राजनीति को अपराधियों से मुक्त करने की चिंता दशकों पुरानी है. इसलिए, कोई नेता ऐसा करने का वादा करे तो यही माना जायेगा कि उसने एक पुराने संकल्प को दोहराना जरूरी समझा है. संकल्प दोहराने से समस्या का हल नहीं निकलता, यह जरूर साबित होता है कि पिछला संकल्प इतना कमजोर रहा कि किसी निर्णायक प्रयास में नहीं बदल सका.
इसलिए 2014 की चुनावी जंग में कोई नेता ऐसा वादा करे, तो उससे पूछा जाना चाहिए कि दशकों पुराने संकल्प के बाद भी यदि राजनीति में अपराधियों का स्वागत हो रहा है, तो दोष किसका है और दोष निवारण का क्या समाधान सुझाया जा रहा है? यह बात भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेंद्र मोदी पर भी लागू होती है, क्योंकि अहमदाबाद के अपने बहु-प्रचारित भाषण में उन्होंने दावा किया है कि सत्ता मिलने पर वे एक साल के भीतर दोषी सांसद-विधायकों को जेल भिजवा देंगे. मोदी बताते हैं कि राजनीति के अपराधीकरण के लिए कांग्रेस दोषी है और ‘मोदी सरकार’ राजनीति को अपराध-मुक्त करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में विशेष अदालतों का गठन करेगी.
प्रयास होगा कि दागी सांसद-विधायकों पर फैसला एक साल के भीतर आ जाये. परंतु मोदी की इस योजना में न तो राजनीति के अपराधीकरण की व्याख्या की गयी है और न ही कोई समाधान सुझाया गया है. चूंकि आजाद हिंदुस्तान में ज्यादातर वक्त कांग्रेस की सरकार रही है, इसलिए देश में व्याप्त तमाम समस्याओं का ठीकरा उसके ही सिर फोड़ा जाता रहा है. जहां तक समाधान का सवाल है, बीते मार्च माह में सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश में कहा गया था कि जिन जन-प्रतिनिधियों पर गंभीर आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं, उनका एक साल में ट्रायल पूरा नहीं होने पर संबंधित कोर्ट को देरी की वजह हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को बतानी होगी.
मोदी ने असल में सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश को ही एक तरह से दोहराया है. इन दो बातों में यह भी जोड़ लें कि इस लोकसभा चुनाव में दागी प्रत्याशियों को खड़े करने में भाजपा भी अन्य दलों से पीछे नहीं हैं. ऐसे में राजनीति को अपराधियों से पूरी तरह मुक्त करने के मोदी के वादे के बारे में यह कहना गलत नहीं होगा कि यह किसी विजन की ऊपज नहीं, बल्कि सिर्फ एक चुनावी वादा है.