सत्ता तो बदली, क्या सपने भी पूरे होंगे?
मानें या ना मानें, चिलचिलाती धूप में सियासी बदलाव की आंधी ने पूरे देश के मिजाज को बदल कर रख दिया. 10 करोड़ नये वोटरों ने अपनी अंगुली पर काली स्याही लगवा कर जागरूक हिंदुस्तानी होने का परिचय भी दिया. इन नये वोटरों में ज्यादातर वो चेहरे थे जो एक नये हिंदुस्तान का ताना-बाना बुन रहे थे.
जब बारी वोट देने की आयी, तो ढाक के तीन पात. वही अगड़ा-पिछड़ा, जाटव-यादव, दलित-महादलित, अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक. ‘दूसरी आजादी’ तो न मिल पायी, पर अच्छे दिनों का भरोसा जरूर मिला. नयी सरकार, नया तेवर और नये संकल्पों की सुगबुगाहट आहिस्ता-आहिस्ता फिजाओं मे तैरने लगी है. इस बदलाव के बीच एक सवाल अब भी आशंकित कर रहा है, यह आंधी तो सत्ता परिवर्तन की थी, वह बदलाव जिसके सपने लिये हम 65 सालों से जाग रहे हैं आना बाकी है. क्या आम आदमी के सपने पूरे होंगे?
एमके मिश्र, रांची