नोएडा के एक सार्वजनिक पार्क में नजदीक स्थित कंपनियों में काम करने वाले मुस्लिम भाइयों द्वारा प्रत्येक शुक्रवार को सामूहिक नमाज पढ़े जाने पर प्रशासन द्वारा रोक लगाये जाने के बाद समुदाय विशेष के सदस्यों और प्रशासन के बीच गतिरोध की स्थिति बनी हुई है. वास्तव में कोई भी विवेकशील मनुष्य सड़कों, चौराहों, पार्क या अन्य सार्वजनिक जगहों पर धार्मिक गतिविधियों का समर्थन नहीं कर सकता. सार्वजनिक जगहों पर नमाज और जागरण, दोनों गलत हैं.
जो लोग यह तर्क दे रहे हैं कि पार्क के एक कोने में शांतिपूर्ण तरीके से पढ़े जाने वाले नमाज पर इतना हंगामा क्यों, उन्हें यह समझना चाहिए कि उक्त स्थिति को स्वीकार कर लिये जाने पर इसी तरह की मांग अन्य धर्मावलंबी भी कर सकते हैं. तब सामाजिक सौहार्द और अनुशासन का क्या होगा? कुछ इसी तरह के मामले में प्रशासन ने ग्रेटर नोएडा के सरकारी जमीन पर होनेवाली श्रीमद्भागवत कथा को भी रोक दिया है. धार्मिक आस्था प्रत्येक मनुष्य का निजी मसला होना चाहिए, जिसे घर या मंदिर या मस्जिद में ही संपन्न किया जाना श्रेयस्कर है.