झारखंड की गंठबंधन सरकार बालू घाटों की नीलामी को लेकर उलझी है. सरकार की सहयोगी पार्टियां मुख्यमंत्री के निर्णय पर सवाल उठा रही हैं. नाराजगी इस कदर बढ़ गयी है कि कांग्रेस व राजद के मंत्री सरकार गिराने तक की बात कहने लगे हैं. यानी, सरकार पूरी तरह अंदरूनी कलह में उलझी है. दूसरी तरफ, राज्य की काननू-व्यवस्था धराशायी होती जा रही है.
इस सप्ताह में दो बार सुरक्षा बलों पर नक्सली हमला हो चुका है. राज्य के कई शहरों में अपराध का ग्राफ बढ़ता जा रहा है. जमशेदपुर में पिछले कुछ दिनों से अपराधी बेलगाम हैं. व्यवसायियों को निशाना बनाया जा रहा है. एक सप्ताह पूर्व एक आभूषण व्यवासायी की हत्या की घटना की जांच अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि मंगलवार को शहर के बीचोबीच एक ट्रांसपोर्टर की गोली मार कर हत्या कर दी गयी. टाटा मोटर्स अस्पताल से लौट रहे एक अन्य व्यक्ति पर भी अपराधियों ने फायरिंग कर दी. इसी दिन नर्सरी कक्षा के एक पांच साल के बच्चे का शव कुएं में मिला. वह एक स्कूल के छात्रावास में रह कर पढ़ता था. कुछ दिन पहले ही कतरास में दो समुदायों में भिड़ंत होने से पूरा शहर दहशत में आ गया था.
लातेहार में राजद नेता के परिजन का शव बरामद हुआ. चतरा के बाद बुधवार को लातेहार में नक्सलियों ने सुरक्षा बलों पर हमला किया. आश्चर्य यह है कि इतना सबकुछ होने के बावजूद झारखंड सरकार सिर्फ बालू घाटों की नीलामी को लेकर ‘रेत का महल’ बनाने में लगी है. सरकार के मंत्री आपस में ही खींचतान में व्यस्त हैं. रोम जल रहा है और नीरो बांसुरी बजा रहा है. हमेशा की तरह इस बार भी यह बात तय लग रही है कि इस सरकार को भी जनता की परेशानियों से कुछ खास मतलब नहीं है. हर हफ्ते ट्रांसफर-पोस्टिंग की सूची जारी होती रहती है. ऐसा लग रहा है कि हेमंत सरकार ने अपनी पूर्ववर्ती सरकारों से भी कुछ सबक नहीं लिया. कहीं ऐसा न हो कि आपसी खींचतान के चक्कर में जनता का मुद्दा सरकार भूल जाये. सरकार के मंत्री और आला अधिकारी यह भूल जाएं कि राज्य में कानून-व्यवस्था बनाये रखना अंतत: उनकी ही जिम्मेवारी है. वक्त रहते जनता की नब्ज थामी नहीं गयी, तो रेत भरी मुट्ठी की तरह स्थिति सरकार के हाथ से फिसल जायेगी.