दुर्भाग्य से पिछले लगभग दो दशकों से सरकार ने लाखों रोजगार खत्म कर दिये और अब उसके बाद भी लाखों पद केंद्र और राज्यों में खाली पड़े हैं. सिर्फ ठेके पर ही कुछ को काम मिल पा रहा हैं जो ऊंट के मुंह में जीरे के समान है.
इससे निरंतर हालत बिगड़ रहे हैं. दूसरी ओर आरक्षण फिर से सिर उठाने लगा है. पांच राज्यों के चुनाव पूर्व ही दलितों और सवर्णों ने अपने आरक्षण के लिए आवाज उठाई थी, जिससे भाजपा को कुछ हानि हुई है. आगामी लोकसभा चुनाव में भी यह और तेजी से उठ सकता है.