आनंद मोहन मिश्र
उपप्राचार्य
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आजकल के व्यस्तता भरे जीवन में लोगों के पास समय कम है. इसलिए रिश्तों की गर्मजोशी भी कम होती जा रही है. हमें अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों तक का एहसास नहीं है.
द्वापरयुग में भगवान श्रीकृष्ण का जीवन देखने से लगता है कि जीवन में कितने रिश्तों को उन्होंने कितनी अच्छी तरह निभाया है और मिसालें कायम की हैं. रिश्तों की अहमियत श्रीकृष्ण से सीखना चाहिए. सुदामा, रुक्मणी, बलदेव, अर्जुन, सुभद्रा, द्रौपदी, राधा, सब मिसालें हैं.
सुदामा जी के साथ उन्होंने मित्रता रूपी रिश्ते को निभाया. जब सुदामा को मित्र की आवश्यकता पड़ती है, तो वह कृष्ण के पास जाते हैं, लेकिन संकोचवश कुछ मांगते नहीं हैं. लेकिन, श्रीकृष्ण सब समझ जाते हैं. यहां दोनों ने एक-दूसरे को समझा है या समझने की कोशिश की है. रिश्तों को बचाने के लिए यह बहुत जरूरी है. अगर हम अपने मित्र की इच्छाओं की कद्र करेंगे, तो हमारे रिश्ते की डोर और मजबूत होगी.
द्रौपदी भरी सभा में बेबस तथा असहाय थी. कोई भी सहायता करने के लिए तैयार नहीं था. तब उसने विश्वास के साथ गोवर्धनधारी को याद किया. रिश्तों में विश्वास का होना जरूरी है. यदि उस वक्त श्रीकृष्ण नहीं आते, तो परिणाम क्या होता, इस कल्पना से ही मन सिहर उठता है. कुछ लोग कहते हैं कि वे पहले भी आकर द्रौपदी की इज्जत बचा सकते थे. मगर, सीधी बात यह है कि पहले द्रौपदी का विश्वास अपनों के ऊपर था.
बलदेवजी को घूमना पसंद था. श्रीकृष्ण और बलदेव के स्वभाव में कोई समानता नहीं है. लेकिन श्रीकृष्ण ने कभी भी उनके रास्ते में बाधा बनने का प्रयास नहीं किया. बड़े भाई के संबंध को मधुरता से निभाया.
श्रीकृष्ण अपनी जिम्मेदारी को भी बखूबी समझते थे. राधा के साथ उनका प्रेम जग जाहिर है. लेकिन यह आध्यात्मिक प्रेम है. प्रेम संबंधो में उन्होंने जो पवित्रता बनाये रखी, वह आज के समय के लिए एक उदाहरण है. निष्कपट, निश्छल प्रेम का अनूठा उदाहरण उन्होंने प्रस्तुत किया है. बिना राधा के आज श्रीकृष्ण के नाम की कल्पना भी हम नहीं कर सकते हैं.
वहीं अर्जुन रिश्ते में बहनोई एवं मित्र दोनों है. वे चाहते तो रिश्तेदारी निभाने के लिए खुलकर पांडवों का साथ दे सकते थे. लेकिन तब इतिहास उन पर हंसता. दुर्योधन से भी उनकी मित्रता थी. अतः उन्होंने बड़ी सावधानी से गुटनिरपेक्ष रहने का फैसला लिया. उनके इस निर्णय से वे तटस्थ रहे तथा समझदारी से अपनी रिश्तेदारी को निभाया.
पत्नियों रुक्मिणी तथा सत्यभामा में कभी किसी बात को लेकर विवाद न हो जाये, इसका उन्होंने हमेशा ध्यान रखा. सत्यभामा और रुक्मिणी ने अपने लिए श्रीकृष्ण से प्यार किया, इसलिए कहीं-न-कहीं उन्हें श्रीकृष्ण की पत्नी होने का गर्व भी हुआ. और श्रीकृष्ण ने उनके गर्व का हरण भी किया.
सामाजिक संरचना में रिश्तों की बड़ी अहमियत है. प्रेम के महीन रेशों से बुने ये रिश्ते बड़े नाजुक होते हैं. हमारे पारिवारिक और सामाजिक रिश्तों का रूप चाहे जो भी हो, ये सभी विश्वास, आदर, ईमानदारी एवं समर्पण की मांग करते हैं.