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सड़क हादसों पर असंवेदनशीलता क्यों?
हमारे समाज में यह दृश्य बहुत आम है कि सड़क पर किसी दुर्घटना का शिकार हुआ इंसान तड़प-तड़प कर जान दे देता है. किंतु शायद ही कोई यह पहल करता है कि उसे अस्पताल तक पहुंचने में मदद करे. ताजा आंकड़े के मुताबिक, करीब एक लाख लोग सड़क दुर्घटना का शिकार होकर अपनी जान से […]
हमारे समाज में यह दृश्य बहुत आम है कि सड़क पर किसी दुर्घटना का शिकार हुआ इंसान तड़प-तड़प कर जान दे देता है. किंतु शायद ही कोई यह पहल करता है कि उसे अस्पताल तक पहुंचने में मदद करे.
ताजा आंकड़े के मुताबिक, करीब एक लाख लोग सड़क दुर्घटना का शिकार होकर अपनी जान से हाथ धो देते हैं. सिर्फ वर्ष 2014 में सड़क दुर्घटना के चार लाख 80 हजार से अधिक मामले दर्ज किये गये. प्रश्न यह उठता है कि आम तौर पर छोटी-छोटी घटनाओं में अपनी संवेदना प्रकट करनेवाले भारतीय सड़क हादसों पर इतने असंवेदनशील क्यों हो जाते है? इस प्रश्न का उत्तर यदि हम किसी भी भारतीय से करें, तो यह कहने में अतिशयोक्ति नहीं होगी कि सभी का उत्तर समान होगा कि इसके लिए सरकारी प्रक्रिया जिम्मेदार है.
जैसे ही हम किसी घायल व्यक्ति को अस्पताल तक पहुंचाते हैं. मददगार को ऐसी जटिल प्रक्रिया का सामना करना पड़ता है, जिस कारण उस मददगार की सारी सामाजिक जिम्मेदारी व समाज सेवा की भावना काफूर हो जाती है. पुलिस की कार्रवाई से मददगार को महसूस होता है कि जैसे उसने किसी की मदद नहीं की, बल्कि हादसे के लिए वह खुद ही जिम्मेदार है. ऐसी प्रक्रिया और संवेदनहीनता देश के लिए अनुचित है.
ऐसे कई देश हैं, जहां की सरकारें सड़क दुर्घटना के प्रति सजग और संवेदनशील है. फ्रांस में घायलों की मदद करना अनिवार्य व जर्मनी में कानूनन अपराध है. इजरायल में मददगार को आर्थिक नुकसान का मुआवजा मिलता है. ऐसे में हमारी सरकार को इन देशों से सीख कर सड़क दुर्घटना में घायलों की मदद करनेवालों के लिए नवीन प्रक्रिया अपनानी चाहिए, जिससे मददगार खुद को दोषी समझने के बजाय गर्व महसूस करे.
ऐसे लोगों को सामाजिक रूप से पुरस्कृत करना तथा मदद में खर्च काे आर्थिक मुआवजे के रूप में देना एक अच्छा विकल्प हो सकता है. जिससे मददगार दुर्घटना का शिकार हुए व्यक्ति के प्रति सिर्फ सहानुभूति न दिखाये, बल्कि आगे बढ़ कर अपनी संवेदना को जागृत कर उसकी मदद भी करे.
-अमित कुमार अंबष्ट, कोलकाता
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