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चीन को दो-टूक जवाब देने का वक्त

डॉ गौरीशंकर राजहंस पूर्व सांसद एवं पूर्व राजदूत एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चीन की दादागिरी जिस तरह से बढ़ रही है, उस पर यदि शीघ्र अंकुश नहीं लगाया गया, तो भारत और बांग्लादेश जैसे देश बुरी तरह से प्रभावित हो जायेंगे. इस मामले में और अधिक देर करने की जरा भी जरूरत नहीं है. ब्रह्म पुत्र […]

डॉ गौरीशंकर राजहंस

पूर्व सांसद एवं पूर्व राजदूत

एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चीन की दादागिरी जिस तरह से बढ़ रही है, उस पर यदि शीघ्र अंकुश नहीं लगाया गया, तो भारत और बांग्लादेश जैसे देश बुरी तरह से प्रभावित हो जायेंगे. इस मामले में और अधिक देर करने की जरा भी जरूरत नहीं है.

ब्रह्म पुत्र नदी तिब्बत से निकलती है. चीन में उसका नाम ‘राकलोंग सांगपो’ है. 2006 में अमेरिकी गुप्तचर सेटेलाइटों ने यह रहस्योद्घाटन किया था कि चीन ब्रह्म पुत्र नदी पर एक बहुत बड़ा डैम बना रहा है. जब भारत सरकार को इस तथ्य का पता चला, तो उसने चीन के इस कार्य का विरोध किया. लेकिन, चीन ने भारत को उस समय आश्वस्त किया था कि भारत को घबराने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि चीन ऐसा कोई डैम नहीं बना रहा है, और यदि वह भविष्य में कोई डैम बनायेगा भी, तो उससे ब्रह्म पुत्र के पानी का बहाव प्रभावित नहीं होगा.

चीन हमेशा से कहता कुछ और है और करता कुछ और. अब हाल ही में अमेरिकी गुप्तचर सेटेलाइटों ने यह पता लगाया है कि ब्रह्म पुत्र नदी पर चीन ने 510 मेगावाट का एक बिजलीघर ब्रह्म पुत्र के ‘जांगमू’ क्षेत्र में बना लिया है. यह तिब्बत में सबसे बड़ी पनबिजली परियोजना है. इस क्षेत्र का नाम ‘यारलुंग जांगबो’ भी है. डैम बन चुका है. इस परियोजना से 510 मेगावाट बिजली का उत्पादन होगा, जिससे न केवल तिब्बत की बिजली की जरूरत पूरी होगी, बल्कि चीन की मुख्य भूमि में भी इससे बिजली की सप्लाई होगी. पश्चिमी देशों के सारे समाचारपत्रों में यह खबर छपी है कि इस डैम से भारत बुरी तरह प्रभावित होगा. तिब्बत से भारत की ओर ब्रह्म पुत्र में आनेवाले पानी का बहाव बहुत कुछ अवरुद्ध हो जायेगा और असम तथा उत्तर-पूर्वी भारत के क्षेत्र, साथ ही बांग्लादेश का एक बहुत बड़ा भूभाग भी, अकालग्रस्त हो जायेगा.

विशेषज्ञों ने यह डर भी जाहिर किया है कि जैसे चीन ने दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ मेकांग नदी के मामले में किया था, वही वह भारत के साथ भी करेगा. चीन ने तिब्बत के मेकांग नदी पर बड़े-बड़े डैम बना कर नदी को एक तरह से जलविहीन कर दिया है. गर्मी के दिनों में लाओस, कंबोडिया और वियतनाम में सिंचाई और पीने के पानी का घोर अभाव हो जाता है. लेकिन, जब घनघोर वर्षा होती है, तब चीन अपने डैमों को खोल देता है, जिससे इन देशों में भयानक बाढ़ आ जाती है. जब उसने मेकांग नदी पर बड़े-बड़े डैम बनाये थे, तब सारा काम इतने गुप्त तरीके से हुआ था कि चीन के बाहर किसी को इसकी खबर नहीं हो पायी.

ब्रह्म पुत्र पर चीन ने जो विशालकाय डैम बनाया है, उससे भारत का चिंतित होना स्वाभाविक है. कहते हैं कि इस कठिन कार्य में चीन के हजारों मजदूर मारे गये हैं, परंतु जैसा कि माओ-त्से-तुंग का कहना था कि ‘चीन की आर्थिक उन्नति के लिए यदि 10-20 हजार लोगों का बलिदान भी करना पड़े, तो उसमें कोई चिंता की बात नहीं है’. गौरतलब है कि चीन के प्रवक्ता ने कहा है कि वह ब्रह्म पुत्र पर ऐसे 23 डैम और बनायेगा. यह सोचनेवाली बात है कि जब इतने डैम इस नदी पर बन जायेंगे, तो भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य कितनी बुरी तरह से प्रभावित होंगे. गर्मी में उनमें पानी का घोर अकाल रहेगा और बारिश में जब चीन अपने सारे डैमों को खोल देगा, तो उत्तर-पूर्वी राज्य बाढ़ग्रस्त हो जायेंगे.

चीनी प्रवक्ता ने कहा है कि इस डैम के बनने से तिब्बत और चीन की बिजली की जरूरतें बहुत हद तक पूरी हो जायेंगी और भारत को इससे कोई नुकसान नहीं होगा. प्रवक्ता ने कहा कि 2013 में जब भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपने बीजिंग दौरे के दौरान ब्रह्म पुत्र नदी पर डैम बनाये जाने के बारे में चिंता प्रकट की थी, तब चीन ने उन्हें आश्वस्त किया था कि भारत को चिंतित होने की जरूरत नहीं है. चीनी प्रवक्ता ने तो यह भी कहा कि इस डैम के बनने और भविष्य में बननेवाले अन्य डैमों से भारत का पर्यावरण किसी तरह से प्रभावित नहीं होगा.

चीन के कहे मुताबिक, ब्रह्म पुत्र को लेकर भारत को चिंता करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि ब्रह्म पुत्र की अन्य सहायक नदियों में पानी तो साल भर रहता है. इससे ब्रह्म पुत्र में पानी का अभाव कभी नहीं रहेगा. यह आंखों में धूल झोंकने जैसी बात है, क्योंकि किसी भी सहायक नदी में पानी केवल वर्षा के मौसम में ही आता है. अत: हमें यह मान कर चलना चाहिए कि भारत के साथ चीन धोखेबाजी कर रहा है.

आज के युग में सेटेलाइट से सभी तथ्यों का पता चल जाता है. हमें चीन से डरने की आवश्यकता नहीं है. हमें उसे दो-टूक कहना होगा कि यह एक परम शत्रुतापूर्ण कार्य है और चीन के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने क्षेत्र में ब्रह्म पुत्र नदी पर डैम बनाना रोके. भारत को विश्व समुदाय से भी अपील करनी चाहिए कि वह चीन के इस तरह के धूर्ततापूर्ण कार्य का विरोध करे. एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चीन की दादागिरी जिस तरह से बढ़ रही है, उस पर यदि शीघ्र अंकुश नहीं लगाया गया, तो भारत और बांग्लादेश जैसे देश बुरी तरह से प्रभावित हो जायेंगे. इस मामले में और अधिक देर करने की जरा भी जरूरत नहीं है.

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