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औचित्यहीन जुर्माना

हाल में बैंकों द्वारा हमारे खातों पर लगाये गये जुर्मानों के आंकड़े देख कर यह एहसास हुआ कि सेवा के नाम पर बैंक हमें जोंक की तरह चूस रहें हैं. एक तो खाते में रखने के लिए धन नहीं. उस पर जुर्माना लग जाना गरीबों पर दोहरी मार ही तो है. गरीबों के बैंक खातों […]

हाल में बैंकों द्वारा हमारे खातों पर लगाये गये जुर्मानों के आंकड़े देख कर यह एहसास हुआ कि सेवा के नाम पर बैंक हमें जोंक की तरह चूस रहें हैं. एक तो खाते में रखने के लिए धन नहीं. उस पर जुर्माना लग जाना गरीबों पर दोहरी मार ही तो है. गरीबों के बैंक खातों की चर्चा दुनियाभर में हुई.

क्या खाली बैंक खातों पर लगने वाले जुर्माने की चर्चा भी कभी होती है? विकास की विभिन्न योजनाओं के मद्देनजर बैंकों ने ‘जीरो बैलेंस’ पर खाता खोलने की बात की थी, तो फिर जुर्माने का औचित्य क्या है? बैंकों की इस वादाखिलाफी से छोटे खाताधारकों की नाराजगी अप्रत्याशित नहीं है.

सरकार को सुनिश्चित करना होगा कि किसी गरीब को बैंक खाता खोलने की सजा न मिले. साथ ही डिजिटल इंडिया को बढ़ावा देने के लिए ऐसे भय के माहौल को खत्म करना ही होगा. बैंक नियमों के तहत जुर्माना लेना आवश्यक ही है, तो गरीबों पर बोझ डालने के बजाय सरकार को सब्सिडी देनी चाहिए.

एमके मिश्रा, रातू, रांची

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