दिल्ली विधानसभा में विश्वास मत पर बहस में डॉ हर्षवर्धन की बातें ठीक लगीं, मगर बाद में इसी पार्टी के नेताओं की लंबी बहस और बेमतलब की बातें बिलकुल नीरस थीं. जदयू विधायक शोएब इकबाल का गुस्सा देखने लायक था, मगर भाजपा के रु ख पर तो वह भी जायज ही लगा.
भाजपा दुर्भाग्य से ‘आप’ के अत्यंत ज्वलंत मुद्दों को पहले और अब बाद में भी नकार कर अपनी असली सूरत दिखा चुकी है. इसलिए उसकी इस जन विरोधी हरकत पर रहम और दु:ख ही है.
अच्छा तो यह था कि वह भी कांग्रेस की तरह ही खुल कर अलग से अपने समर्थन की आहुति इस यज्ञ में डाल पाती. इसी में उसकी भलाई और महानता थी. जो सही को भी सही न कह सके, उसे क्या कहें? राजनीति में सही वक्त को पहचानना बहुत जरूरी होता है. इस मामले में कांग्रेस भाजपा से बाजी मार ले गयी.
वेद मामूरपुर, नरेला, दिल्ली