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निजी बैंकों की खामियां

नोटबंदी के बाद से अब तक आयकर छापों में देशभर में तीन हजार करोड़ रुपये से अधिक के काले धन का पता चला है. इनमें सोना, बंद और चालू नोटों के साथ करीब ढाई सौ करोड़ के नये नोट भी शामिल हैं जिन्हें पाने के लिए लोगों को कतारों में परेशान होना पड़ रहा है. […]

नोटबंदी के बाद से अब तक आयकर छापों में देशभर में तीन हजार करोड़ रुपये से अधिक के काले धन का पता चला है. इनमें सोना, बंद और चालू नोटों के साथ करीब ढाई सौ करोड़ के नये नोट भी शामिल हैं जिन्हें पाने के लिए लोगों को कतारों में परेशान होना पड़ रहा है.
नकदी की इस कालाबाजारी में सबसे चिंताजनक तथ्य यह है कि इसमें निजी बैंकों के अनेक अधिकारी शामिल हैं जो नोटों को ग्राहकों को देने के बजाये मोटी दलाली लेकर अदला-बदली का धंधा कर रहे हैं. अब तक एक्सिस बैंक ने 19 और एचडीएफसी ने चार कर्मचारियों को बर्खास्त किया है. हालांकि अब तक रिजर्व बैंक के कुछ अधिकारियों समेत सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के अनेक कर्मचारियों की ऐसे अपराधों में मिलीभगत के मामले भी सामने आये हैं, पर जानकारों का कहना है कि जो भी मामले हमारे सामने हैं, वे पूरी कालाबाजारी का बहुत छोटा हिस्सा हैं. एक निजी बैंक की दो-चार शाखाओं में सौ से अधिक फर्जी खाते मिले हैं.
नोटबंदी से पहले भी कालेधन को सफेद बनाने और देश का पैसा बाहर भेजने के कुछ मामले सामने आ चुके हैं. बंगलुरु के भारतीय प्रबंधन संस्थान द्वारा मार्च, 2016 में प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया था कि अप्रैल, 2010 से मार्च, 2013 के बीच बैंकिंग धोखाधड़ी के 55.16 फीसदी मामले निजी बैंकों तथा 27.31 फीसदी मामले विदेशी बैंकों से जुड़े हुए थे. शायद इनमें तुलनात्मक रूप से कम राशि के हेराफेरी के कारण अधिक चर्चा नहीं हुई. यह बड़ा दिलचस्प है कि सरकारी बैंकों में धोखाधड़ी के मामलों में करोड़ों की हेराफेरी होती है, जबकि निजी बैंकों में यह हजारों और लाखों में है.
इसका यह निष्कर्ष भी निकाला जा सकता है कि निजी बैंकों का कारोबार मध्य और निम्न आयवर्गीय खाताधारकों के लिए अधिक जोखिमभरा है. बीते दशक में निजी क्षेत्र के बैंकों की संख्या तथा कार्य-क्षेत्र में तेज बढ़ोतरी हुई है, परंतु उससे जुड़ी व्यवस्थाओं तथा प्रक्रियाओं का विस्तार अपेक्षित गति से नहीं हो सका है. निजी बैंक अपने खर्च में कटौती करने की जुगत में शिकायतों के निवारण के लिए कम लोग रखते हैं.
कर्मचारियों और एजेंटों की बहाली में पारदर्शिता और सावधानी का अभाव होता है. सरकारी और वित्तीय तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार भी बैंकिंग की खामियों को पोषण देता है. ऐसे में संबद्ध विभागों को अतिरिक्त सतर्कता बरतने की जरूरत है. मौजूदा लचर और लापरवाह बैंकों के बूते कैशलेस इकोनॉमी स्थापित कर पाना मुश्किल होगा.

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