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समाज-विकास का मॉडल: दुनिया के विशेषज्ञों ने माना, तेज आर्थिक विकास के लिए कोई रास्ता नहीं!

– हरिवंश – दुनिया की यह बड़ी घटना है. पर भारत में अचर्चित. दुनिया के वित्त मंत्री, सेंट्रल बैंकों के प्रमुख और संसार के जाने-माने अर्थशास्त्री वाशिंगटन में मिले थे. अक्तूबर, 2014 के शुरू में. अवसर था, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) की बैठक. सवाल था, दुनिया में तेज आर्थिक विकास कैसे हो? साफ -साफ शब्दों […]

– हरिवंश –

दुनिया की यह बड़ी घटना है. पर भारत में अचर्चित. दुनिया के वित्त मंत्री, सेंट्रल बैंकों के प्रमुख और संसार के जाने-माने अर्थशास्त्री वाशिंगटन में मिले थे. अक्तूबर, 2014 के शुरू में. अवसर था, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) की बैठक. सवाल था, दुनिया में तेज आर्थिक विकास कैसे हो? साफ -साफ शब्दों में, इस कॉन्फ्रेंस में इन नीति निर्धारकों ने कहा कि तेज आर्थिक विकास का अब कोई दूसरा मॉडल नहीं दिख रहा है. मौजूदा मॉडल विफल है.
यानी यह ग्लोबल इकॉनमी या बाजार व्यवस्था का मॉडल या उदारीकरण की अर्थव्यवस्था अब बंद गली के दरवाजे पर है. वे कह रहे हैं कि पिछले कुछेक वर्षों में अर्थनीति या नयी नीति बना कर तेज आर्थिक विकास के अनेक कदम आजमाये गये हैं. पर दुनिया मंदी से निकल नहीं पा रही है. देश कर्ज के बोझ से दबे जा रहे हैं.
भारत के रिजर्व बैंक के प्रमुख रघुराम राजन ने तो यह भी कहा कि सेंट्रल बैंकों को अपने राजनेताओं से कहना चाहिए कि हमें जितना करना चाहिए, हमने किया. अब आपकी बारी है. पश्चिम के आर्थिक विशेषज्ञ मान रहे हैं कि पश्चिम या यूरोप की कमजोर अर्थव्यवस्था, उनके देशों की राजनीतिक स्थिरता के लिए खतरा है. विशेषज्ञ यह भी कह रहे हैं कि तेज आर्थिक विकास का रास्ता अब अर्थशास्त्र की गलियों से होकर नहीं गुजरता. अब राजनीति, जो खतरा उठाने और मीडिया के (पापुलिस्ट स्टैंड के) खिलाफ खड़ा होने का साहस रखे, वही राजनीति इस अर्थसंकट से दुनिया को निकाल सकती है. यानी आम भाषा में कहें, तो अधिक आयवालों पर अधिक कर. बढ़ते उपभोग पर सख्त पाबंदी. लक्जरी चीजों का उत्पादन बंद करना. आय विषमता घटाना. काला धन खत्म करना. पेंशन व रोजगार कानूनों पर नये सिरे से विचार करना. बढ़ती जनसंख्या पर पाबंदी जैसे कठोर नीतिगत फैसले ही आर्थिक हालात बदल सकते हैं.
एक तरह से ग्लोबल दुनिया के इस बाजारवादी मॉडल की विफलता की यह पहली बड़ी सार्वजनिक स्वीकारोक्ति है. यूरोप में समाज के अंदर बिखराव है. रोजगार के अभाव में युवा अतिवादी हो रहे हैं. राजनीति या राजनेता असहाय महसूस कर रहे हैं. भारत भी इसी आर्थिक विकास मॉडल पर चल रहा है. यहां भी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संकट, आनेवाले दिनों में और गहरे होंगे. क्योंकि कांग्रेस ने 1991 में आर्थिक विकास के जिस रास्ते पर भारत को डाला, उस पर चल कर दुनिया बंद गली के दरवाजे पर है. भाजपा और तेजी से उस रास्ते पर आगे जाना चाहती है.
हाल में प्रोफेसर रोमिला थापर ने मेनस्ट्रीम के संपादक और यशस्वी पत्रकार निखिल चक्रवर्ती की स्मृति में एक व्याख्यान दिया. उसमें 1991 में, भारत के द्वारा आर्थिक विकास के इस मॉडल पर चलने की उन्होंने चर्चा की और कहा कि उस गलत रास्ते पर जाने का परिणाम, आज के भारत के राजनीतिक व सामाजिक हालात हैं. उल्लेखनीय है कि निखिल चक्रवर्ती ने भी इस अर्थनीति का विरोध किया था. तब संसद में नरसिंह राव की अल्पमत सरकार थी. परोक्ष ढंग से वामपंथी भी इसके मददगार रहे. इस अर्थनीति का धारदार विरोध अकेले चंद्रशेखर ने किया था.
पर भारत में नयी राजनीति करनेवालों के लिए यह बड़ा मौका है, विवश होकर गांधीवाद के रास्ते पर लौटने का. भारत के जो राजनेता, वैकल्पिक राजनीति चाहते हैं, उनके लिए स्वर्णिम अवसर है. पर यह रास्ता एक लंबे संघर्ष की तलाश में है. समाज के स्तर पर, राजनीति के स्तर पर और विचार के स्तर पर. गांधी को गांधी के देश में बड़ा करने का सबसे बड़ा मौका. पश्चिम, आर्थिक विकास के जिस पूंजीवादी मॉडल में दुनिया की मुक्ति देखता था, वह विफल हो चुका है, पश्चिम के ही विशेषज्ञों की नजर में. साम्यवाद दशकों पहले अतीत का पाठ बन चुका है. दोनों के रास्ते, दुनिया अपनी चुनौतियों का हल नहीं ढूंढ़ सकी है.
नवंबर 17, 2014 के टेलीग्राफ में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन का एक बयान छपा. द डेली टेलीग्राफ और न्यूयार्क टाइम्स में उनके छपे लेख पर आधारित. उनके अनुसार ग्लोबल इकॉनमी (दुनिया की अर्थव्यवस्था) के खतरे की सूचना देनेवाली लालबत्ती जल रही है. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने जी-20 की बैठक में सख्त लहजे में कहा कि पूरी दुनिया पुन: ग्लोबल फाइनेंशियल क्रैश (अंतरराष्ट्रीय वित्तीय तबाही) का सामना कर रही है. उन्होंने दुनिया की अन्य अर्थव्यवस्थाओं से यह अपील की कि वे भारत और चीन के साथ अधिकाधिक आर्थिक समझौते करें, ताकि दुनिया अंतरराष्ट्रीय मंदी से बच सके. अपने लेख में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने छह वर्ष पहले हुई दुनिया की मंदी की याद दिलायी है. इस चेतावनी के समय ही 17 नवंबर को जापान (दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था) में मंदी की सूचना सामने आयी.
बैंक ऑफ इंग्लैंड के गवर्नर मार्क केसी ने कहा कि हेज फंड, प्राइवेट इक्विटी की कंपनियों और दुनिया के अन्य देशों में अनियंत्रित बैंकिंग संस्थाओं ने दुनिया की वित्तीय स्थिरता को चोट पहुंचायी है. कैमरन ने लिखा है कि यूरोप के मुल्क तीसरी मंदी के कगार पर हैं. इन देशों में बड़े पैमाने पर बेराजगारी है. विकास दर में गिरावट है. कीमतें घट रही हैं. उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएं, जो दुनिया के विकास को आगे ले जा रही थीं, अब खुद फिसल रही हैं. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने इबोला बीमारी, मध्यपूर्व की लड़ाई और यूक्रेन में रूस के गलत हस्तक्षेप को भी इसके लिए दोषी माना है. आइएमएफ ने विकसित और विकासोन्मुख देशों के आर्थिक विकास के अनुमानों को सही नहीं माना और उसे डाउनग्रेड किया है.
यूरोप की इस बार की यात्रा संसदीय कामों के तहत हुई. पर दो सबसे बड़े सवाल, जिन पर यूरोप या पश्चिम चिंतित है, उनकी आहट मिली. पहला, तेज आर्थिक विकास के लिए रास्ता न मिलना. दूसरा, समाज में मशीनों के बढ़ते दबदबे से असहाय होते इनसान की पीड़ा-बेचैनी. क्या मनुष्य का जीवन मशीनों के वर्चस्व के तहत गुजरेगा? कंप्यूटर तकनीक की दुनिया के चर्चित नामों में से हैं, विनोद खोसला. जावा प्रोग्रामिंग की भाषा और नेटवर्क फाइलिंग सिस्टम को तैयार करने में उनकी बड़ी भूमिका रही है.
उनके हाल के एक लेख के अनुसार, भविष्य में जिस एक चीज का इनसान पर सबसे गहरा असर होगा, वह है ऐसी चीजों का निर्माण, जिनमें मनुष्य के विचार करने की क्षमता से अधिक गहराई से विचार करने, निर्णय लेने की क्षमता होगी. यानी इनसान से अधिक योग्य, सक्षम और प्रभावी होंगी, मशीनें. इन विचारशील मशीनों को कृत्रिम बुद्धि भी कहते हैं. इस पर तेजी से काम हो रहा है.
याद रखिए, पांच वर्ष पहले तक गाड़ी चलाना, कंप्यूटर के लिए एक कठिन चीज समझी जाती थी. पर आज यह सच्चाई है. विचारवान मशीन बनाने के क्षेत्र में दुनिया की अनेक कंपनियां काम कर रही हैं. कहते हैं, इनके कारण खेतिहर मजदूरों, गोदामों में काम करनेवाले मजदूर, कानूनी शोधकर्ताओं, वित्तीय निवेश के मध्यस्थों, हृदय रोग और इएनटी रोग के विशेषज्ञों और मनोवैज्ञानिकों वगैरह की जरूरत नहीं रह जायेगी. इन कामों को मशीनें बेहतर ढंग से और ज्यादा दक्षता से करेंगी. ध्यान रखिए, यह नया समाज पूरी तरह से मशीनों के अधीन होगा. मशीन की इस नयी दुनिया में मानवीय रिश्ते, मानवीय संबंध कहां और कैसे होंगे, इसका अनुमान करना फिलहाल कठिन है. पर फिलहाल मशीनों के कारण दुनिया जिस मुकाम पर पहुंच गयी है, उसके कारण जो जटिलताएं सामने आयी हैं, उन पर पश्चिम में बहस हो रही है.
साफ्टवेयर इज ईटिंग द वर्ल्‍ड
‘द टाइम्स’ (लंदन) की खबर है. दो दिनों पहले की. गूगल दुनिया को बदलने की योजना पर काम कर रहा है. बढ़ती उम्र (एजिंग) की प्रक्रिया के हल के साथ-साथ, ड्राइवर-रहित कार बना कर दुनिया में सड़क दुर्घटना में हो रही मौतों को रोकने की योजना पर काम. सिलिकान वैली (माना जाता है कि दुनिया की सर्वश्रेष्ठ तकनीकी प्रतिभाएं अपने शोधों से यहां से संसार बदल रही हैं) में एक नारा है, ‘साफ्टवेयर इज ईटिंग द वर्ल्ड’ (साफ्टवेयर संसार को हजम कर रहा है). इस मुहावरे के जनक हैं, मार्क एंडरसीन. टेक्नोलाजी की दुनिया में सबसे प्रभावी निवेशक. वह मानते हैं कि संसार की अर्थव्यवस्था का कोई कोना, कंप्यूटर कोड से अछूता-अप्रभावित नहीं रहनेवाला.
याद करिए, एमेजन कंपनी, बुनियादी रूप से साफ्टवेयर की कंपनी. इसने किताबों की दुकानों को खत्म कर दिया. पिक्सर, आज दुनिया में फिल्म बनानेवाली, कई दशकों के बाद, सर्वश्रेष्ठ कंपनी है. यह भी मूलत: साफ्टवेयर कंपनी थी. संगीत में सबसे महत्वपूर्ण पहचान किसकी है? एप्पल की, यह भी साफ्टवेयर कंपनी है. विज्ञापन में सबसे प्रभावी कौन-सी कंपनी है? गूगल, साफ्टवेयर कंपनी. भर्ती (रिक्रूटमेंट) की सबसे तेजी से बढ़ती कंपनी कौन-सी है? लिंक्ड-इन, साफ्टवेयर कंपनी. अब तो खेती के कामों में भी बड़े पैमाने पर सॉफ्टवेयर कंपनियां काम कर रही है. सृष्टि के बाद से ही मौत पहेली रही है. पर पिछले साल गूगल ने एक कंपनी बनायी, केलियो. यह बायोटेक कंपनी है. इसका विषय, जीवन अवधि बढ़ाने (उम्र बढ़ाने) पर अध्ययन, शोध और खोज करना है.
(पश्चिम के मौजूदा संकट को वहां के एक बड़े चिंतक और पत्रकार ने दो पंक्तियों में लिखा. ये दो पंक्तियां 1965 में एक गायक समूह ने लिखीं, जो पश्चिम की दुनिया में खूब मशहूर हुईं. क्लासिक बन गयीं. पश्चिम के लोग मानते हैं कि हम वहां पहुंच गये हैं, जहां न भागने के लिए कोई जगह है, न छिपने का कोई ठौर है. नो वेयर टू रन.. नो वेयर टू हाइड. पढ़िए इन दोनों मुद्दों पर यूरोप से लौट कर हरिवंश की रपट.)

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