9.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

नेताओं पर निगरानी

संवैधानिक आदर्शों के अनुसार भले ही जन-प्रतिनिधि लोकसेवक होते हैं, पर यह भी एक कड़वी सच्चाई है कि सांसद, विधायक या मंत्री बनकर कई नेता अपनी संपत्ति बढ़ाने का भी जुगाड़ करते हैं. चुनाव के मौकों पर अक्सर ऐसी खबरें आती हैं कि कई सांसदों और विधायकों की संपत्ति में भारी बढ़ोतरी हो गयी. ऐसे […]

संवैधानिक आदर्शों के अनुसार भले ही जन-प्रतिनिधि लोकसेवक होते हैं, पर यह भी एक कड़वी सच्चाई है कि सांसद, विधायक या मंत्री बनकर कई नेता अपनी संपत्ति बढ़ाने का भी जुगाड़ करते हैं.
चुनाव के मौकों पर अक्सर ऐसी खबरें आती हैं कि कई सांसदों और विधायकों की संपत्ति में भारी बढ़ोतरी हो गयी. ऐसे में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सरकार से इस संबंध में निगरानी का कोई इंतजाम नहीं होने के बारे में सवाल पूछना जायज ही है.
पिछले साल फरवरी में देश की सबसे बड़ी अदालत ने टिप्पणी की थी कि जनता द्वारा निर्वाचित विधायिका के सदस्यों द्वारा बेतहाशा संपत्ति जमा करना लोकतंत्र के असफल होने का सूचक है और अगर इस पर ध्यान नहीं दिया गया, तो हमारा लोकतंत्र तबाह हो जायेगा और माफिया शासन के लिए रास्ता खुल जायेगा. इसके साथ उसने निर्वाचित नेताओं की कमाई पर निगरानी के लिए ठोस व्यवस्था करने का निर्देश दिया था.
सालभर बीतने के बाद भी इस दिशा में सरकार की ओर से कोई पहल नहीं की गयी है. इसी कारण अदालत को अब सफाई मांगनी पड़ी है. चुनाव में नामांकन के समय संपत्ति का आधा-अधूरा ब्योरा देना भी परिपाटी-सी बन गयी है. इस मसले पर भी सरकारी रवैये के बारे में जवाब-तलब किया गया है.
चुनाव समेत विभिन्न राजनीतिक गतिविधियों में धन और बल का इस्तेमाल तथा इस अवैध खर्च की भरपाई के लिए विधायिका और कार्यपालिका में मिले पद का दुरुपयोग ऐसी चुनौतियां हैं कि इनसे छुटकारा पाये बिना स्वस्थ लोकतंत्र की अपेक्षा नहीं की जा सकती है. पिछले साल के फैसले में अदालत ने इस बात पर भी चिंता जाहिर की थी कि इतने अहम मसले पर भी संसद और चुनाव आयोग का कोई ध्यान नहीं है.
हमारे देश की बड़ी आबादी गरीबी में और कम आमदनी में गुजारा करती है. सामाजिक और आर्थिक विषमता को पाटने तथा सर्वांगीण विकास की आशा को पूरा करने के लिए प्रयास करने एवं नेतृत्व देने का उत्तरदायित्व विधायिका और कार्यपालिका को है.
यदि इनके स्तर पर ही राजनीतिक भ्रष्टाचार की अनदेखी होगी, तो फिर और उपाय क्या रह जायेगा! संवैधानिक संस्था होने के बावजूद चुनाव आयोग के पास समुचित अधिकार नहीं हैं.
आयोग को शक्तिशाली बनाने और चुनाव सुधार के कानून बनाने के विधि आयोग के अनेक सुझाव लंबे समय से सरकार के पास लंबित हैं. मतदाता अपने अधिकार का प्रयोग ठीक से कर सके, इसके लिए यह आवश्यक है कि उसके पास प्रत्याशियों के बारे में सभी प्रासंगिक सूचनाएं हों. समुचित पारदर्शिता के बिना भ्रष्ट और अपराधी चुने जा सकते हैं, बल्कि चुने जाते रहे हैं.
एक समस्या यह भी है कि किसी तथ्य को छुपाने या जन-प्रतिनिधित्व कानून का उल्लंघन करने का कोई मामला सामने आता है, तो आयोग, विधायिका और न्यायालयों को उसके निपटारे में बहुत समय लग जाता है. इस पर भी सोचा जाना चाहिए. उम्मीद है कि अदालती निर्देशों का पालन तत्परता से करने की कोशिश होगी.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें