जिस राष्ट्र का शिक्षक सम्मान से नहीं जी सकता, वह राष्ट्र कभी विकसित राष्ट्र नहीं हो सकता. शिक्षक दिवस के अवसर पर शिक्षकों को सियासतदानों के समक्ष झोली फैलाये देखकर देश के पहले उपराष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की रूह भी कांप उठी होगी. जो दिन शिक्षकों के सम्मान का दिन होता है, उसी दिन वे राजभवन के सामने संवैधानिक रूप से जायज अपनी मांगों को लेकर राज्यपाल महोदया से न्याय की गुहार लगा रहे थे. वे याचक की भूमिका में थे.
जिस राष्ट्र या राज्य का शिक्षक सड़क पर भिक्षाटन को मजबूर हो, उस राज्य या राष्ट्र की दुनिया के सामने क्या छवि बनेगी? सरकारी विद्यालयों की अपेक्षा काफी सशक्त उपस्थिति के बावजूद अल्पसंख्यक विद्यालयों की यह उपेक्षा चिंतनीय है. कच्ची माटी को डॉक्टर, इंजीनियर, राजनेता, लेखक, राज्यपाल, राष्ट्रपति ही नहीं, बल्कि एक आदर्श नागरिक का स्वरूप देने वाले शिक्षकों के साथ यह अन्याय आखिर कब तक होता रहेगा?
देवेश कुमार ‘देव’, इसरी बाजार, गिरिडीह