कुछ दिनों पहले तक भ्रष्टाचार का विषय खूब गरमाया हुआ था. मीडिया ने भी इसे खूब भुनाया. आंदोलन को ऐसी हवा दी कि लोगों ने अन्ना के साथ गांधी जी को याद किया. उनके दिखाये हुए मार्ग पर चलना भी पसंद किया. मुझे इस बात की बहुत ख़ुशी है, कि हमारे देश में इतने सालों बाद ही सही, कुछ तो अच्छा हुआ. लोगों को यह समझ तो आया कि अपने ही देशवासी किस तरह उन्हें लूट रहे हैं. मगर दूसरों के ऊपर उंगली उठाने से पहले क्या वे खुद के अंदर झांकते हैं?
आज हर कोई कहता नजर आता है कि भ्रष्टाचार हटाओ, तो क्या आपने खुद कभी इस बात पर अमल किया है. कोई बता दे जरा मुङो कि आखिर यह भ्रष्टाचार आया कहां से, जिसे देश के ठेकेदार बने ये लोग जड़ से मिटा देने का दावा कर रहे हैं, पहले बच्चे को झूठ बोलना तो वे खुद ही सिखाते हैं फिर जब वही बच्चा आगे जा कर उनसे खुद अपने मतलब के लिए झूठ बोलता है, तो उस पर ग़ुस्सा दिखाते हैं. बच्चे के स्कूल में उसके दाखिले का मसला हो, या मंदिर में लाइन में न खड़ा होना पड़े इसलिए हम खुद ही पैसा खिलाते हैं. पहले नियम हम खुद जान-बूझ कर भंग करते हैं और फिर जब उसका हरजाना देने की बात आती है, तो सजा के रूप में या जो धन राशि तय होती है उससे बचने के लिए हम खुद ही लोगों को घूस खिलाते हैं.
इसी तरह भ्रष्टाचार की शुरु आत करनेवाले भी हम ही हैं और दोष देते हैं देश के नेताओं को, जबकि उनसे पहले तो हम खुद ही भ्रष्ट हैं. जो लोग अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए और अपना उल्लू सीधा करने के लिए रिश्वत देते हैं, वे खुद ही सबसे बड़े भ्रष्टाचारी होते हैं. जब तक आम जनता इस पर जागरूकता नहीं दिखायेगी, कोई भी अन्ना या केजरीवाल भ्रष्टाचार को नहीं खत्म कर सकता है.
सतीश कुमार सिंह, इ-मेल से