देश की आबादी के हिसाब से फिल्म जगत में बच्चों के लिए बाल फिल्मों के निर्माण का प्रतिशत बहुत कम है. स्वस्थ मनोरंजन के अभाव में अच्छी दिशा उन्हें प्रेरणास्वरूप नहीं मिल पाती है. इन्हीं कारण से भी बच्चों के मन-मस्तिष्क को व्यापक दृष्टिकोण नहीं मिल पाता है. मस्तिष्क पुष्ट व स्वस्थ बनाने के लिए प्रेरणादायी बाल फिल्में उत्तम साधन होती हैं. अंग्रेजी बाल फिल्मों का हिंदी संस्करण करके कई फिल्में थियेटर एवं सीडी के रूप में होती ही है, किंतु उनमें भारतीय संस्कृति ,शिक्षा अभाव होता है. भोंडा, फूहड़ व हिंसात्मक भाव ही देखने मिलते है. हमारे गांवों और शहरों में थियेटर के जरिये या सीडी या अन्य साधन के जरिये निर्मित बच्चों की फिल्मों का प्रतिमाह स्कूलों में प्रसारण किया जाना चाहिए.
संजय वर्मा ‘दृष्टि’, धार, मध्य प्रदेश