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किसान के मन की बात सुनें मोदी जी
दीपक कुमार मिश्र प्रभात खबर, भागलपुर प्रधानमंत्री जी जल्द ही अपने ‘मन की बात’ देश के किसानों से करेंगे. देर से ही सही, इस कृषि प्रधान देश की रीढ़, किसानों को अपने मन की बात वह सुनायेंगे. लेकिन इसके पहले उन्होंने किसानों से अपने मन की बात कहने को कहा है. मेरे गांव के एक […]
दीपक कुमार मिश्र
प्रभात खबर, भागलपुर
प्रधानमंत्री जी जल्द ही अपने ‘मन की बात’ देश के किसानों से करेंगे. देर से ही सही, इस कृषि प्रधान देश की रीढ़, किसानों को अपने मन की बात वह सुनायेंगे. लेकिन इसके पहले उन्होंने किसानों से अपने मन की बात कहने को कहा है.
मेरे गांव के एक मझोले, पर प्रगतिशील किसान हैं राघव चाचा. सरकारी नौकरी लगी थी, लेकिन खेती से प्रेम ने नौकरी नहीं करने दिया. उत्तम खेती की लोकोक्ति को याद कर एमए के बाद खेती करने लगे. राघव चाचा ने अपने मन की बात सुनाने के लिए लिख डाला है प्रधानमंत्री को पत्र, जिसे आप भी पढ़िए :
आदरणीय प्रधानमंत्री जी,
आपको किसानों का ख्याल आया, इसके लिए धन्यवाद. खेती- किसानी करना मैंने मजबूरी में नहीं, अपनी मर्जी से चुना था. इसके लिए सरकारी नौकरी खुशी- खुशी छोड़ी थी. लेकिन अब आधी जिंदगी पार होने के बाद अपने फैसले पर दुख हो रहा है. और मैंने यह फैसला लिया कि अपने बच्चों को किसान नहीं बनने दूंगा. जबकि इसी खेती के जरिए उनको इस लायक बनाया कि सभी नौकरी और व्यवसाय में लग सकें.
खेती अब लाभ का नहीं, घाटे का सौदा हो गया है. कृषि विकास के लिए पहले इतनी योजनाएं नहीं थी और न ही किसानों का जीवन स्तर सुधारने और खेती को बढ़ावा देने के लिए पानी की तरह पैसा बहाया जाता था. आज कृषि विकास के नाम पर बहुत पैसा खर्च हो रहा है, पर उसका लाभ किसानों को नहीं मिल रहा. कारण है, भ्रष्टाचार. ट्रैक्टर हो या कोई अन्य कृषि उपकरण या फिर किसान क्रेडिट कार्ड, बैंकवालों को मोटी रकम दिये बिना कर्ज नहीं मिलता है. आप पता कर लीजिए 40 से 50 हजार रुपये घूस लिये बिना बैंकवाले किसानों का ट्रैक्टर ऋण स्वीकृत नहीं करते. दो- चार अपवाद हो सकते हैं. यही हाल अन्य कृषि ऋणों का है.
मुङो यह कहने में भी कोई गुरेज नहीं है कि कुछ किसान भी ऋण को मुफ्त की मलाई मानते हैं. लेकिन इनकी संख्या भी उतनी ही है जितनी बिना रिश्वत लिये ऋण स्वीकृत करने बाले बैंक अधिकारियों की. सरकारी अनुदान भी बिना पैसा दिये नहीं मिलता.
इसके अलावा एक बड़ी समस्या बिहार, झारखंड में सिंचाई की है. मेरे गांव में नहर है. दो दशक पहले सिंचाई कोई समस्या नहीं थी, लेकिन आज सबसे बड़ी समस्या पटवन की है. नहर में पानी आता नहीं. डीजल महंगा है. बिजली रहती नहीं. नहर में पानी न आने की वजह यह है कि बांध, डांड़ सभी खत्म हो गये या अतिक्रमित. खाद भी सही कीमत और सही वक्त पर नहीं मिलती. आप बस कृषि योजनाओं में भ्रष्टाचार समाप्त करा दीजिए. खाद-पानी का इंतजाम करा दीजिए. बस फिर से खेती नफे का सौदा हो जायेगी. मुङो उम्मीद है आप मेरे मन की बात को अपने मन की बात में शामिल करेंगे.
आपका राघव
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