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क्या यही देशभक्ति है!

आकार पटेल कार्यकारी निदेशक, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया aakar.patel@gmail.com हमारे देश को हमसे क्या उम्मीदे हैं? जनवरी, 1961 को अमेरिका के 35वें राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में अपने देशवासियों से कहा था, ‘यह मत पूछिए कि आपका देश आपके लिए क्या कर सकता है, बल्कि यह पूछिए कि आप अपने देश […]

आकार पटेल

कार्यकारी निदेशक,

एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया

aakar.patel@gmail.com

हमारे देश को हमसे क्या उम्मीदे हैं? जनवरी, 1961 को अमेरिका के 35वें राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में अपने देशवासियों से कहा था, ‘यह मत पूछिए कि आपका देश आपके लिए क्या कर सकता है, बल्कि यह पूछिए कि आप अपने देश के लिए क्या कर सकते हैं.’

केनेडी के कहने का आखिर क्या अर्थ था? उनका मतलब यह था कि अमेरिकी ढंग से देश से जुड़ने का एक तरीका है. वह तरीका था कि सरकार (मतलब सरकारी तंत्र) पर निर्भर रहे बिना स्वयं के प्रयासों से व्यक्ति अपने जीवन का निर्माण करे. केनेडी उस पुरानी परंपरा की बात कर रहे थे, जिसमें अमेरिकी समुदायों व व्यक्तियों ने अपनी जरूरतों का ख्याल खुद रखा था. यह मनोवृत्ति स्वतंत्रता से भी जुड़ी थी.

वस्तुत: यहां स्वतंत्र होने का मतलब यह था कि कोई भी व्यक्ति आधारभूत दायित्वों, जैसे कानून का पालन करना, को छोड़कर सभी दायित्वों से मुक्त था. देश से सच्चे प्यार का जिस तरह केनेडी ने हवाला दिया, उसका अर्थ देश पर बोझ नहीं बनने से है. देश से प्यार करने का यह तरीका उस तरीके से भिन्न था, जिसे अमेरिका के वैश्विक प्रतिद्वंद्वी सोवियत संघ द्वारा अपनाया गया था. उनकी प्रणाली में प्रत्येक स्तर पर राज्य का बहुत मजबूत हस्तक्षेप था.

केनेडी के 20 वर्ष बाद एक अन्य राष्ट्रपति, जो उनकी प्रतिद्वंद्वी पार्टी से संबद्ध थे, ने भी कुछ वैसी ही बातें कही थी. रोनाल्ड रीगन ने कहा था, ‘अंग्रेजी भाषा में ये कुछ सबसे अधिक डरावने शब्द हैं- ‘मैं सरकार से हूं और मैं यहां मदद करने के लिए हूं.’ रीगन रिपब्लिकन पार्टी के दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, जो केनेडी की ही तरह कहने का एक और सख्त तरीका था. रीगन कह रहे थे कि सरकार कुछ वैसी होती है, जो हस्तक्षेप करती है और लोगों के जीवन को बाधित करती है.

जबकि, सरकार को लोगों के मामले से दूर रहनेवाला होना चाहिए. रिपब्लिकन पार्टी कई दशकों तक यही कहती रही कि सरकार का आकार जितना छोटा होगा, नागरिकों के लिए उतना ही अच्छा होगा. इसका आकार जितना बड़ा होगा, नागरिकों के जीवन में उतना ही दखल बढ़ेगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शब्द ‘न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन’ वैसे ही तर्क पर अाधारित है.

भारत में देश व व्यक्ति और सरकार व व्यक्ति के बीच के संबंधों के बारे में हमारा दृष्टिकोण क्या है? इसे परखने के लिए मैं हाल की कुछ बातों पर नजर डालना चाहता हूं.

मीडिया के एक कार्यक्रम में बोलते हुए केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा था, ‘यहां इस ओर ध्यान देना बेहद दिलचस्प है कि जब हम भारत के बारे में बोलते हैं, ठीक उसी समय कई ऐसे भारतीय हैं, जो देशभक्त होने को गलत कहते हैं.’ उन्होंने कहा कि ये राष्ट्र-विरोधी लोग संभवत: कुछ ऐसा कहेंगे, ‘राष्ट्रगान बजने पर हमें क्यों आंसू बहाना चाहिए, हमें सम्मान में खड़ा क्यों होना चाहिए?’ वास्तव में उनके लिए लोकतंत्र का उत्सव मनाने का सबसे सही तरीका यह कहना है, ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ और मैं इससे सहमत नहीं हूं.’

जिस तरीके से उन्होंने इसे निर्धारित किया है, उसके अनुसार राष्ट्र और व्यक्ति के बीच केवल दो तरह के संबंधों का ही अस्तित्व हो सकता है. पहला यह कि राष्ट्रगान बजने पर भावुक होना व रोना और दूसरा, देश के खंड-खंड होने की इच्छा रखना. नागरिक अपने देश के साथ किस तरह से जुड़े, इसे बताने का यह सही तरीका नहीं है. व्यक्ति का अपने देश के साथ कई बिंदुआें पर जुड़ाव होता है.

राष्ट्रगान के जरिये 52 सेकेंड का जुड़ाव होता है. यहां तक कि अगर हम राष्ट्रगान पर रोज खड़े होते हैं और आंसू बहाते हैं, तो प्रतिदिन हमारे पास 23 घंटे और 59 मिनट होते हैं. क्या इस अवधि में देश के प्रति हमारे मन में प्यार नहीं होता है? राष्ट्रगान पर खड़े होने व रोने के पहले और बाद हम क्या करते हैं? सच तो यह है कि भारत में नागरिक और राष्ट्र के बीच संपर्क के अन्य बिंदु कमजोर हैं.

हमारा देश उम्मीद करता है कि हम अपने कर का भुगतान करें, ताकि देश सुचारु रूप से अपना कार्य कर सके. लेकिन, कर अदायगी में भारतीयों का रिकॉर्ड सबसे खराब है और इसमें राष्ट्रगान के लिए खड़े होने और रोनेवाले लोग भी शामिल होंगे.

हमारा देश हमसे कानून, नियम व शर्तों के पालन की अपेक्षा करता है, लेकिन विश्वभर में कानून व नियम का सबसे ज्यादा उल्लंघन करनेवालों में भारतीय भी शामिल हैं. हममें से वैसे लोग जिन्हें यात्रा का बहुत ज्यादा अनुभव है, वे इस सच की गवाही दे सकते हैं. रोते हुए देशभक्त की गढ़ी हुई छवि की बजाय ईरानी को संपर्क के इन बिंदुओं पर ध्यान देना चाहिए.

जब देश पर निर्भरता की बात आती है, तो यहां हमारी सोच केनेडी के दृष्टिकोण से विपरीत हो जाती है. हम चाहते हैं कि सरकार ऋण माफी से आरंभ कर प्रत्येक चीज में हमारी मदद करे. हमारे पास स्वतंत्र या स्वतंत्रतावादी दृष्टिकोण नहीं है. हम सरकार और देश पर अधिकतम बोझ डाल देना चाहते हैं, जबकि स्वयं पर इसके विकास की जिम्मेदार कम डालना चाहते हैं.

दुखद यह है कि केनेडी और रीगन से उलट हमारे राजनेता सक्रियता से हमें ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं. स्मृति ईरानी और उनके जैसे अन्य लोग देश के लिए हमसे जो चाहते हैं, वह यह कि देशभक्ति के नाम पर राष्ट्रगान के आरंभ से लेकर अंत तक हम रोते रहें.

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