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अर्थव्यवस्था के संभलने की आहट

राजीव रंजन झा संपादक, शेयर मंथन चंद्रजीत बनर्जी का कहना है कि अर्थव्यवस्था सुधार के संकेत दे रही है और अगले वित्त वर्ष में यह इससे भी तेज हो सकती है. निवेश मांग में सुधार हुआ है, जिससे लगता है कि सरकार के नीतिगत और सुधार-संबंधी प्रयासों का जमीनी असर होने लगा है. हाल में […]

राजीव रंजन झा
संपादक, शेयर मंथन
चंद्रजीत बनर्जी का कहना है कि अर्थव्यवस्था सुधार के संकेत दे रही है और अगले वित्त वर्ष में यह इससे भी तेज हो सकती है. निवेश मांग में सुधार हुआ है, जिससे लगता है कि सरकार के नीतिगत और सुधार-संबंधी प्रयासों का जमीनी असर होने लगा है.
हाल में 2014-15 की सालाना विकास दर और खास कर इसकी चौथी तिमाही के आंकड़ों से जहां अर्थव्यवस्था में सुधार के शुरुआती संकेत दिखे हैं, वहीं मंगलवार दो जून को आरबीआइ ने अपनी नीतिगत समीक्षा में ब्याज दरों में कटौती करके सरकार, उद्योग जगत और विश्लेषकों की चाहत पूरी कर दी है.
आरबीआइ ने रेपो दर को 0.25 प्रतिशत अंक घटा कर 7.25 प्रतिशत कर दिया है. आरबीआइ की ओर से ब्याज दर में यह लगातार तीसरी कटौती है. यह इस बात का संकेत है कि उपभोक्ता महंगाई दर को लेकर आरबीआइ अभी पहले जितना चिंतित नहीं है, और औद्योगिक धीमेपन से उबरने के लिए वह ब्याज दर में एक और कटौती उसे जरूरी लगी है.
हालांकि, उद्योग जगत अभी इतने से खुश नहीं हैं. उद्योग संगठन सीआइआइ के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी ने अपने बयान में कहा है कि रेपो दर में कम-से-कम 0.50 प्रतिशत की कटौती की उम्मीद थी. लेकिन, आम तौर पर लोग 0.25 प्रतिशत कमी होने की ही उम्मीद कर रहे थे, जो पूरी हो गयी है.
रघुराम राजन ने साफ कहा है कि भविष्य में उनका कोई कदम उस समय उपलब्ध आंकड़ों पर ही निर्भर रहेगा. साथ ही उन्होंने जनवरी 2016 के लिए महंगाई दर के अनुमान को 5.8 प्रतिशत से बढ़ा कर 6 प्रतिशत कर दिया है. राजन को अभी यह चिंता है कि अगर मॉनसून कमजोर रहा, तो महंगाई बढ़ सकती है.
सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के ताजा आंकड़ों से लगता है कि आखिरकार भारतीय अर्थव्यवस्था में फिर से रवानगी लौटने के आसार हैं. कारोबारी साल 2014-15 में भारत की विकास दर यानी जीडीपी की रफ्तार 7.3 प्रतिशत रही है.
हालांकि, सीएसओ के यह पहले जारी किये 7.4 प्रतिशत के अग्रिम अनुमान की तुलना में नीचे है. यह मोदी सरकार के कार्यकाल का पहला वित्त वर्ष कहा जा सकता है, क्योंकि इसके 12 में से 10 महीनों में वे ही प्रधानमंत्री रहे हैं. बीते वर्ष की विकास दर के आंकड़ों और चालू वर्ष की उम्मीदों के आधार पर कह सकते हैं कि अर्थव्यवस्था के लिए अच्छे दिनों की आहट सुनायी देने लगी है.
उत्पादन (मैन्युफैरिंग) क्षेत्र की वृद्धि दर 2013-14 में घट कर केवल 5.3 प्रतिशत रह गयी थी. यह सुधर कर 7.1 प्रतिशत हो गयी. इस सुधार पर खुश होते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सेवा क्षेत्र की वृद्धि दर दो अंकों में लौटने को भी उत्साहजनक बताया. मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम को उम्मीद है कि अर्थव्यवस्था में साल 2013-14 की तुलना में 2014-15 के दौरान जितना सुधार आया है, उससे कहीं ज्यादा सुधार चालू वित्त वर्ष 2015-16 में देखने को मिलेगा.
साल 2014-15 की सबसे अहम बात यह है कि चौथी तिमाही में विकास दर बढ़ कर 7.5 प्रतिशत हो गयी, जो इस दौरान चीन की 7 प्रतिशत विकास दर से भी आगे है. हालांकि पूरे कारोबारी साल 2014-15 में चीन की विकास दर 7.5 प्रतिशत रही है, यानी इस साल भारत विकास दर के मामले में चीन से आगे नहीं निकल पाया. आइएमएफ का अनुमान है कि 2015-16 में भारत की विकास दर चीन से ज्यादा रहेगी.
हालांकि इससे पहले अक्तूबर-दिसंबर 2014 की तीसरी तिमाही में भी भारत की विकास दर चीन से आगे 7.5 प्रतिशत रही थी, मगर 30 मई को पेश संशोधित आंकड़ों में इसे घटा कर 6.6 प्रतिशत कर दिया गया. संशोधन पहली और दूसरी तिमाही के आंकड़ों में किया गया है, लेकिन उनके आंकड़ों को पहले से बढ़ाया गया है.
हालांकि, अभी सारे संकेत अच्छे हो गये हों, ऐसा नहीं है. पूंजी निर्माण (कैपिटल फॉर्मेशन) की दर 2013-14 में जीडीपी का 29.7 प्रतिशत थी, जो बीते साल में और घट कर 28.7 प्रतिशत रह गयी.
इसमें लगातार दूसरे साल कमी आयी है. ऋण वृद्धि (क्रेडिट ग्रोथ) और रोजगार जैसे आर्थिक संकेतक भी अभी धीमे हैं. अर्थव्यवस्था में बड़ी हिस्सेदारी रखनेवाले क्षेत्र, जैसे कृषि, निर्माण और बैंकिंग के आंकड़े सुधार नहीं दिखा रहे. जो हुआ है, वह उत्पादन, यूटिलिटी, व्यापार और परिवहन वगैरह में हुआ है और इसका एक अहम पहलू यह है कि ये क्षेत्र बहुत बुरी दशा से अब धीरे-धीरे सुधार की ओर लौटने लगे हैं.
भले ही बीते कारोबारी साल में निर्माण और सेवा क्षेत्र में अच्छी प्रगति हुई, लेकिन कृषि क्षेत्र का प्रदर्शन काफी पिछड़ गया है.
गौरतलब है कि देश में प्रति व्यक्ति आय 9.2 प्रतिशत बढ़ गयी है, लेकिन कृषि क्षेत्र के पिछड़ने का अर्थ यह है कि प्रति व्यक्ति आय में इस सुधार का फायदा ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर निर्भर दो-तिहाई आबादी को नहीं मिला है.
वित्त मंत्रलय ने कहा है कि सरकारी नीतियों से नियंत्रित होनेवाले उत्पादन और सेवा क्षेत्रों में काफी सुधार आया है, जबकि नीतियों के नियंत्रण से बाहर रहनेवाले क्षेत्र, जैसे मौसम से प्रभावित होनेवाली कृषि और विदेशी मांग पर निर्भर निर्यात का प्रदर्शन उतना अच्छा नहीं रहा है.
लेकिन कृषि पर मौसम का प्रभाव होने की बात कह कर सरकार ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गति देने की जिम्मेवारी से छुटकारा नहीं पा सकती. मौसम पर भले ही सरकार का नियंत्रण नहीं हो, लेकिन प्रतिकूल मौसम होने पर किसानों को राहत देने और कृषि क्षेत्र की संरचनात्मक बाधाओं को दूर करने में सरकार की एक बड़ी भूमिका होती है. हालांकि, मोदी सरकार ने प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना शुरू की है.
इसके तहत अगले पांच वर्षो में सिंचित भूमि में 14 प्रतिशत वृद्धि का लक्ष्य है. हालांकि इसके लिए जमीन चाहिए और भूमि अधिग्रहण का मसला राजनीतिक दांव-पेंचों में उलझ चुका है. साथ ही किसान को भंडारण की सही सुविधा मिले तो किसानों को फसल की उचित कीमत मिल सकेगी.
नयी जीडीपी सीरीज निजी और सरकारी कंपनियों के मुनाफे और वेतन-वृद्धि पर आधारित है. पुरानी सीरीज से हट कर नयी सीरीज पर आने के बाद विकास दर के आंकड़े अचानक पहले से ज्यादा दिखने लगे हैं.
स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक को 2015-16 में 6.3 प्रतिशत विकास दर रहने के अपने पुराने अनुमान को नयी सीरीज के मद्देनजर ही बदल कर 7.7 प्रतिशत करना पड़ा. इन आंकड़ों पर उद्योग जगत ने संतोष जताया है. चंद्रजीत बनर्जी का कहना है कि अर्थव्यवस्था सुधार के संकेत दे रही है और अगले वित्त वर्ष में यह इससे भी तेज हो सकती है.
बनर्जी के मुताबिक निवेश मांग में सुधार हुआ है, जिससे लगता है कि सरकार के नीतिगत और सुधार-संबंधी प्रयासों का जमीनी असर होने लगा है. आगे चल कर सरकारी निवेश में होनेवाली वृद्धि निजी निवेश को भी खींचेगी, जिससे अर्थव्यवस्था में मांग का नया चक्र शुरू होगा. बनर्जी को उम्मीद है कि आनेवाले समय में खपत वाली मांग भी जोर पकड़ेगी.

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