हम किसी का मान-सम्मान करें या न करें, यह हमारी इच्छा पर निर्भर करता है, लेकिन किसी का अपमान करने का हमारा कोई अधिकार नहीं है. राजनेता हों या आम आदमी, एक-दूसरे को अशोभनीय बातें कहने, दूसरे धर्मो का अपमान करने और दूसरे का अनादर करने में कोई कसर नहीं छोड़ते. यह बहुत ही अशोभनीय और निराशाजनक स्थिति है. इसे कहीं से भी किसी रूप में जायज नहीं कहा जा सकता है.
माता-पिता, गुरु, परिजन, प्रियजन और यहां तक कि समाज में किसी का अपमान नहीं करना चाहिए. यह समझने की जरूरत है कि मान करें या न करें, यह आपकी इच्छा है, मगर किसी का अपमान तो नहीं कीजिए. यह बात समाज के हर किसी को समझ लेना चाहिए. यदि कोई अपमान करनेवालों के साथ अपमान करता है, तो उन्हें कैसा लगता है? इस पर सोचने के बाद बात समझ में आ जायेगी.
सुरुचि प्रिया, रांची