13.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

जिम्मेदारी हमें भी लेनी होगी

अखबार आंदोलन है, तो खबरें आंदोलित करेंगी ही. बिहार के औरंगाबाद के पास हुई दुर्घटना और पुणो के ढहते पहाड़ में मालिण गांव का दफन हो जाना, दो अलग-अलग घटनाओं का नतीजा एक जैसा, सवाल एक जैसे. जो लोग बच गये उनके हिस्से में आंसू के अलावा क्या बचता है, यह कौन सोच सकता है? […]

अखबार आंदोलन है, तो खबरें आंदोलित करेंगी ही. बिहार के औरंगाबाद के पास हुई दुर्घटना और पुणो के ढहते पहाड़ में मालिण गांव का दफन हो जाना, दो अलग-अलग घटनाओं का नतीजा एक जैसा, सवाल एक जैसे. जो लोग बच गये उनके हिस्से में आंसू के अलावा क्या बचता है, यह कौन सोच सकता है?

दबे पांव आनेवाला सैलाब किसी गांव को सन्नाटे की सौगात दे कर चुपके से निकल जायेगा. कौन सोच सकता है कि भोले बाबा के दर्शन से मिलने वाली शांति चिरनिद्रा में बदल जायेगी. दोनों हादसों में थोड़ा सा फर्क है. मालिण के मलबे को देख कर सभी किंकर्तव्यविमूढ़ हैं. वहां क्यों, कैसे और क्या का जवाब नहीं मिल पा रहा है, जबकि सड़क पर सो रहे कांवरियों की मौत के सारे जवाब उसी सड़क पर हैं. आक्रोश और उबाल है, तो समाधान भी है.

हमारे आसपास राजनीति का वायरस हमेशा सक्रिय रहता है. सुना है बेजान देह के लिए भी मुआवजे की मांग होती है. जीवन के अन्य संस्कारों की तरह मुआवजा भी एक संस्कार तो नहीं.

मुआवजा सहानभूति का पर्याय नहीं बन सकता. फिर भी इस छोटी सी सरकारी राशि के लिए मुर्दे को घसीटा जाता है. सवाल मुआवजे का नहीं बल्कि पर्दे के पीछे होने वाली राजनीति का है. सवाल तो यह भी है कि बीच सड़क पर सोने की इजाजत कौन देता है?

गश्त लगाती पुलिस सब देख कर भी अनदेखी क्यों करती है? क्या आनन-फानन में मुआवजे की घोषणा प्रशासनिक चूक से नजरें हटाने मात्र के लिए होती है? कुछ हादसे हमारी लापरवाहियों के कारण होते हैं जो रोके जा सकते हैं. मुआवजे के खेल से इतर जिम्मेवारी हम सबको लेनी होगी.

एमके मिश्र, रातू, रांची

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें