झारखंड बनने से पूर्व बिहार सरकार की नीतियों पर मौजूदा झारखंड क्षेत्र के लोग एवं नेतागण नाराज रहते थे. इस क्षेत्र से सौतेला व्यवहार का आरोप लगाते थे. अन्य मुद्दों के अलावा झारखंड आंदोलन को गति देने में यह भी एक कारक रहा.
झारखंड अलग राज्य घोषित हुआ, खुशियों की बाढ़-सी आयी. हर मन में सपने सजने लगे कि अब यहां के दु:ख-दर्द पर हम खुद विचार कर पायेंगे और अपने लोगों से ही शासन चलेगा. पर 13 साल में 8 मुख्यमंत्री बदल गये, कई मंत्री भी आये-गये, लेकिन फिर भी ढाक के तीन पात! करोड़ों रुपये नेताओं और अफसरों के सुख-साधन में बह गये, पर इस शापित राज्य में विकास की गंगा नहीं बह पायी. कल तक जो अलग झारखंड का आंदोलन कर रहे थे, उन्हीं के हाथों में सत्ता आयी, पर बदला कुछ नहीं. कल भी हम निराश थे और आज भी हैं.
मनोज आजिज, आदित्यपुर, जमशेदपुर