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हमारे मंत्रियों का भ्रष्टाचार

।। डॉ भरत झुनझुनवाला ।। अर्थशास्त्री देवताओं तथा असुरों के बीच युद्घ शाश्वत है. इस युद्घ में देवता पक्ष को मजबूत बनाना चाहिए. हमें भ्रष्ट मंत्रियों के विरुद्घ याचिका, आरटीआइ, धरना, मोरचा इत्यादि के जरिये प्रहार करते रहना चाहिए. ऐसे प्रहारों से भ्रष्टाचार की प्रवृत्ति कम होती है. लालू प्रसाद को जेल की सजा होना […]

।। डॉ भरत झुनझुनवाला ।।

अर्थशास्त्री

देवताओं तथा असुरों के बीच युद्घ शाश्वत है. इस युद्घ में देवता पक्ष को मजबूत बनाना चाहिए. हमें भ्रष्ट मंत्रियों के विरुद्घ याचिका, आरटीआइ, धरना, मोरचा इत्यादि के जरिये प्रहार करते रहना चाहिए. ऐसे प्रहारों से भ्रष्टाचार की प्रवृत्ति कम होती है.

लालू प्रसाद को जेल की सजा होना अच्छी बात हो सकती है, परंतु हमें इस भरोसे नहीं रहना चाहिए कि न्यायपालिका के द्वारा ही नेताओं के भ्रष्टाचार पर नियंत्रण हो सकेगा. लालू प्रसाद को किन्हीं विशेष 3-4 जिला ट्रेजरी से फर्जी कागजों के आधार पर रकम निकालने का दोषी पाया गया है.

दूसरे जिलों में भी इसी प्रकार रकम निकाली गयी होगी. दूसरे विभागों से भी इसी प्रकार रकम निकाली गयी होगी. दूसरे मंत्री ईमानदार होंगे, ऐसा मानना भी उचित नहीं होगा. यानी भ्रष्टाचार के समुद्र में एक चुल्लू भर भ्रष्टाचार पकड़ा गया है. आशय इस घटना के महत्व को कम दिखलाना नहीं है. आशय है कि हमें इस विशाल समुद्र पर बिना भ्रमित हुए अपनी निगाहें रखनी चाहिए.

न्यायपालिका से ही भ्रष्टाचार पर नियंत्रण की अपेक्षा करना ठीक नहीं. लालू प्रकरण में दो राजनीतिक पार्टियों का टकराव हो गया था. ऐसे में न्यायपालिका ने कठोर निर्णय लिया है. इतिहास में ऐसे कई उदाहरण हैं. हवाला कांड में सभी पार्टियों के शीर्ष नेता लिप्त थे. उन्हें ठोस साक्ष्य उपलब्ध होने के कारण छोड़ दिया गया.

बोफोर्स कांड में सत्यापित हो गया कि तोप के सौदे में घूस दी गयी, परंतु किसे दी गयी, इसके बारे में प्रमाण के अभाव में मामले को दफन कर दिया गया. इन दोनों प्रकरणों में यूपीए तथा एनडीए के बीच अलिखित समझौता था कि इन मामलों को दबा दिया जाये. ऐसे में न्यायपालिका फिसड्डी साबित हुई है. हाइकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट में यह समस्या ज्यादा गंभीर है.

लोग मानते हैं कि कुछ जजों द्वारा निर्णय देते समय विचार किया जाता है कि सेवानिवृत्ति के बाद उनकी आयोगों अथवा ट्राइबुनलों में नियुक्ति पर क्या प्रभाव पड़ेगा. इसलिए न्यायपालिका भ्रष्टाचार के मुद्दों पर नरम दिखती है.

सत्तारूढ़ व्यक्ति का भ्रष्ट होना नयी बात नहीं है. वास्तव में मंत्री के लिए भ्रष्टाचार में लिप्त होना सहज होता है. इसीलिए कहा गया है कि सरकारी कर्मियों द्वारा राजस्व की चोरी का पता लगाना उतना ही कठिन है, जितना यह पता लगाना कि मछली ने तालाब में कितना पानी पिया है.

मान कर चलिए कि ज्यादातर मंत्री भ्रष्ट हैं. बड़ा सवाल इनके भ्रष्टाचार पर नियंत्रण करने का है. गांधीजी को इस समस्या का पूर्वाभास था. स्वतंत्रता के बाद उनके पास मंत्रियों के भ्रष्टाचार की शिकायतें आनी शुरू हो गयी थीं. अपनी मृत्यु के दो दिन पहले उन्होंने कांग्रेस के लिए नये संविधान का प्रस्ताव रखा था.

वे समझ चुके थे कि जो व्यक्ति सत्ता में जायेगा, उसके भ्रष्ट होने की पूरी संभावना है. इसलिए वे ऐसी व्यवस्था खड़ी करना चाहते थे, जो बाहर रह कर मंत्रियों पर दबाव बना सके.

भ्रष्टाचार को लेकर लेनिन को भी ऐसी ही चिंता थी. उन्हें शंका थी कि बोलशेविक क्रांति के नेताओं का पतन हो सकता है. उन्होंने क्रांतिकारियों से आह्वान किया कि वे इस सरकार में हिस्सा लेने के स्थान पर कम्युनिस्ट पार्टी के साथ जुडं़े. पार्टी के कार्यकर्ता के रूप में वे सत्ता से अलग रहें.

जनता के बीच रह कर सरकार को दिशा दें. सरकार गलत दिशा में जाये, तो पार्टी दबाव डाले. नेताओं द्वारा सही आचरण नहीं किया गया, तो पार्टी द्वारा सरकार में बदलाव भी लाया जा सकता है. स्तालिन ने लेनिन के इस सोच को नकार दिया. सरकार के मुखिया और पार्टी के सचिवदोनों पदों पर अपने को नियुक्त करा लिया. सरकार पर पार्टी का अंकुश समाप्त हो गया और सरकार गलत दिशा में चल पड़ी, जिसका परिणाम सोवियत रूस के विघटन के रूप में सामने आया.

यूपीए अध्यक्षा सोनिया गांधी की अध्यक्षता में नेशनल एडवाइजरी कमेटी का गठन किया गया है. एनएसी ने कई अच्छे सुझाव दिये हैं, जिन्हें लागू करने का यूपीए सरकार को लाभ मिला है, परंतु सरकार को किसी दिशा में चलने पर मजबूर करने को एनएसी की ताकत नहीं है. इसलिए सरकार पर नियंत्रण की जिम्मेवारी सोनिया गांधी पर है. पुन: स्तालिन वाली समस्या है.

आप सरकार की प्रमुख भी हैं और सरकार की नियंत्रक भी. दोनों जिम्मेवारियों का निर्वाह करना असंभव है. पार्टी अध्यक्ष के रूप में आपकी प्राथमिकता गांधी परिवार के प्रति निष्ठावान व्यक्तियों को बढ़ाने की रहती है. इसलिए आपके द्वारा भ्रष्ट व्यक्तियों को मुख्यमंत्री बनाया जाता रहा है. इसलिए भ्रष्ट मंत्रियों पर आपका अंकुश नहीं है.

कुल मिला कर हमें ईमानदार मंत्री की अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए, बल्कि भ्रष्ट मंत्रियों पर नकेल और अधिक कसने वाली व्यवस्था बनानी चाहिए. देवताओं तथा असुरों के बीच युद्घ शाश्वत है. इस युद्घ में देवता पक्ष को मजबूत बनाना चाहिए. अपने स्तर पर भ्रष्ट मंत्रियों के विरुद्घ याचिका, आरटीआइ, धरना, मोरचा इत्यादि के जरिये प्रहार करते रहना चाहिए. ऐसे प्रहारों से भ्रष्टाचार की प्रवृत्ति कम होती है. यदि देवता पक्ष और सक्रिय हो, तो असुर पक्ष कमजोर होगा ही.

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