कल सुबह हम लोग चाय पर चर्चा का आनंद ले रहे थे. विषय था अपनी प्यारी रेल. देश की जीवन रेखा मानी जाने वाली भारतीय रेल का नया बजट पेश हुए हफ्ता भर बीत चुका है. रेल बजट पेश होने से पहले हम लोग उससे बहुत आस लगाये हुए थे. सबकी अपनी-अपनी आकांक्षाएं थीं. सभी अपनी रेल यात्रा के दर्द की दवा के इंतजार में थे. अपने अग्रवाल जी लखनऊ, देहरादून, त्रिवेंद्रम और न जाने कौन-कौन से शहरों के रांची से सीधी ट्रेन से जुड़ने की उम्मीद लगाये थे. लेकिन अब वह गहरी निराशा में हैं. रांची तो जाने दीजिए, देश के किसी शहर के लिए कोई नयी ट्रेन नहीं शुरू हुई.
न ही किसी ट्रेन का फेरा बढ़ा है. अग्रवाल जी चाह रहे थे कि रेल मंत्री जी कम से कम मुंबई के लिए जो ट्रेन है उसी का फेरा बढ़ा देते. उनका बेटा वहां रहता है. रेल बजट से चिढ़े बैठे अग्रवाल जी बोल उठे, ‘‘मिल गया न ठेंगा, ‘प्रभु’ की कृपा बरसी है. एकदम निर्मल बाबा की तरह. न किराया कम किया और न ही कोई नयी गाड़ी दी.’’ मैंने कहा, ‘यह अपने आप में अनोखा बजट है. अगले पांच साल में पिछले 67 साल को सुधारने की कोशिश की है अपने प्रभु जी ने.’’ बात काटते हुए वह बोले, ‘‘ये भी दिखाने वाले दांत ही साबित होंगे. नयी गाड़ी देने की हिम्मत नहीं थी, तो पुरानी गाड़ी का फेरा बढ़ा देते.
अब उनके सोचने से जनसंख्या कम तो नहीं होने वाली है. यात्रियों की संख्या तो हर साल बढ़ती ही जा रही है. और उसके लिए कोई सोच ही नहीं? सरकार बस जनता को कड़वी दवाई पर दवाई पिलाते जा रही है. अरे भाई! कभी-कभी कुछ मीठा भी हो जाना चाहिए. ये जनता है डायबिटीज की मरीज नहीं!’’ मैंने उन्हें समझाने की कोशिश की, ‘‘अच्छा वैद्य वही होता है जो मरीज की सेहत के लिए कड़वी दवा दे, न कि उसे खुश करने के लिए शहद लेने को कहे. प्रभु जी बीमार रेलवे का इलाज कर रहे हैं. हम सबको सरकार के साथ थोड़ा सहयोग करना चाहिए.’’ अग्रवाल जी भड़क गये, ‘‘अगर प्रभु जी को इलाज करना ही है, तो मर्द की तरह बजट में मालाभाड़ा बढ़ाने का एलान करते. चोरी-चोरी क्यों बढ़ा लिया? जनता को समझाते कि यह उसके हित के लिए किया जा रहा है. अभी देखिए इसमें और क्या-क्या छिपा होगा. जब तक पूरा समझ में आयेगा, अगल रेल बजट आने का समय हो जायेगा. मोदीजी और उनके आदमी सिर्फ ढोल पीटने में यकीन रखते हैं.
अच्छे-अच्छे दिन कह कर ठग लिया. पिछले नौ-दस महीने में आम आदमी के लिए कुछ हुआ? महंगाई, भ्रष्टाचार सब वैसे ही चल रहा है.’’ अग्रवाल जी की जबानी रेल रोकते हुए मैंने कहा, ‘‘हम कहां रेल की बात कर रहे हैं और आप हैं कि चावल, दाल, महंगाई सब इसी में समेटे हुए हैं. देखिए अपने राहुल जी को! अपनी मां से नाराज हो कर छुट्टी मनाने गये हैं. उनको किसी से कुछ लेना-देना है? वह अपने में मस्त हैं और यहां रेल का कायाकल्प हो रहा है.’’
राकेश कुमार
प्रभात खबर, रांची
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