से अपनी जिम्मेवारी निभायी होती, तो लोगों को इतनी मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ता. उल्लेखनीय है कि रिजर्व बैंक ने नोटबंदी की घोषणा के एक महीने से अधिक समय बीत जाने के बाद 12 दिसंबर को बैंकों को निर्गत नये नोटों का हिसाब रखने को कहा था. इस देरी के बावजूद जांच एजेंसियां अपने काम में लगी हैं.
बीते आठ नवंबर से 30 दिसंबर तक के बैंकों के सीसीटीवी की रिकॉर्डिंग से भी जांच में मदद मिलेगी. उम्मीद है कि त्वरित जांच के बाद दोषी कर्मचारियों को दंडित किया जा सकेगा, ताकि लोगों की नजरों में बैंकिंग व्यवस्था की साख फिर से बहाल हो सकेगी. भ्रष्टाचार और कालेधन के खिलाफ लड़ाई में हर मोर्चे पर मुस्तैदी जरूरी है, अन्यथा इतनी परेशानियां बेकार ही जायेंगी.

