आज के युवाओं को वेलेंटाइन डे की तैयारी करते देख शर्म आती है. हमारे युवा इसकी तैयारी तो 10 दिन पहले से शुरू कर देते हैं, पर मां की दवाई कब लानी है, पिताजी का जन्मदिन कब है, रामनवमी कब है, भारतीय नववर्ष कब है, चंद्रशेखर आजाद का जन्म कब हुआ, इन सबको फालतू बातें मानते हैं. मां अगर 30 किलो का रसोई गैस सिलिंडर उठाने को कहे तो नहीं उठाते, लेकिन 50 किलो की प्रेमिका को गोद में उठाने में गर्व महसूस करते हैं. इन पर शहीदों को भी शर्म आती होगी. भैया हमारे यहां हर दिन वेलेंटाइन डे है. जिनको चोंचले करने हों, करें. हमारी संस्कृति में सुबह उठते ही पिताजी की डांट होती है, मां या भाभी के हाथों की बनी चाय होती है. शादी हो गयी हो तो रसोई में पीछे से, चुपके से, पत्नी को प्यार से बाहों में भरना होता है. प्यार का कोई एक दिन नहीं, हर दिन प्यार करना होता है.
सुभाष वर्मा, सियाटांड़, गिरिडीह