अनुज कुमार सिन्हा
वरिष्ठ संपादक
प्रभात खबर
यह सही है कि युद्ध किसी समस्या का हल नहीं होता, लेकिन यह भी सही है कि जब दुश्मन बात से न माने, तो बंदूक की भाषा से समझाना उचित होता है. इसमें कोई दो राय नहीं कि पाकिस्तान भारत का पैदाइशी दुश्मन है और भारत को अस्थिर करने के लिए कोई मौका नहीं गंवाता.
पिछले दिनों भारत-पाक के बीच सुरक्षा सलाहकार स्तर की वार्ता रद्द कर दी गयी थी और उसके बाद से पाकिस्तान जिस तरह की धमकी िदये जा रहा है, वह बरदाश्त के बाहर है. यही कारण है कि अब भारत की ओर से उसी की भाषा में जवाब भी दिया जा रहा है. लेकिन यह अपर्याप्त है.
1965 और 1971 के युद्ध की पराजय को पाकिस्तान पचा नहीं पा रहा है. 1971 में इसी रवैये का कारण पाकिस्तान टूट गया और बांग्लादेश बन गया. कश्मीर मामले के बहाने वह भारत को अशांत करने में लगा है. आतंकियों का खुल कर साथ दे रहा है. खुद प्रशिक्षण दे रहा है और उसे भारत में हिंसा फैलाने के लिए भेज रहा है. यह सब प्रमाणित है.
सबसे बड़ा प्रमाण तो कसाब था, जिसे जिंदा पकड़ा गया था. अब तो दो और पकड़े गये हैं, लेकिन पाकिस्तान गलती मानने के अलावा दोषारोपण पर उतर आया है. दोनों ओर से जुबान चल रही है. शुरुआत पाकिस्तान ने की थी. दरअसल पाकिस्तान में उस अफसर, उस नेता का सबसे ज्यादा सम्मान होता है जो भारत के प्रति सबसे ज्यादा आग उगलता है. इसमें पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ सबसे आगे रहते हैं. उनका बयान था- हमने परमाणु बम शबे-बरात में सजाने के लिए नहीं बनाया है. पािकस्तान भूल जाता है कि जिस भारत को वह धमकी दे रहा है, वह खुद परमाणु संपन्न देश है, लेकिन जिम्मेवार देश है.
अगर पाकिस्तान कभी परमाणु हथियार का उपयोग करता है, तो उसके जवाब में उसका क्या होगा, शायद इसका उसे आभास नहीं है. हाल में पाक सेना के प्रमुख रहील शरीफ का बयान आया कि अगर भारत ने हमले का प्रयास किया, तो उसे बड़ी क्षति उठानी होगी. पाकिस्तान के सुरक्षा सलाहकार सरताज का बयान आया-अगर किसी ने दाऊद की खोज में मेरे देश में ऑपरेशन चलाने की हिम्मत की, तो इसके खतरनाक परिणाम होंगे.
पाकिस्तान इतनी सारी धमकियां लगातार जब दे रहा है, तो उसका जवाब तो मिलना चाहिए. भारत ने दिया भी. भारतीय सेना के प्रमुख जनरल सुहाग ने जब कहा कि सीमित कार्रवाई के लिए भारतीय सेना तैयार रहे. यह बात पाकिस्तान को चुभ गयी. हाल ही में भारत ने म्यांमार में घुस कर कुछ विद्रोहियों को मार गिराया था.
अब पाकिस्तान को यह डर सता रहा है कि कहीं भारत ऐसा ही कोई अभियान उसके इलाके में न चला ले. वैसे यह तय है कि भारत-पाक के बीच ऐसी कोई भी कार्रवाई युद्ध में ही बदलेगी. दुनिया नहीं चाहती कि अब युद्ध हो. युद्ध की तबाही को कोई भी राष्ट्र नहीं झेल सकता. युद्ध से देश कई साल पीछे चला जाता है, उसकी अर्थव्यवस्था चरमरा जाती है. लेकिन, पाकिस्तान जिस तरीके की हरकत कर रहा है, अगर वह बाज नहीं आता है, तो कुछ भी हो सकता है.
देश में इस वक्त एक ऐसी सरकार है, जो कड़े फैसले ले सकती है. कभी इंदिरा गांधी के कार्यकाल में भारत ने कड़ा फैसला लिया था और इस फैसले की चोट से पाकिस्तान आज तक बाहर नहीं निकल सका है.
भारत और पाकिस्तान दोनों देशों की अपनी समस्याएं हैं. गरीबी दूर करना, स्वास्थ्य सुधार, बेरोजगारी दूर करना, शिक्षा के स्तर को बढ़ाना, लाइफ स्टाइल को बेहतर बनाना प्राथमिकता होनी चाहिए, लेकिन पाकिस्तान ऐसे हालात पैदा कर रहा है, जिसके लिए भारत को तैयार रहना होगा.
1965 में भारत की फौज लाहौर तक घुस गयी थी. अगर अंतरराष्ट्रीय दबाव नहीं होता और युद्ध विराम नहीं होता, तो शायद पाकिस्तान का नामोनिशान मिट गया होता. खैर, पाकिस्तान अब एटम बम की धमकी देना बंद करे. भारत इतना बड़ा देश है कि उसके हमले दो-चार शहरों में तबाही भले मचा दें, लेकिन जब भारत जवाबी हमला करेगा, तो पूरा पाकिस्तान (एक छोटा सा सिरफिरा देश) पूरे तौर पर मिट सकता है.
दुनिया जानती है कि पाकिस्तान ऐसी गलती नहीं करनेवाला, जिससे उसका अस्तित्व ही खत्म हो जाये, इसलिए वह जुबानी जंग में बाजी मारने में लगा है.
बेहतर है कि बगैर युद्ध के भारतीय फौज इसका जवाब देती रहे. सीमा पार से जब एक गोला गिरे, तो इधर से इतना गोला मारो कि पाकिस्तानी गिनती भूल जायें. यही बेहतर जवाब होगा.
भारत की अर्थव्यवस्था इतनी तो मजबूत है ही कि दो-चार गोला रोज चलाने से भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन पाकिस्तान के आर्थिक हालात इतने खराब हैं कि उसे गोला खरीदने के लिए कहीं कर्ज न लेना पड़ जाये.