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केंद्रीय बजट और महिलाएं

II डॉ सय्यद मुबीन जेहरा II शिक्षाविद् drsyedmubinzehra@gmail.com महिलाएं आज मर्दों के कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं, मगर उन्हें उनकी सलाहियतों के हिसाब से इनाम नहीं मिल रहा है. सरकार के पास अच्छा मौका था कि शहरी और गांव की सभी महिलाओं के लिए वह बजट में कुछ ऐसा की हाेती, जिससे उनके […]

II डॉ सय्यद मुबीन जेहरा II
शिक्षाविद्
drsyedmubinzehra@gmail.com
महिलाएं आज मर्दों के कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं, मगर उन्हें उनकी सलाहियतों के हिसाब से इनाम नहीं मिल रहा है. सरकार के पास अच्छा मौका था कि शहरी और गांव की सभी महिलाओं के लिए वह बजट में कुछ ऐसा की हाेती, जिससे उनके सशक्तिकरण की राह आसान हो जाती.
महिलाओं को मजबूत बनाने की राह तभी मुमकिन है, जब उनको आर्थिक रूप से मजबूत किया जा सके. इसके लिए उनके वास्ते न सिर्फ शिक्षा की राहें आसान करनी होंगी, बल्कि उनके लिए रोजगार के रास्ते भी खोलने होंगे. आम तौर पर महिलाओं को अगर किसी काम के लिए रखा जाता है, तो उन्हें मर्दों से कम वेतन दिया जाता है. हालांकि, सरकार ने ग्रामीण इलाकों में महिला शक्ति केंद्रों की मदद से महिला सशक्तिकरण की बात कही है और इसके लिए 500 करोड़ रुपये रखे भी हैं.
इस बजट को लेकर औरतों ने उम्मीदों की एक लंबी चादर तान रखी थी, मगर ऐसा लगता है कि उनकी चाह के अनुरूप उन्हें अधिक नहीं मिल पाया है. यूं तो बजट में औरतों के लिए कुछ न कुछ कहा गया है, लेकिन जिस उम्मीद के साथ एक घरेलू औरत बजट को देखती है कि उसकी रसोई आबाद रहे, वैसा तो कुल मिलाकर बजट में नजर नहीं आया है.
बजट में उज्जवला योजना के तहत गरीब महिलाओं को आठ करोड़ मुफ्त गैस कनेक्शन दिये जाने की घोषणा की गयी है. पहले सरकार ने उज्ज्वला योजना के तहत पांच करोड़ गरीब औरतों के लिए मुफ्त गैस कनेक्शन पहुंचाने का लक्ष्य रखा था. उज्जवला योजना का मकसद आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों को एलपीजी कनेक्शन मुहैया कराना है. सरकार ने पिछले एक साल में लक्ष्य से 70 लाख अधिक परिवारों को कनेक्शन मुहैया कराया है.
अगर मोटा-मोटी भी देखें, तो औरतों को लेकर सरसरी सी बातें तो हैं, मगर कुछ ऐसा नया नहीं मिलता, जिसको लेकर कोई बहुत ज्यादा खुशी की लहर फैले. महिलाओं को सस्ता ऋण देने के लिए नेशनल हाउसिंग बैंक को 20,000 करोड़ की राशि देने की बात है बजट में. देखना यह है कि ऐसा कितने परिवार करते हैं कि वह औरतों के नाम से घर का कर्जा लें.
अगर कोई ऐसा करना चाहे भी, तो क्या औरतों के पास कर्ज के लिए जरूरी कागजात और संपत्ति होती भी है कि जिसे देखकर बैंक उन्हें कर्ज के लायक समझ सकें. इसमें भी फायदा मर्दों का ही है कि अगर वे अपनी पत्नी, मां या बहन के नाम से घर खरीदेंगे, तो फिर उनका खर्च कम हो जायेगा. लेकिन, यहां यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि अगर कर्ज चुकाने में चूक हो जाये, तो मुसीबत भी औरतों के ही घर का पता पूछती हुई आयेगी.
महिला एवं बाल विकास के लिए बजट में बढ़ोतरी की गयी है. महिलाओं के कौशल विकास के लिए पहले 1.56 लाख करोड़ रुपये मिलते थे, जिसे बढ़ाकर 1.84 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया है. इस रकम से महिलाओं को खुद का रोजगार शुरू करने के लिए तैयार किया जायेगा.
कामकाजी महिलाओं को थोड़ी सी बजट में रियातात दी गयी है. बजट में महिला कर्मचारियों को एक और खास तोहफा दिया गया है. रोजगार के पहले 3 वर्षों में महिलाओं की इपीएफ में हिस्सेदारी 10 प्रतिशत से घटाकर 8 प्रतिशत कर दी जायेगी. लेकिन, टैक्स चुकानेवाली महिलाओं की मांग थी कि सरकार बजट में उनका खास ख्याल रखे. इस पर तवज्जो नहीं दी गयी. सिंगल पैरेंट महिलाओं को बच्चों की परवरिश के लिए भी टैक्स छूट नहीं मिली है.
गर्भवती महिलाओं के लिए बजट में ख्याल तो रखा गया है, ताकि वह अपना ख्याल रख सकें, लेकिन उन्हें सिर्फ छह हजार रुपये देकर कैसी ताकत दी जा सकती है. जब अखबारों में ऐसी घटनाएं पढ़ने को मिलती हैं कि किसी महिला को अस्पताल में जगह नहीं मिली, तो उस ने सड़क पर ही बच्चे को जन्म दे दिया. ऐसे में छह हजार रुपये क्या गुल खिला पायेंगे?
अगर सरकार उनके प्रसव तक की जिम्मेदारी लेती, तो अच्छा रहता. खास तौर से उन महिलाओं के लिए, जो मजदूरी भी करती हैं और पेट में बच्चों की देखभाल भी करती रहती हैं. कामकाजी महिलाओं के लिए जो मैटरनिटी लीव बढ़ाया है, उसमें एक समस्या यह आ सकती है कि कंपनियां औरतों को नौकरी देने में हिचकिचायेंगी. इस पर भी सरकारों को ध्यान देना होगा.
बजट में ऐलान हुआ है कि स्वच्छ भारत अभियान के तहत आनेवाले दो साल में दो करोड़ शौचालयों का निर्माण किया जायेगा. ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को शौच के लिए कई बार दिन ढलने तक का इंतजार करना पड़ता है. यह उनके लिए अच्छा फैसला है. औरतों की मांग थी कि सैनिटरी पैड को जीएसटी से बाहर रखा जाये. सरकार ने ऐसा तो नहीं किया, पर गांव में सैनिटेशन राशि को बढ़ा दिया है.
कुल मिलाकर देखा जाये, तो औरतों की रसोई की जरूरतें महंगाई से निकल नहीं पा रही हैं. औरतें अपने काबिल प्रबंधन के दम पर घर की गाड़ी खींच लेती हैं. उनके लिए शिक्षा और रोजगार के साधन बढ़ने चाहिए, ताकि वे मजबूत हो सकें.
महिलाओं के हिसाब से इस बजट में जो सबसे अच्छी चीज हुई है, वह उसकी सजावट के सामान की कीमत का न बढ़ना है. यह यकीनन औरतों के लिए अच्छी खबर है. हालांकि, उन्हें ऐसी ही और बहुत सी अच्छी खबरों की बजट से उम्मीद रही होगी.

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