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कांग्रेस ने हार से नहीं लिया सबक!

कांग्रेस के लिए यह माकूल घड़ी थी, जब वह पद व सुविधाओं का मोह त्याग कर अपनी गलतियों और कमजोरियों को नये सिरे से पहचानने की कोशिश करती, लेकिन अफसोस कि कांग्रेस ऐसा कुछ भी नहीं कर रही. सोलहवीं लोकसभा के गठन के लिए हुए चुनावों में कांग्रेस सिर्फ हारी नहीं है, बल्कि उसके लिए […]

कांग्रेस के लिए यह माकूल घड़ी थी, जब वह पद व सुविधाओं का मोह त्याग कर अपनी गलतियों और कमजोरियों को नये सिरे से पहचानने की कोशिश करती, लेकिन अफसोस कि कांग्रेस ऐसा कुछ भी नहीं कर रही.

सोलहवीं लोकसभा के गठन के लिए हुए चुनावों में कांग्रेस सिर्फ हारी नहीं है, बल्कि उसके लिए एक पार्टी के तौर पर अपना अस्तित्व बचाये रखने का संकट आन खड़ा हो गया है. लेकिन लोकसभा के गठन के बाद से कांग्रेस ने जो रवैया अख्तियार किया है, उसे देखते हुए नहीं लगता कि उसे अपने अस्तित्व पर मंडरा रहे खतरे का आभास है या उसने अपनी अप्रत्याशित हार से कुछ सबक सीखा है. चहुंओर से साख गंवानेवाली कांग्रेस को नहीं लग रहा कि उसने जो कुछ खोया है, उसे हेठी या अकड़ दिखा कर हासिल नहीं किया जा सकता.

2009 के आम चुनावों के मुकाबले इस बार कांग्रेस को 162 सीटों का घाटा हुआ है. पिछले चुनावों के मुकाबले 9.3 फीसदी की कमी के साथ पार्टी मात्र 19.3 फीसदी के वोट शेयर पर सिमट गयी है. यह घटा हुआ वोट शेयर असल में मतदाताओं के बीच कांग्रेस की मटियामेट होती साख की सूचना है. पार्टी 464 सीटों पर चुनाव लड़ी, जिनमें 179 पर उसके प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गयी. कोई भी राज्य ऐसा नहीं, जहां उसकी सीटें दहाई अंकों में पहुंची हों. इतनी बड़ी हार के बाद कांग्रेस को विनम्र होना चाहिए था, आत्म-परीक्षा में उतरना चाहिए था. उसके लिए यह माकूल घड़ी थी, जब वह पद और सुविधाओं का मोह त्याग कर अपनी गलतियों और कमजोरियों को नये सिरे से पहचानने की कोशिश करती. खुद को खंगाल कर यह टोहती कि आजादी के आंदोलन को नेतृत्व देने और देश में लोकतांत्रिक ढांचे की बुनियाद कायम करनेवाली सौ साल पुरानी पार्टी की साख किन कारणों से रसातल में पहुंच गयी है.

लेकिन, कांग्रेस ऐसा कुछ भी नहीं कर रही. लंबे समय तक सत्ता में रहने के दौरान बनी उसकी अकड़ इस ऐतिहासिक पराजय के बाद भी कायम है और उसके व्यवहार में साफ दिख रही है. मिसाल के लिए, दस फीसदी से भी कम सीटें हासिल करने के बावजूद कांग्रेस अड़ी हुई है कि वह लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद लेकर रहेगी. नयी सरकार के शहरी विकास मंत्रालय ने नये मंत्रियों और सांसदों के रहने-ठहरने के प्रबंध के लिए करीब 55 पूर्व केंद्रीय मंत्रियों को 26 जून तक अपने सरकारी बंगले खाली करने का नोटिस भेजा, लेकिन ज्यादातर पूर्व मंत्रियों के रुख से नहीं लगता कि उन्हें इस नोटिस की कोई फिक्र है. नयी सरकार पुरानी परिपाटी पर चलती हुई चाहती है कि यूपीए के समय नियुक्त छह राज्यपाल अपनी मर्जी से पदत्याग दें, लेकिन कांग्रेसी कुनबे से निष्ठा रखनेवाले कुछ राज्यपाल पद छोड़ने में अनाकानी कर रहे हैं.

यह सत्ता को अपनी चेरी समझने का लक्षण ही तो है. कांग्रेस कह सकती है कि उसके प्रति निष्ठा रखनेवाले राज्यपालों से इस्तीफा सौंपने की बात कह कर नयी सरकार प्रतिशोधात्मक कार्रवाई कर रही है. लेकिन, 2004 में यूपीए ने भी सत्ता संभालने पर एनडीए शासनकाल में नियुक्त तीन राज्यपालों को हटाने का फैसला किया था. इसलिए, कांग्रेस ऐसी दलीलों से लोगों के दिलों में अपने लिए जगह नहीं बना पायेगी. सही है कि नयी सरकार अगर एक कानून (पार्लियामेंट फैसिलिटी एक्ट-1998) की आड़ में कांग्रेस को नेता प्रतिपक्ष का पद देने से इनकार कर रही है, तो दूसरे नुक्ते (द सैलरी एंड अलाउएंसेज ऑफ लीडर्स ऑफ अपोजिशन इन पार्लियामेंट एक्ट, सेक्शन-2) की आड़ में कांग्रेस खुद को नेता प्रतिपक्ष पद का दावेदार भी बता सकती है.

लेकिन, लोकतंत्र में एक बार जब आप लोगों की नजरों से उतर जाते हैं, तब चाहे आप अपने हक के लिए ही क्यों न मैदान में कूदें, लोग उसे स्वार्थ और निजी सुविधा जुटाने की लड़ाई ही मानते हैं. इसलिए इस वक्त कांग्रेस अपने हक और सुविधा की बात करके जनभावना को अपने साथ नहीं जोड़ सकती. कांग्रेस एक मध्यमार्गी पार्टी है. देश की राजनीति में एक मजबूत मध्यमार्गी पार्टी की जरूरत पहले थी और आगे भी रहेगी. कांग्रेस के इतिहास पर गौर करें तो पंडित नेहरू, शास्त्री और कामराज जैसे नेताओं के दौर में नैतिकता के आधार पर राजनीति इस पार्टी की ताकत रही है. लेकिन, इस वक्त स्थिति यह है कि पार्टी के ही कुछ वरिष्ठ नेता दबी जुबान कह रहे हैं कि पार्टी नेतृत्व आज भी दलालों और चाटुकारों से ही घिरा है. इस वक्त अपनी साख वापस पाने का कांग्रेस के पास एक ही रास्ता है, अपने जमीनी कार्यकर्ताओं के पास लौटना और अंदरूनी संगठन को नये सिरे से मजबूत करना. लेकिन अफसोस है कि अब भी नेतृत्व से नजदीकियां साधने की होड़ में जुटे नेता सबक लेते नहीं दिख रहे हैं!

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