आज के राजनीतिक अफरा-तफरी और अराजक अारोपों के दौर में अटल बिहारी वाजपेयी जी जैसे अजातशत्रु राजनेता की सक्रियता बहुत जरूरी महसूस होती है. उनके व्यक्तित्व का ही यह चुंबकीय गुण था कि वैचारिक दृष्टि से विपरीत ध्रुव वाले राजनेता और दल भी उनके साथ आज जुड़ने के लिए कभी संकोच नहीं करते थे. उन्होंने प्रधानमंत्री पद की दो बार शपथ ली, छह वर्ष राजकाल संभाल दलों को साथ लेकर एक ऐसे गंठबंधन धर्म का उदाहरण प्रस्तुत किया जो वर्तमान अराजक गठबंधन सरकार के दौर में प्रेरणादायक उदाहरण ही कहा जा सकता है.
शालीन राजनीति के चिरंजीवी प्रतीक वाजपेयी आज अस्वस्थता की स्थिति में भी एक ऐसा शानदार सफल सिक्का माने जाते हैं, जिसकी चमक हिंदुस्तान के हर हिस्से में बदस्तर बरकरार है. उत्तर प्रदेश से बिहार और दक्षिण से धुर पूर्वोतर एक राजनीतिक दृष्टि से भाजपा के घनघोर विरोधी भी अटल जी का नाम आते ही निशस्त्र हो जाते हैं. विदेशी संबंधों की दृष्टि से पाकिस्तान,चीन और अमेरिका तक यदि किसी राजनेता का नाम सम्मान और स्वीकार्यता के साथ लिया जाता है तो संभवत: पंडित नेहरू के बाद दूसरा नाम सिर्फ वाजपेयी का है. इसका अर्थ यह नहीं है कि उन्होंने राष्ट्रीय हितो के साथ समझौता करते हुए देशों के साथ दोस्ती की कोशिश की थी. राष्ट्रीय हितों पर वे चट्टान की तरह दृढ़ खड़े रहे, पोखरण दो का विस्फोट किया, अमेरिका, यूरोप तथा जापान के कडे. प्रतिबंधों का दृढ़ता से सामना किया और कहा- टूट सकते हैं, मगर झुक नहीं सकते. पाकिस्तान के साथ यदि सर्वश्रेष्ठ संबंध उनके समय स्थापित हुए, तो कारगिल आक्रमण का भी उन्होंने जमकर जवाब दिया. सैनिकों के सम्मान का जो आदर्श अटल जी ने स्थापित किया, वह ऐतिहासिक है.
अमेरिकी प्रतिबंधों के सामने जब सुपर कंप्यूटर की अनुपलब्धता की चुनौती खड़ी हुई, तो ये अटल जी की हिम्मत भरी प्रेरणा का ही प्रताप था कि भारत के वैज्ञानिकों ने सुपर कंप्यूटर से बेहतर और सस्ता परम कंप्यूटर बना दिखाया. भारत के कोने-कोने को शानदार राजमार्गों से जोड़ने की प्रसिद्ध योजना अटल जी सामने महाराष्ट्र क तत्कालीन यशस्वी मंत्री नितिन गडकरी ने रखी, तो अटल जी ने तुरंत उसे माना और आज अटल राजमार्ग पूरे देश में नवीन प्रगति के कीर्ति स्तंभ माने जाते हैं. टेलीकाम क्रांति और युद्धक सामग्री में पर्याप्त प्रगति भी उन्हीं की देन रही है. तेरह दिसंबर के संसद पर हुए हमले के बाद पाकिस्तान को सबक सिखाने की पूरी तैयारी थी, पर तत्कालीन राष्ट्रपति बुश ने वादा किया था कि भारत की ओर से वे पाकिस्तान को ठीक करेंगे. वह एक अलग अध्याय है.
अटल जी पत्रकारिता में कठोर निंदक शब्दों के हिमायती नहीं है. वे पांचजन्य, राष्टधर्म जैसे राष्ट्रवादी पत्रों के प्रथम संपादक थे. प्रधानमंत्री होते हुए भी पांचजन्य की प्रस्तुति पर अक्सर समीक्षात्मक फोन करते थे. धार्मिक क्षेत्र में सुधार और जातिवादी रूढ़ियों के विरुद्ध जब हमने धर्म क्षेत्र कुरुक्षेत्र विशेषांक निकाला, जिसमें प्रथम पृष्ट पर जगद्गुरु शंकराचार्य काशी के डोम राजा चंडाल के साथ विश्व हिंदू परिषद् के कार्यक्रम में भोजन करते दिखाये गये, तो अटल जी बहुत प्रसन्न हुए थे. वे रूढ़ियों और कुरीतियों के विरुद्ध विवेकानंद तथा आंबेडकर की तरह कठोर आवाज उठाने के पक्षधर थे. एक बार स्वदेशी आंदोलन के प्रवाह में हमने भारत माता के चीर हरण का चित्र पांचजन्य में छापा तो वे बहुत क्रुद्ध हुए. प्रधानमंत्री कार्यालय से ही फोन किया- विजय जी यह क्या छापा आपने हम मर गये हैं क्या? हमारे रहते क्या भारत माता पर कोई आघात करने की हिम्मत कर सकता है. और यह कह कर उन्होंने फोन रख दिया.
एक बार श्रीमती सोनिया गांधी के बारे में एक लेख में कटु शब्दों का उपयोग हुआ, तो फिर उन्होंने समझाया कार्यक्रमों और नीतियों की आलोचना जम कर करो परंतु व्यक्तिगत निंदा हमारी विचारधारा की परिधि से बाहर की बात है. पांचजन्य स्वर्ण जयंती समिति के अध्यक्ष के नाते उन्होंने अनेकों मूर्धन्य लेखकों को सम्मानित किया, जिनमें अधिकांश हमारी विचारधारा से न जुडे. हुए ख्यात नाम सृजनशाील व्यक्ति थे. अटल जी का कहना है कि सबको साथ लेकर चलने का स्वभाव रखना चाहिए. एक बार कैलास मानसरोवर पर अपनी पुस्तक के विमोचन का आग्रह करने अटल जी के पास गया, तो वे बोले तो कर ही दूंगा, पर अच्छा होगा इसमें हमारे संगठन और विचारधारा के दायरे से बाहर के व्यक्ति को भी आमंत्रित किया जाये. एैसा कौन सा यक्ति हो सकता है. तो फिर उन्होंने खुद ही सुझाव दिया कि डाॅ कर्ण सिंह जी से बात करो. मैंने कहा एक तो मेरा उनसे परिचय नहीं, दूसरे वे मेरी बात मानेंगे, ऐसा मुझे विश्वास नहीं. यह सुन कर वे हंस पड़े और स्वयं फोन कर डाॅ कर्ण सिंह जी को पुस्तक के विमोचन के लिए राजी किया तथा स्वयं भी उस कार्यक्रम में वक्ता के नाते उपस्स्थित हुए.
लद्दाख में हमने आडवाणी जी के संरक्षण और आशिर्वाद से सिंधु दर्शन कार्यक्रम प्रारंभ किया था. अटल जी कुछ कारणों से प्रारंभ मेें इस वार्षिक कार्यक्रम में नहीं आ पाये. एक बार प्रधानमंत्री निवास स्थित पंचवटी सभागार में वे मुझसे बोले- क्या बात है विजय जी, आप सबको बुलाते हैं. सिंधु का हमको दर्शन कराया नहीं और अगले वर्ष भी आये तथा उनकी उपस्थिति में सिंधु पूजन और दर्शन का वह कार्यक्रम यादगार बन गया.
अटल जी आज भी सही अर्थों में शत्रुताविहीन शालीन राजनीति के शानदार प्रतीक हैं. कवि, पत्रकार, साहित्यिक लेखक, प्रखर राजनेता और असाधारण वक्तृता के धनी सरस्वती पुत्र अटल जी शतायु हों, यही कामना है.
तरुण विजय
सांसद, भाजपा

