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बदलाव के मंत्रों की तलाश!

-हरिवंश- डेनियल लेक की तुरंत प्रकाशित पुस्तक ‘इंडियन एक्सप्रेस’ (द फ्यूचर आफ ए न्यू सुपरपावर) पढ़ते हुए कई चीजें याद आयीं. 2005 में भारत पर ही छपी उनकी पुस्तक ‘मंत्राज आफ चेंज’ (परिवर्त्तन-बदलाव के मंत्र) की भी. इस पुस्तक के कवर पर ही लिखा था,‘रिपोर्टिंग इंडिया इन ए टाइम आफ फलक्स’ यानी संक्रमण-परिवर्तन के दौर […]

-हरिवंश-

डेनियल लेक की तुरंत प्रकाशित पुस्तक ‘इंडियन एक्सप्रेस’ (द फ्यूचर आफ ए न्यू सुपरपावर) पढ़ते हुए कई चीजें याद आयीं. 2005 में भारत पर ही छपी उनकी पुस्तक ‘मंत्राज आफ चेंज’ (परिवर्त्तन-बदलाव के मंत्र) की भी. इस पुस्तक के कवर पर ही लिखा था,‘रिपोर्टिंग इंडिया इन ए टाइम आफ फलक्स’ यानी संक्रमण-परिवर्तन के दौर में भारत पर रिपोर्ताज. पिछले 20 वर्षों से डेनियल, भारतीय उपमहाद्वीप में बीबीसी के पत्रकार के रूप में कार्यरत रहे.

वह कनाडा के जानेमाने लेखक हैं. डाक्यूमेंट्री फिल्में बनाते हैं. फिलहाल टोरेंटों में रहते हैं. डेनियल की ये दोनों किताबें बदलते भारत को लेकर हैं. दोनों के प्रकाशक पेंग्विन/विकिंग हैं. उनकी ताजा पुस्तक की कीमत है, 499. 2005 में छपी पुस्तक की कीमत थी, 375 रूपये.

आज के माहौल में ‘इंडियन एक्सप्रेस’ पुस्तक पढ़ते हए नाजिम हिकमत की कुछ पंक्तियां कुछ याद आयी,

‘उस पार है

उम्मीदों और उजास की

एक पूरी दुनिया

अंधेरा तो सिर्फ देहरी पर है’

आज जब अर्थसंकट के बादल दुनिया पर छा गये हैं. कहीं गहरे, कहीं कम, तब ‘भारत उदय’ की बात सुनना-पढ़ना असंगत लग सकता है. एक मित्र, अंगरेजी का एक मुहावरा याद दिलाते हैं, ‘होपिंग एगेंस्ट होप’ (आशा-उम्मीद के विपरीत आस्था). पुस्तक में 11 अध्याय हैं. 11वें अध्याय का नाम है, ‘बिकमिंग एशियाज अमेरीका : द नेक्स्ट लिबरल सुपरपावर’ (एशिया के अमरीका का उदय : दूसरी उदार महाशक्ति). जो अमरीका आज अपने सबसे खराब दौर या मोड़ पर है, वह कैसे अब दूसरे मुल्क के लिए प्रेरक या माडल हो सकता है?

पर डेनियल समझदार पत्रकारों में से हैं. हवा में तीर मारनेवालों की जमात में से नहीं. इसलिए उनकी पुस्तक इस नाजुक मोड़ पर भारत की अंदरूनी ताकत की झलक देती है. वह आश्वस्त हैं कि मुसीबतों, समस्याओं, शंकाओं और गंभीर चुनौतियों के बावजूद भारत उभरेगा. वह यह मानते हैं कि अदृश्य कठिनाइयां, पर्यावरण संकट और मानव आमंत्रित भयावह प्राकृतिक आपदाओं की चुनौतियां भी रहेंगीं. फिर भी भारत, अपने आलोचकों को निराश करेगा. सृजन और उदय का इतिहास रचेगा.

डेनियल की दृष्टि और समझ साफ है. बेबाक और स्पष्ट शैली में वह भारत की ताकत – कमजोरियों को गिनाते हैं. ’91 के बाद जन्में युवकों के लिए यह किताब खासतौर पर उपयोगी है. भूमिका में ही डेनियल ने चेन्नई का एक प्रसंग बताया है. एक गली में एक धोबी राम ठेला लगाकर कपड़े प्रेस करता था. भारत के शहरों में यह आम दृश्य है. मोहल्लों में, गलियों में ठेले पर यह काम करनेवाले मिलेंगे. इसी काम से चेन्नई के धोबी राम ने अपने दो बेटों को पढ़ाया.

बच्चों को पढ़ाने के लिए अपने कुछ स्थायी ग्राहकों से पैसे उधार लिये. दोनों बच्चों को कंप्यूटर कोर्स कराया. रात को ये बच्चे सॉफ्टवेयर की ट्रेनिंग पाते थे. यह ’90 के दशक की बात है. दो वर्षों बाद अपने दोनों बच्चों को लेकर राम उन सबके घर गया, जिनसे उसने बच्चों की पढ़ाई के लिए उधार लिया था. पाई-पाई चुकाया. दोनों बच्चे कंम्यूटर प्रोफेशनल हो गये थे. ये दोनों अत्यंत पिछड़ी जाति से आते थे. जिस तमिलनाडु में दलित जातियों की स्थिति दुखद थी, वहां ब्राह्मणों और सत्ता में आये मध्यजातियों का वर्चस्व तोड़कर, दलित बच्चों का उदय, महत्वपूर्ण सामाजिक प्रगति का सूचक है.

डेनियल की नजर में धोबी राम के परिवार का उदय एक ‘अंडरडॉग’ (उपेक्षित) के उत्थान का प्रतीक है. डेनियल के शब्दों में ‘इंडिया रियली वाज वंस द अंडरडॉग’ यानी वास्तव में भारत एक समय पराजित-उपेक्षित था. इस तरह राम और भारत एक ही प्लेटफार्म पर खड़े थे. इस एक उदाहरण में डेनियल ने यह बताया है कि कैसे शिक्षा में बदलाव ने भारत और राम जैसों की स्थिति को बदला. डेनियल कहते हैं कि राम के बच्चों का विश्व मंच पर प्रोफेशनल के रूप में आगमन की तरह ही भारत की कहानी है. भारत भी दुनिया के विकसित ब्राह्मण राष्ट्रों में पिछड़ा और उपेक्षित ही माना जाता था.

दलितों की तरह. इसी तरह ‘91 के बाद भारत का उदय भी विश्व मंच पर महत्वपूर्ण संकेत हैं. एक छोटी कोशिश कैसे चिंगारी बन सकती है, इसका उल्लेख डेनियल ने किया है. ‘80 के दशक के अंतिम दौर में, सरकार ने ‘टेलीफोन स्विचिंग डिवाइस्’ आयात करने की अनुमति दी. इसके बाद भारत में सूचना क्रांति की बुनियाद पड़ गयी. गली, मुहल्ले से लेकर जंगल-झाड़ तक, टेलीफोनों के फैलाव ने भारत के युवा वर्ग का मानस बदला. लेखक की दृष्टि में ‘लाइसेंस, कोटा और परमिट राज’ से मुक्ति के पहले का यह मामूली बदलाव था.

इस तरह 1991 में दिवालिया होने के कगार से भारत, न सिर्फ लौटा, बल्कि एक नये रास्ते पर चल पड़ा. आज दुनिया के लिए यही भारत आध्यात्मिक सुपर मार्केट भी बन गया है. इस तरह भारत की एक-एक चुनौतियों और उसके पहल की कोशिशों का ब्यौरा दिया है, डेनियल लेक ने. फिर नयी शताब्दी शुरू होने (2000 के बाद) के समय ‘वाइटूके’ समस्या विश्व के लिए सबसे कठिन अनसुलझी गुथी बन गयी. पूरी दुनिया इसको लेकर बेचैन थी. यह रहस्य या दुर्ग कौन भेद पायेगा, इसको लेकर संशय था. उसे भारत के युवकों ने कैसे हल किया और भारत का सिक्का दुनिया के बाजार में जमने लगा. इस पुस्तक में साथ-साथ भारत की चुनौतियों और उभरते क्षेत्रों का भी उल्लेख है, जिन्हें ‘सेवेन सी’ कहा जाता है. कंट्राडिक्शन (भारतीय समाज का अंतर्विरोध), कास्ट (जातिवाद), कम्यूनलिज्म (सांप्रदायिकता), कम्यूनिज्म (नक्सलवाद से आशय), करप्शन (भ्रष्टाचार), क्रिकेट और सिनेमा. डेनियल का निष्कर्ष है, भारत को अनेक प्रवृतियों के अंतर्विरोधों का समाधान ढूंढ़ना पड़ेगा.

इस तरह संकटों से निबटने की क्षमता और अज्ञात चुनौतियों को कुशलता से हल करने के रास्ते ही भारत सुपरपावर बनेगा. 2005 की अपनी पुस्तक ‘मंत्रज आफ चेंज’ में भारत के अंतर्विरोधों पर भी विस्तार से डेनियल ने लिखा था. दुनिया के मशहूर डेमोग्राफर और बीमारू हिंदी राज्यों की अवधारणा के जनक, डॉ आशीष बोस से हुई अपनी लंबी बातचीत के माध्यम से पिछड़ेपन की ग्रंथि को समझने की कोशिश की थी.

उस पुस्तक में डेनियल ने कहा था कि मैं अपनी पुस्तक से भारतीयों को यह नहीं बता रहा कि वे अपने देश की चिंता करें, बल्कि जिस तरह मैं चीजों को देख पा रहा हूं, उन अनुभवों को भारत से बांटने की कोशिश कर रहा हूं. डेनियल की दोनों पुस्तकों को साथ जोड़कर देखने से एक जानेमाने विदेशी पत्रकार की नजर में भारत की संपूर्ण छवि उभरती है.

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