17.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

बजट और महिलाएं

क्षमा शर्मा वरिष्ठ पत्रकार मदर डेयरी वाला नाराज था. एक ग्राहिका ने मजाक करते हुए कहा- क्यों नाराज हो शर्मा जी. भाभी से लड़ाई हो गयी. मदर डेयरी वाला बोला- अरे मैडम! आपको तो बस जब देखो तब मजाक सूझता है. लड़ाई तो मेरी इस काम से हो गयी है. हर रोज दो हजार का […]

क्षमा शर्मा
वरिष्ठ पत्रकार
मदर डेयरी वाला नाराज था. एक ग्राहिका ने मजाक करते हुए कहा- क्यों नाराज हो शर्मा जी. भाभी से लड़ाई हो गयी.
मदर डेयरी वाला बोला- अरे मैडम! आपको तो बस जब देखो तब मजाक सूझता है. लड़ाई तो मेरी इस काम से हो गयी है. हर रोज दो हजार का घाटा खा रहा हूं.
ग्राहिका चौंकी- अरे क्यों? इतना सामान मंगाते ही क्यों हैं, जो ना बिके!
कहां मंगाता हूं. देख नहीं रही हो पहले कितना सामान होता था, फिर भी शाम तक दुकान खाली हो जाया करती थी. मटर को ही देख लो. दो क्विंटल मटर दो घंटे में बिक जाती थी. अब बीस किलो चार दिन में भी ना बिके है.
लोगों ने खरीदना ही बंद कर दिया है. जो हरी सब्जी, फल किलो-किलो खरीदते थे, वे पाव से काम चला रहे हैं आजकल. मदर डेयरी वालों से कहता हूं कि सामान कम भेजें, मगर बहुत सी ऐसी सब्जियां वे जबर्दस्ती डाल जाते हैं, जिन्हें कोई नहीं लेता.
तो शर्मा जी, लोग क्या करें! हर साल बढ़ी तनख्वाह के पैसे तो बस रूमाल में बंधने लायक होते हैं और हर बजट में महंगाई सुरसा के मुंह जितनी बढ़ जाती है. लोग घर कैसे चलायें? मैं तो अपनी जानती हूं. पहले हर रोज दर्जन केले खरीदती थी, मगर अब चार उतने के आते हैं, जितने में पहले दर्जनभर. हम जैसे लोग तो चारों तरफ से पिटते हैं. टैक्स भी हमीं देते हैं. महंगाई की मार भी हम पर ही पड़ती है.
आप तो मैडम ऐसे कह रही हो, जैसे दुनिया की सबसे बड़ी गरीब आप ही हो. आजकल किसी सचमुच के गरीब से कह कर देखो कि वह गरीब है. वह इसे अपनी बेइज्जती समझ कर मारने दौड़ेगा कि गरीब होगा तू तेरा बाप. और आप सब जो गाड़ियों में चलते हो, करोड़ों के घरों में रहते हो, गरीबी-गरीबी चिल्लाते हो. अमीरों के लिए गरीब का बाना आजकल फैशन में है.
अरे शर्मा जी! महंगाई क्या सिर्फ गरीबों को सताती है? हम जैसे नौकरीपेशा भी इसकी तगड़ी मार खाते हैं. हमें मार पड़ती है, हमारा पर्स कटता है, तभी तो आपकी दुकान पर बिक्री भी कम होती है. कहती हुई वह महिला आगे चल कर घर जाने के लिए रिक्शे को पुकारने लगी. अपने घर के बारे में बताते हुए उससे पूछा कितने पैसे लेगा. रिक्शे वाला बोला- तीस रुपये.अरे तीस कैसे! अभी तो आते वक्त बीस दिये थे.
रिक्शे वाला बोला- कोई बात नहीं, जो बीस में ले जाये, उसके रिक्शे पर चली जाइए. इतनी महंगाई और बीस रुपये, हुंह…!
महिला सोचने लगी- देखो जरा इन्हें इस बात की चिंता नहीं कि सवारी छोड़ रहे हैं. बीस रुपये के मुकाबले इन्हें दस रुपये ज्यादा लग रहे हैं. चिंता हो भी तो क्यों, सवारियों की कोई कमी तो है नहीं.
आजकल हर कोई सवारी पर चलना चाहता है, पैदल नहीं.युवा तो भाव-ताव भी नहीं करते. इन्हें रिक्शे पर देखती हूं, तो अजीब लगता है. अभी से इतनी आराम तलबी और मेहनत से भागना. और तरह-तरह के रोगों को निमंत्रण. क्या इन्हें महंगाई नहीं सालती.
या कि यह सिर्फ औरतों के हिस्से ही आती है. वे ही एक-एक पैसे का हिसाब-किताब करती, उन्हें जोड़ती हर बार बजट के बाद बिसुरती नजर आती हैं कि घर में आनेवाला पैसा कम है और खर्चा बहुत ज्यादा हो रहा है. आखिर घर चलाएं तो कैसे? वे वित्त मंत्री और बाजार की तरफ अक्सर आशा भरी निगाहों से देखती हैं कि शायद अबकी कुछ राहत मिले.
मगर हर बार निराशा ही हाथ लगती है. क्या इस बार वित्तमंत्री उनकी सुन रहे हैं? क्या सुरसा रूपी महंगाई का मुंह कुछ देर के लिए बंद हो जायेगा? क्या औरतें महंगाई से निपटने के कारगर उपाय खोज लेंगी?

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें