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पाक खेल का माहौल तो बनाये

खिलाड़ी भी तभी बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं, जब उन्हें यह यकीन हो कि वे सुरिक्षत हैं. अगर स्टेडियम के बाहर आत्मघाती हमले हों, तो अंदर भले ही खिलाड़ी सुरिक्षत हों, पर वे मानिसक तौर पर खेलने के लिए तैयार नहीं हो सकते. पाकिस्तान टीम के कप्तान मिसबाह अपने देश में क्रिकेट की स्थिति से […]

खिलाड़ी भी तभी बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं, जब उन्हें यह यकीन हो कि वे सुरिक्षत हैं. अगर स्टेडियम के बाहर आत्मघाती हमले हों, तो अंदर भले ही खिलाड़ी सुरिक्षत हों, पर वे मानिसक तौर पर खेलने के लिए तैयार नहीं हो सकते.

पाकिस्तान टीम के कप्तान मिसबाह अपने देश में क्रिकेट की स्थिति से काफी चिंतित है. इसे वे सुधारना चाहते हैं और इसके लिए उन्होंने भारत समेत विश्व क्रिकेट के अन्य देशों से सहायता मांगी है. कुछ दिन पहले पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड के प्रमुख शहरयार खान ने भी ऐसा ही सहयोग मांगा था. इसमें कोई दो राय नहीं कि आज पाकिस्तान में क्रिकेट संकट में है. कोई देश वहां जाकर खेलना नहीं चाहता. लंबे समय बाद हिम्मत करके जिम्बाब्वे की टीम वहां वनडे मैच खेलने गयी थी. इस दौरे में भी स्टेडियम के बाहर विस्फोट हो गया. अगर वहां ऐसे हालात रहे, तो कौन देश अपनी टीम को खतरे में डाल कर उसे वहां भेजेगा? ऐसा नहीं है कि पाक टीम दूसरे देशों के साथ मैच नहीं खेलती. मैच हो रहे हैं, लेकिन पाकिस्तान में नहीं. दूसरे देशों में जाकर पाक खिलाड़ियों को खेलना पड़ रहा है. इसका असर पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड की अर्थव्यवस्था पर पड़ा है. वह लगभग कंगाल हो चुका है.

पाकिस्तान में क्रिकेट की यह दुर्गति लंबे समय से चल रही है, लेकिन 2009 से स्थिति ज्यादा खराब हो गयी. श्रीलंका की टीम लाहौर में दूसरा टेस्ट खेल रही थी. मैच के तीसरे दिन गद्दाफी स्टेडियम के बाहर श्रीलंका की टीम को लेकर जा रही बस पर हमला हुआ. आठ लोग मारे गये. गनीमत कि श्रीलंका का कोई खिलाड़ी मारा नहीं गया. हालांकि, टीम के कई सदस्य घायल हो गये थे. खिलाड़ी इतने भयभीत थे कि मैच वहीं पर खत्म करना पड़ा और वे स्वदेश लौट गये. ऐसे माहौल में दुनिया का कोई भी देश पाकिस्तान में कैसे खेल सकता है? इससे पहले न्यूजीलैंड की टीम जिस होटल में ठहरी थी, वहां विस्फोट हुआ था और टीम लौट गयी थी. ऑस्ट्रेलिया ने खेलने से इनकार कर दिया था. मुंबई अटैक के बाद भारतीय क्रिकेट टीम ने पाकिस्तान का दौरा रद्द कर दिया था. इसके बाद से पाकिस्तान में भारत-पाक के बीच कोई मैच नहीं खेला गया.

यह ठीक है कि खेल में राजनीति नहीं होनी चाहिए. अब पाकिस्तान के कप्तान और पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड के प्रमुख दुहाई दे रहे हैं कि एशियाई देशों को पाकिस्तान की सहायता करनी चाहिए. लेकिन हकीकत यही है कि जब तक पाकिस्तान में हालात सामान्य नहीं होते, खिलाड़ियों की सुरक्षा की गारंटी नहीं होती, कोई भी देश वहां जोखिम लेकर खेलने नहीं जा सकता. इसमें पाकिस्तानी खिलाड़ियों का कोई दोष नहीं है. पाकिस्तान ने जिस तरीके से भारत में आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया है, उसे कोई भी स्वाभिमानी देश स्वीकार नहीं कर सकता.

भारत-पाक के खिलाड़ियों में बेहतर संबंध रहे हैं और यह दिखता भी है. पाकिस्तान के कई पूर्व क्रिकेटर भारत में आइपीएल के दौरान कमेंट्री करते हैं. आइपीएल में दुनिया के कई बेहतरीन खिलाड़ी खेलते हैं, लेकिन पाकिस्तान के नहीं. ऐसा इसलिए क्योंकि दोनों देशों के बीच संबंध बेहतर नहीं हैं. इसका खमियाजा पाकिस्तान के प्रतिभावान खिलाड़ियों को भुगतना पड़ता है. वे अपने बेहतर भविष्य से वंचित रह जा रहे हैं. यदि दुनिया की बड़ी टीमें वहां खेलतीं, तो पाकिस्तान में माहौल बनता. लेकिन यह तभी संभव है, जब वहां की जनता खुद आतंकवाद के खिलाफ आवाज उठाये, और वहां खेल का माहौल बनाये.

एक समय था, जब भारत और पाकिस्तान के बीच लंबे समय तक क्रिकेट का खेल बंद था. 1978 में बिशन सिंह बेदी की अगुवाई में भारतीय टीम पाकिस्तान गयी थी. टेस्ट खेला गया था. इसके बाद संबंध सामान्य हो गया था. दोनों देशों की टीम एक-दूसरे के यहां आती-जाती थी. यहां तक कि पाकिस्तान के राष्ट्रपति भी क्रिकेट देखने भारत आये थे. अगर वे पुराने दिन लौटाने हैं, तो पाकिस्तान में खेल का माहौल बनाना होगा. वहां की सत्ता में बैठे नेताओं को सोचना होगा कि आतंकवाद ने पाकिस्तान क्रिकेट को कहां से कहां पहुंचा दिया है. अब समय आ गया है, जब पाकिस्तान यह समङो कि आतंकवाद को समर्थन देकर उसने कितना-कुछ खोया है. जब तक पाकिस्तान यह महसूस नहीं करेगा, आतंकवाद को समर्थन देना बंद नहीं करेगा, न तो पाकिस्तान का भला होगा और न ही पाकिस्तान क्रिकेट का.

तारीफ करनी होगी मिसबाह की, जिसने कम से कम यह स्वीकार किया है कि बगैर भारत, बांग्लादेश या श्रीलंका के सहयोग के, पाकिस्तान में क्रिकेट को फिर से पटरी पर नहीं लाया जा सकता. हर व्यक्ति का जीवन कीमती होता है. कोई भी देश अपने खिलाड़ी की जान की बाजी नहीं लगा सकता. खिलाड़ी भी तभी बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं, जब उन्हें यह यकीन हो कि वे सुरिक्षत हैं. अगर स्टेडियम के बाहर आत्मघाती हमले हों, तो अंदर भले ही खिलाड़ी सुरिक्षत हों, पर वे मानिसक तौर पर खेलने के लिए तैयार नहीं हो सकते. यह क्रिकेट के हक में है कि पाकिस्तान में बेहतर माहौल बने और पाकिस्तान अपनी जमीन से आतंकवाद को समाप्त करे. ऐसा होने पर ही पुराने दिन लौट सकते हैं.

अनुज कुमार सिन्हा

वरिष्ठ संपादक

प्रभात खबर

anuj.sinha@prabhatkhabar.in

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