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उच्च शिक्षा में ठोस सुधार अपेक्षित

विश्वविद्यालय एक पुस्तकालय के इर्द-गिर्द बने कुछ शैक्षणिक भवनों का समूह भर नहीं होता है. वह एक ऐसा केंद्र है, जहां विचार और चेतना की हद को गहन शोध, प्रयोग और विवेचना के द्वारा लगातार विस्तार देने का प्रयास किया जाता है. विश्वविद्यालयों की उपलब्धियां देश और काल की सीमा से परे जाकर संपूर्ण मनुष्यता […]

विश्वविद्यालय एक पुस्तकालय के इर्द-गिर्द बने कुछ शैक्षणिक भवनों का समूह भर नहीं होता है. वह एक ऐसा केंद्र है, जहां विचार और चेतना की हद को गहन शोध, प्रयोग और विवेचना के द्वारा लगातार विस्तार देने का प्रयास किया जाता है. विश्वविद्यालयों की उपलब्धियां देश और काल की सीमा से परे जाकर संपूर्ण मनुष्यता की प्रगति का मार्गदर्शन करती हैं. ऐसे में विश्वविद्यालयों की गुणवत्ता किसी देश की शिक्षा-व्यवस्था के साथ राष्ट्रीय दृष्टि का भी परिचायक है.

गुणवत्ता के आधार पर उच्च शिक्षण संस्थाओं को क्रम देनेवाली ब्रिटिश पत्रिका टाइम्स हायर एजुकेशन की वार्षिक सूची में ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन एवं दक्षिण अफ्रीका) सहित उभरती अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों के 100 बेहतरीन विश्वविद्यालयों में 11 भारतीय संस्थाएं शामिल हैं, जिनमें तीन शीर्ष 40 में हैं. हालांकि इस श्रेणी में 27 विश्वविद्यालयों के साथ चीन और 19 विश्वविद्यालयों के साथ ताइवान ही भारत के ऊपर हैं, लेकिन प्रमुख 20 संस्थानों में कोई भारतीय संस्थान शामिल नहीं है.

पिछले वर्ष की तुलना में इस श्रेणी में स्थिति कुछ ठीक है, परंतु कुछ महीने पहले जारी वैश्विक सूची में कोई भी भारतीय संस्थान पहले 200 विश्वविद्यालयों में नहीं था और शीर्ष 400 में मात्र चार विश्वविद्यालय ही जगह बना पाये थे. शिक्षा और शैक्षणिक प्रशासन से जुड़े कई लोगों का मानना है कि क्रम-निर्धारण की इस प्रक्रिया में खामियां हैं और महत्वपूर्ण होने के बावजूद गुणवत्ता आंकने का एकमात्र आधार नहीं हो सकता है.

यह तर्क अपनी जगह सही है, लेकिन टाइम्स हायर एजुकेशन की दोनों सूचियां देश की उच्च शिक्षा की स्थिति पर गंभीरता से विचार करने के लिए उचित उत्प्रेरक हैं. चिंता की बात होनी चाहिए कि दुनिया में किसी भी देश से अधिक इंजीनियरिंग संस्थानों वाले और इंजीनियर पैदा करनेवाले देश का एक भी संस्थान वैश्विक श्रेणी में नहीं है. अनेक ऐसे आंकड़े आते रहते हैं, जो उच्च शिक्षा पाये हमारे युवाओं की कार्यदक्षता पर सवाल खड़े करते हैं. देश की शिक्षा-व्यवस्था में और शिक्षा के प्रति दृष्टि में आमूल-चूल परिवर्तन की आवश्यकता है. ऐसे में उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकारें और शिक्षा शास्त्री अपेक्षित शैक्षणिक सुधारों की दिशा में ठोस कदम उठायेंगे.

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