।। रविभूषण ।।
(वरिष्ठ साहित्यकार)
फिलहाल पिछले दो दिनों (13-14 फरवरी) के घटनाक्रम को देखें. पंद्रहवीं लोकसभा के अंतिम सत्र में जो कुछ घटित हुआ, क्या वह अप्रत्याशित था? अमेरिकी राजदूत नैंसी पॉवेल की गांधीनगर में नरेंद्र मोदी के निवास पर उनसे की गयी भेंट अमेरिकी हितों से कितनी जुड़ी थी? अरविंद केजरीवाल के इस कथन में कि मुकेश अंबानी ने दिल्ली विधानसभा में कांग्रेस और भाजपा को आपस में मिलाया, कितनी सच्चई थी?
जनलोकपाल बिल पारित न होने पर अरविंद केजरीवाल का इस्तीफा कितना उचित था? संसद में तेलंगाना बिल और दिल्ली विधानसभा में जनलोकपाल बिल पर इतना हंगामा क्यों हुआ? पेट्रोलियम मंत्री वीरप्पा मोइली ने एक अप्रैल, 2014 से गैस मूल्य बढ़ाने की अनुमति किसके पक्ष में दी? संभव है, इन सबमें कोई संबंध या संगति हमें न दिखाई दे, पर सूक्ष्म रूप में ही सही, एक आंतरिक संगति अवश्य दिखायी देगी, जिससे हम इस नतीजे पर पहुंच सकते हैं कि जो कुछ भी हो रहा है, उसकी जड़ें दूर तक फैली हुई है.
लोकतंत्र की मर्यादा की बात करनेवाले यह नहीं समझ पाते कि समय-परिवर्तन से लोकतंत्र का चेहरा और स्वरूप भी बदलता है. संसद में हाथापाई, मारपीट, हंगामा और बिल फाड़ना नयी घटना नहीं है. हमने ‘आचरण की सभ्यता’ लेख बहुत पहले लिखा था. अब ‘आचरण की असभ्यता’ का दौर है. निलंबन अपने में अब कोई सजा नहीं है. 15वीं लोकसभा के धनाढय़ सांसद ने मिर्च स्प्रे किया, लैपटॉप तोड़ा, चाकू लहराया, माइक के साथ कांच तोड़ा, हाथापाई की. भारतीय लोकतंत्र आज अगर दागदार, विकृत, बीभत्स दीखता है, तो हमें उन कारणों की पड़ताल करनी चाहिए, जिनसे ऐसा चेहरा बना. लोकतंत्र को वास्तविक खतरा ऐसे ‘नेताओं’ से है, जो कई दलों के हैं.
मिर्च स्प्रे करनेवाले कांग्रेस के लगदापति राजगोपाल 300 करोड़ के मालिक हैं. चाकू निकालने और लैपटॉप तोड़नेवाले तेदेपा के सांसद मोदोगुला वेणुगोपाल रेड्डी भी कम धनाढय़ नहीं हैं. जो सांसद निलंबित हुए, उनमें कांग्रेस के दस, तेदेपा के तीन और वाइएसआर कांग्रेस के दो हैं. वोट की घृणित राजनीति ने भारतीय समाज और जनजीवन में अनेक नयी दरारें पैदा कर दी हैं. भाषा के आधार पर राज्य-विभाजन के बाद अब वोट के आधार पर राज्य विभाजित किये जा रहे हैं. आंध्र प्रदेश में तेलंगाना में लोकसभा की 17 सीटें हैं और रायलसीमा और तटीय आंध्र में 25. तेलंगाना अविकसित है. अविकसित क्षेत्रों में ही नक्सलवाद पैदा हुआ और फैला. रायलसीमा और तटीय आंध्र में कांग्रेस की हार सुनिश्चित है. वहां जगनमोहन रेड्डी का प्रभाव है. कांग्रेस ने तेलंगाना राज्य पर अपने सांसदों के साथ ही नहीं, प्रदेश के मुख्यमंत्री के साथ भी गंभीर बैठकें नहीं कीं. तेदेपा नरेंद्र मोदी के साथ है और कांग्रेस टीआरएस का साथ चाहती है.
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से अमेरिका की कुचालों पर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता. अमेरिका अपने हित में सारे कार्य करता है. भारतीय नेताओं को जनहित और राष्ट्रहित की कोई चिंता नहीं है. नौ साल के बाद अमेरिका का मोदी के प्रति बदला रुख भारत में ‘मोदी लहर’ का परिणाम है. नैंसी पॉवेल ने गुजरात मॉडल की जो प्रशंसा की है, वह मॉडल अमेरिका के हित में है, न कि भारत के हित में. अमेरिका और अन्य देश अब विदेश व्यापार के लिए राज्यों से बात कर रहे हैं. अमेरिका अराजक पूंजी (बाजार पूंजी, वित्तीय पूंजी) का स्नेत है, जनक है. परिवार से संसद तक जो बहुत कुछ छिन्न-भिन्न हो रहा है, उसका संबंध इसी पूंजी से है. इस पूंजी ने निजी हित और कॉरपोरेट हित को बढ़ाया है. यह पूंजी किसी की नहीं सुनती. वित्त मंत्री रहते मनमोहन सिंह ने यह नहीं सोचा होगा कि भारत में वह जिस ‘नयी उदारवादी अर्थव्यवस्था’ को लागू कर रहे हैं, उससे एक दिन यह स्थिति पैदा हो जायेगी कि उनके अपने मंत्री ही उनकी अवज्ञा करेंगे. आज की सभी गड़बड़ियां इसी अर्थव्यवस्था से जुड़ी हुई हैं. घोटाले चारों ओर बढ़ रहे हैं. गुजरात में नर्मदा परियोजना में कम घोटाला नहीं हुआ है. गुजरात की केवल एक चमकती तसवीर दिखायी जाती है, क्योंकि कुशल प्रबंधन में नरेंद्र मोदी अन्यतम हैं. मंगलेश डबराल के नये कविता संग्रह ‘नये युग में शत्रु’ (2013) की एक कविता ‘कुशल प्रबंधन’ है. ‘अन्याय का पता न चलने देना अन्याय का कुशल प्रबंधन है/ लूट का दिखना लूट की कला है/ दुनिया में भी अच्छा या बुरा नहीं है/ बल्कि सब कुछ अत्यंत प्रबंधनीय है.’ प्रबंधनक राजनीतिज्ञों की संख्या बढ़ी है. चुनाव इससे जुड़ चुका है. ‘शिकारी और शिकार कितनी ही दूर और छिप कर बैठे हो/ एक परफेक्ट मैनेजमेंट के हाथ/ उन्हें खींच कर एक-दूसरे के पास ले जाते हैं.’
पहली बार दिल्ली विधानसभा में कांग्रेस और भाजपा एक साथ मिले, अरविंद केजरीवाल के अनुसार इसे मुकेश अंबानी ने संभव किया. सुनीति कुमार घोष की एक पुस्तक ‘द इंडियन बिग बुजरुआजी’ (1950) बुजर्आजी की उत्पत्ति, विकास और चरित्र पर है. जिस ‘विकास’ का ढोल पीटा जाता है, उस विकास को लातिन (1985) अमेरिका के संबंध में आंद्रे गुंदर फ्रांक ने ‘आवारागर्द विकास’ कहा था. आवारा पूंजी ‘आवारागर्द विकास’ के सिवा और कुछ नहीं करती. अंबानी परिवार का सभी दलों से संबंध रहा है. एचडी देवगौड़ा कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने किसके ‘जेट’ पर गये थे?
आज भारत के किस पूंजीपति को हम ‘राष्ट्रीय पूंजीपति’ कहेंगे? 1990 के पहले आज के भारतीय पूंजीपतियों की समृद्धि कितनी थी? भारत में अरबपतियों की संख्या कितनी थी? 1990 के पहले ‘माओवाद’ कहां था? देश में संसाधनों की लूट कब शुरू हुई? राजनीति कब से लूट और झूठ से जुड़ी? गैस के मूल्य-निर्धारण को लेकर केजरीवाल से शिकायत करनेवाले सामान्य नागरिक नहीं थे. उनमें पूर्व कैबिनेट और ऊर्जा सचिव, पूर्व नौ सेना प्रमुख और सर्वोच्च न्यायालय की अधिवक्ता भी थीं. रिलायंस कंपनी ने सरकार के साथ 17 वर्ष तक 2.3 डॉलर प्रति यूनिट गैस आपूर्ति का करार किया था. पेट्रोलियम मंत्रलय और रिलायंस के संबंध विदित हैं. गैस की कीमत 2-3 डॉलर से चार डॉलर हुई और अब एक अप्रैल से आठ डॉलर होने जा रही है. सरकार सुनने को तैयार नहीं है.
दो बिलों पर हंगामा केवल दो बिल पर नहीं है. केजरीवाल ने इस्तीफा दे दिया है. दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग पर केजरीवाल ‘अंबानी के थिंक टैंक’ के रूप में काम करने का आरोप लगाते रहे हैं. नजीब जंग ने बिल पेश करने की अनुमति नहीं दी. यह सब जो हो रहा है, उसे गौर से देखें, समङों और फैसला करें कि यह सब दूर कैसे होगा? यह व्यवस्था कैसे बदलेगी?