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मोबाइल फोन के 50 वर्ष और चुनौतियां

मोबाइल चुपके से हमारे जीवन में प्रवेश कर गया है और हमें पता तक नहीं चला है. शायद आपने अनुभव किया हो यदि आप मोबाइल कहीं भूल जाएं या फिर उसमें कोई तकनीकी खराबी आ जाए, तो आप कितनी बेचैनी महसूस करते हैं. दरअसल, मोबाइल फोन की हम सभी को लत लग गयी है.

माफ करें, एक शेर को मैं थोड़ा तोड़-मरोड़ कर पेश कर रहा हूं- ‘ये मोबाइल और ये परेशानियां, हाय मोबाइल तूने मार डाला!’ मोबाइल फोन इस्तेमाल करने वाले हर शख्स की यह कहानी है. मोबाइल फोन के अविष्कार के 50 वर्ष पूरे हो गये हैं. यह विज्ञान का एक बड़ा चमत्कार है, जिसने सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक क्रांति ला दी है. यह हमारे जीवन का अहम हिस्सा और तमाम गतिविधियों का केंद्र बन गया है. अब स्थिति यह है कि इसके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है.

मोबाइल फोन 1973 में आया, जब मोटोरोला के इंजीनियर मार्टिन कूपर ने इसका सबसे पहले इस्तेमाल किया. तीन अप्रैल, 1973 को दुनिया के पहले मोबाइल फोन मोटोरोला से पहला कॉल किया गया. तब यह एक स्वप्न जैसा ही लगता था कि कोई कल्पना भी कर रहा था कि बिना किसी तार से जुड़े हुए किसी फोन से बात भी की जा सकेगी. मुझे याद है कि मैंने और आप में से अनेक लोगों ने भी मोटोरोला के बड़े से हैंडसेट से बात की होगी. उस समय एक कॉल बड़ी महंगी होती थी और इनकमिंग कॉल के भी पैसे लगते थे. होता यह था कि मोबाइल की कॉल रिसीव नहीं की जाती थी, नंबर पता कर पास के किसी लैंडलाइन से बात की जाती थी. यह बहुत पुरानी बात नहीं है, जब मोबाइल का उपयोग सिर्फ बातचीत के लिए किया जाता था, लेकिन अब यह हमारे जीवन का एक अहम हिस्सा है.

लेकिन, यह भी सच है कि इसने कई तरह की गंभीर चुनौतियां भी पेश की हैं. इसकी लत का गंभीर दुष्प्रभाव देखा गया है. मोबाइल के ज्यादातर लती चिड़चिड़ेपन और बेचैनी के शिकार हो जाते हैं. स्थिति यह है कि बच्चे भी मोबाइल के बिना नहीं रह पा रहे हैं. डॉक्टरों का कहना है कि देखने में आ रहा है कि यदि किसी बालक के हाथ से मोबाइल छीन लें, तो वह आक्रामक हो जाता है. कुछ मामलों में तो वे आत्महत्या जैसे अतिरेक कदम भी उठा ले रहे हैं.  मैंने गूगल पर सर्च किया कि मोबाइल को लेकर हाल में क्या दुर्घटनाएं हुईं हैं. मेरे सामने अनेक दिल दहला देने वाली घटनाएं आयीं. राजस्थान के अजमेर में 11वीं में पढ़ रही एक बेटी से पिता ने मोबाइल वापस लिया, तो उसने आत्महत्या कर ली. मोबाइल वापस लेने के बाद वह अवसाद में चली गयी और उसने यह अतिरेक कदम उठा लिया. उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा में एक 15 वर्षीय लड़के ने आत्महत्या इसलिए कर ली कि  उसके माता-पिता ने उसे मोबाइल फोन पर गेम खेलने की अनुमति नहीं दी थी. मध्य प्रदेश के भिंड में तो एक 15 वर्षीया लड़की के मोबाइल निगल लिया. खबरों के अनुसार, मोबाइल को लेकर भाई-बहन में खींचतान हो रही थी और मोबाइल को अपने कब्जे में रखने के लिए लड़की ने उसे गटक लिया. कुछ अरसा पहले लखनऊ में मोबाइल फोन पर गेम खेलने से मना करने पर एक बेटे ने अपनी मां की गोली मार कर हत्या कर दी थी.
ये घटनाएं दर्शाती हैं कि मोबाइल का नशा कितना गहरा है कि लोग इसके लिए कुछ भी कदम उठाने से नहीं हिचक रहे हैं.

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अगर आप गौर करें, तो पूरा परिदृश्य ही बदल गया है. मोबाइल चुपके से हमारे जीवन में प्रवेश कर गया है और हमें पता तक नहीं चला है. शायद आपने अनुभव किया हो कि यदि आप कहीं मोबाइल भूल जाएं या फिर उसमें कोई तकनीकी खराबी आ जाए, तो आप कितनी बेचैनी महसूस करते हैं. दरअसल, मोबाइल फोन की हम सभी को लत लग गयी है. हम सब मौका मिलते ही मोबाइल के नये मॉडल की बातें करने लगते हैं. मैंने पाया कि कुछ लोगों को रील और वीडियो की लत ऐसी हो गयी है कि वे थोड़ी थोड़ी देर में उसे न देखें, तो परेशान हो उठते हैं. यह सही है कि टेक्नोलॉजी की ताकत इतनी है कि उसके प्रभाव से कोई भी मुक्त नहीं रह सकता है, लेकिन इसने युवा पीढ़ी के सोने, पढ़ने के समय, हाव भाव और खानपान सबको बदल दिया है. वे घर के किसी अंधेरे कमरे में हर वक्त मोबाइल में उलझे रहते हैं. अब खेल के मैदानों में आपको गिने चुने बच्चे ही नजर आयेंगे. एक बात और मैंने नोटिस की कि माता-पिता भी बच्चे से कुछ कहने से डरते हैं कि वह कहीं कुछ न कर ले.

नोकिया वार्षिक मोबाइल ब्रॉडबैंड इंडेक्स रिपोर्ट, 2022 से पता चलता है कि भारत दुनिया में सबसे अधिक डेटा उपयोग करने वाले देशों में से एक है. भारत में लोग अन्य देशों की तुलना में स्मार्ट फोन पर औसतन ज्यादा समय बिताते हैं. रिपोर्ट के अनुसार भारत में स्मार्ट फोन पर वीडियो देखने का चलन खासा बढ़ा है और यह 2025 तक आते-आते बढ़ कर चार गुना तक हो जायेगा. डेलॉइट के 2022 ग्लोबल टीएमटी अध्ययन में कहा गया है कि भारत में 2026 तक 100 करोड़ स्मार्ट फोन उपयोगकर्ता होंगे. यह बहुत बड़ी संख्या है. कोराना से पहले मुझे बीबीसी के लंदन में आयोजित मीडिया लीडरशिप समिट में हिस्सा लेने का मौका मिला था. बदलते तकनीकी परिदृश्य पर चर्चा के दौरान एक दिलचस्प तथ्य यह सामने आया कि यूरोप में मोबाइल इस्तेमाल करने वाले औसतन दिन में 2617 बार अपने फोन स्क्रीन को छूते हैं. निश्चित रूप से इस औसत में और वृद्धि हुई होगी. मुझे लगता है कि भारत भी इस मामले में बहुत पीछे नहीं होगा. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि हमारे जीवन में मोबाइल का हस्तक्षेप कितना बढ़ गया है. हमें तत्काल मोबाइल के इस्तेमाल और उससे उत्पन्न समस्याओं के विषय में गंभीरता से विचार करना होगा.

और अंत में गोविंद माथुर की कविता- ‘माचिस की दो खाली डिब्बियों के बीच/ एक लंबा धागा बांधकर/ दो छोरों पर खड़े हो जाते थे दो बच्चे/ पहले छोर से माचिस की डिब्बी को कान से सटा कर बच्चा कहता-हैलो!/ दूसरे छोर से दूसरा बच्चा, उसी अंदाज में बोलता- हां, कौन बोल रहा है/ फिर बहुत देर तक चलता रहता संवाद/ दोनों बच्चे महसूस करते/ वास्तव में उनकी आवाज एक-दूसरे तक/ बीच के धागे के माध्यम से पहुंच रही है/ संवाद करते-करते दोनों बच्चे बड़े हो गये/ दोनों बच्चों की जेब में माचिस की खाली डिबिया की जगह रखे हैं मोबाइल/ अब भी दोनों छोरों से देर तक चलता रहता है संवाद/ किंतु अब दोनों छोरों के बीच का धागा टूट गया है.’

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